बीजेपी के बुजुर्ग लालकृष्ण आडवाणी को सिर्फ नरेंद्र मोदी या राजनाथ सिंह पर ही गुस्सा नहीं आता. शुक्रवार को उन्होंने अपने ब्लॉग में जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह को फटकार लगाते हुए कहा कि वह बीजेपी के विचारों से असहमत हो सकते हैं, लेकिन ‘छल कपट’ और ‘धोखे’ जैसे शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए. आडवाणी उमर के उस बयान पर प्रतिक्रिया दे रहे थे, जिसमें उन्होंने धारा 370 के मुद्दे पर बीजेपी की नए सिरे से परवान चढ़ी मांग की आलोचना की थी. संविधान की धारा 370 जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा और सहूलियतें देती है.कॉमन सिविल कोड और रामजन्मभूमि मंदिर के अलावा इस धारा को हटवाना भी बीजेपी का कोर एजेंडा रहा है.
आडवाणी ने अपनी शुक्रवार की ब्लॉग एंट्री में जम्मू कश्मीर के मसले पर संविधान सभा में हुई बहस का हवाला देते हुए यह भी कहा कि पंडित नेहरू की जिद का नतीजा है यह प्रावधान. इसका जिक्र करते हुए आडवाणी ने उमर को बताया कि जब संविधान सभा में धारा 370 की चर्चा हुई थी, तब जनसंघ बना भी नहीं था. इसके बावजूद ड्राफ्ट कमेटी में हुई बहस के दौरान लगभग पूरी कांग्रेस पार्टी इस प्रस्ताव के खिलाफ थी.
उस वक्त के गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के निजी सचिव वी शंकर की किताब ‘माई रेमनिसंस ऑफ सरदार पटेल’ के हवाले से आडवाणी ने कहा कि नेहरू ने विदेश यात्रा पर जाने से पहले उमर अब्दुल्ला के दादा शेख अब्दुल्ला के साथ मिलकर मसौदे को अंतिम रूप दिया था. बकौल आडवाणी संविधान सभा के सामने मसौदा चर्चा के लिए 1949 में आया. बहस के दौरान नेहरू विदेश दौरे पर थे और उनके साथी कांग्रेसी नेता गोपालस्वामी अयंगर को मसौदे पर आई प्रतिक्रियाओं का जवाब देना था. आडवाणी का कहना है कि पटेल इसके खिलाफ थे, मगर बाद में यह कहकर शांत हो गए कि ‘अंतरराष्ट्रीय जटिलताओं’ के चलते सिर्फ अस्थायी दृष्टिकोण बनाया जा सकता है.