दिल्ली की एक अदालत ने ड्यूटी पर तैनाती के दौरान एक पुलिसकर्मी के खिलाफ मामला चलाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि इससे सिर्फ कानून व्यवस्था का ही दुरुपयोग नहीं होगा बल्कि पुलिसकर्मियों के मनोबल पर भी असर पड़ेगा. अदालत ने इस मामले में एक पुलिस अधिकारी को सम्मन करने का मजिस्ट्रेट का आदेश खारिज कर दिया है.
तीस हजारी कोर्ट में एडिशनल सेशंस जज सविता राव ने मजिस्ट्रेट की अदालत द्वारा आरोपी के तौर पर सम्मन करने के फैसले के खिलाफ दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर जय भगवान की पुनरीक्षण याचिका मंजूर कर ली. जज ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 197 पुलिस अधिकारियों को ड्यूटी पर तैनाती के दौरान काम के बदले गैरजरूरी परेशानियों से संरक्षण प्रदान करती है.
जज ने कहा कि ऐसी स्थिति में याचिकाकर्ता (पुलिसकर्मी) के खिलाफ मामला चलाने की अनुमति देने से केवल कानूनी तंत्र का दुरुपयोग ही नहीं बढ़ेगा बल्कि पुलिस अधिकारियों का मनोबल भी कमजोर होगा, जो मेहनत से अपनी ड्यूटी निभाते हैं.
अदालत ने कहा कि संपत्ति विवाद मामले में शिकायतकर्ता सुकांत वेद की शिकायत पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं करने का याचिकाकर्ता, सराय रोहिल्ला पुलिस थाने के प्रभारी का कृत्य ‘ड्यूटी के पालन’ के तहत ही था क्योंकि शिकायत एक न्यायाधीन मामले से संबंधित थी.
अदालत ने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में निचली अदालत की ओर से दिया गया आदेश नहीं माना जा सकता और याचिकाकर्ता की ओर से दायर पुनरीक्षण याचिका मंजूर की जाती है. अपने को सामाजिक कार्यकर्ता बताने वाले सुकांत वेद की ओर से दायर मामले के मुताबिक थाना प्रभारी ने असामाजिक तत्वों की ओर से उनकी संपत्ति पर कब्जा करने के संबंध में लगातार शिकायतों के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की.
वेद ने आरोप लगाया था कि थाना प्रभारी की मिलीभगत से उनकी संपत्ति के ताले को तोड़ा गया. उन्होंने आईपीसी की धारा 217, 218, 201, 471 और 120-बी के तहत इंस्पेक्टर के खिलाफ कार्रवाई करने का अनुरोध किया था.
(भाषा से इनपुट)