वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी मानते हैं कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले से उनकी अयोध्या रथयात्रा की सार्थकता की पुष्टि हुई है. लेकिन वह चाहते हैं कि बातचीत के जरिये राम मंदिर के निर्माण को तरजीह दी जाए.
आडवाणी ने 1989 में रथयात्रा शुरू की थी और वह मंदिर अभियान का प्रमुख चेहरा थे. उन्होंने उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के पिछले हफ्ते के फैसले में आस्था को कानून से उपर रखने संबंधी आलोचनात्मक टिप्पणियों को खारिज करते हुए कहा कि यह केवल ‘कानून द्वारा आस्था में भरोसा’ करने का मामला है.
उन्होंने अपने पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी के इस सुझाव का मजबूती से समर्थन किया कि मुस्लिम सरयू नदी के किनारे पर ‘परिसर से बाहर’ मस्जिद बना सकते हैं. अगले महीने 84 वर्ष के होने जा रहे आडवाणी ने बयानों में बड़ी सावधानी दिखाई और वह फैसले के बाद खुद को विजयी नहीं दर्शाने से बचते रहे और ऐसा कुछ नहीं कहना चाहा जो मुस्लिम समुदाय में खलबली पैदा करे. {mospagebreak}
जब आडवाणी से पूछा गया कि क्या 1989 में सोमनाथ से अयोध्या तक के उनके मंदिर अभियान को न्यायालय के फैसले ने दोषमुक्त किया है तो उन्होंने कहा, ‘हां मैं निर्दोष महसूस करता हूं क्योंकि मेरा मानना है कि 1989 तक भाजपा इस (मंदिर) आंदोलन का हिस्सा नहीं थी जो कि दरअसल 1949 में शुरू हुआ था.’
आगे की कार्रवाई और बातचीत के माध्यम से समझौते के लिए भाजपा और संघ परिवार के प्रयास के सवाल पर भाजपा नेता ने कहा, ‘आगे का रास्ता यही है कि दोनों समुदायों के बीच इस पर सहमति हो कि यह होना चाहिए (अयोध्या में मंदिर निर्माण)’. आडवाणी ने कहा कि जहां तक फैसले की बात है यह उन लाखों लोगों की आकांक्षा को प्रकट करता है जो उस स्थान पर राम मंदिर बनाना चाहते हैं जहां कि राम का जन्मस्थान माना जाता रहा है.
उन्होंने कहा, ‘लेकिन यह अच्छा होगा कि यह न केवल अदालत का फैसला हो बल्कि दोनों समुदायों का भी यही निर्णय हो.’ उन्होंने इस बात की संभावना को भी खारिज कर दिया कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले से काशी और मथुरा में धर्मस्थलों से जुड़े विवादों पर भी लोगों को इस आधार पर आवाज उठाने का मौका मिल जाएगा कि कानून से उपर आस्था को वरीयता दी गयी है. आडवाणी ने कहा, ‘नहीं नहीं. दोनों के बीच कोई समानता नहीं है. इसी वजह से बातचीत के दौरान (2004 से पहले राजग सरकार और दोनों समुदायों के नेताओं के बीच) हिंदुओं ने मुस्लिम पक्ष, जिसने इस तरह की आशंका जताई थी, को स्पष्ट संदेश दिया था कि वे समाधान पर स्वैच्छिक सहमति जताएंगे तो ऐसा नहीं होगा.’ {mospagebreak}
उन्होंने कहा, ‘हमने तब इस बारे में बातचीत की थी. मुझे नहीं लगता कि इस फैसले में ऐसा है क्योंकि कुल मिलाकर अयोध्या एक मुद्दा रहा है जिसने देश के राजनीतिक इतिहास को बदल दिया.’ हालांकि भाजपा संसदीय दल के अध्यक्ष ने साक्षात्कार के दौरान इस बारे में बातचीत नहीं की कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले ने 1992 में विवादित ढांचे के विध्वंस को जायज करार दिया है या नहीं. इस मुद्दे पर उनकी तरफ से कोई टिप्पणी नहीं आई कि फैसले ने विध्वंस मामले को हल्का किया या नहीं.
आडवाणी का आज भी मानना है कि जिस दिन विवादित ढांचे को गिराया गया वह ‘उनके जीवन का सबसे दुखद दिन’ था. आडवाणी के मुताबिक उन्होंने हमेशा कहा है कि इस आंदोलन में जो भी मंदिर के निर्माण के पक्ष में रहे वे जोर जबरदस्ती से यह नहीं करना चाहते थे. उन्होंने कहा, ‘और जब मैंने यह कहा था कि मैं उस दिन (छह दिसंबर 1992 को) काफी तनाव महसूस कर रहा था तो दिवंगत प्रमोद महाजन जो मेरे साथ थे उन्होंने कहा, ‘आप इस मुद्रा में यहां क्यों बैठे हैं. हमें लखनऊ चलना चाहिए.’
आडवाणी के अनुसार, ‘मैंने कहा ठीक है. मैं शाम करीब साढ़े पांच-छह बजे निकल गया. मैं लखनऊ पहुंचा और लोकसभा अध्यक्ष को संदेश भेजा कि मैं विपक्ष के नेता के तौर पर इस्तीफा दे रहा हूं. और मेरा अफसोस इसलिए था कि कोई भी राजनीतिक दल कुछ भी पाना चाहता है तो वह उसे कानूनी प्रक्रिया से हासिल करना चाहता है, दबावपूर्वक नहीं.’ आडवाणी ने कहा कि 1949 में राम की प्रतिमा स्थापित की गयी और अदालत ने आदेश दिया था कि उसे हटाया नहीं जाना चाहिए. {mospagebreak}
उन्होंने कहा, ‘लंबे समय तक दरवाजे बंद रहे और जो लोग दर्शन करने आते थे वे बाहर से किया करते थे. इसके बाद राजीव (गांधी) के शासन में अदालत के आदेश पर दरवाजे खोले गये. मंदिर का शिलान्यास भी राजीव के शासनकाल में किया गया.’ भाजपा नेता ने कहा, ‘अत: मेरा रुख रहा है कि जो लोग मंदिर बनाना चाहते हैं वे कुछ भी कानून के खिलाफ नहीं कर रहे. जो इसका विरोध कर रहे हैं वे अदालत के आदेश का विरोध कर रहे हैं.’
आडवाणी ने कहा कि लोग उनसे कहते हैं कि उनकी रथयात्रा ने इस बात पर बहस छेड़ दी थी कि वास्तविक धर्मनिरपेक्षता और छद्म धर्मनिरपेक्षता क्या है. उन्होंने कहा, ‘उस वक्त पहली बार मैंने छद्म धर्मनिरपेक्षता शब्द का इस्तेमाल किया था. यहां तक कि आजादी के शुरूआती सालों में इस तरह के सवाल पर किस तरह का रुख होना चाहिए इसे लेकर दो विचार थे.’ आडवाणी के अनुसार, ‘एक को मैं वास्तविक धर्मनिरपेक्षता कहूंगा. मेरा मानना है कि मेरे शब्द छद्म धर्मनिरपेक्षता के लिहाज से काफी कुछ किये जाने की जरूरत है क्योंकि इन दिनों लोग वोट बैंक को लेकर चिंतित हैं. इसके लिए वे कोई रुख ले सकते हैं.’
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले में कानून से उपर आस्था देखने वाले मुस्लिम समुदाय के एक वर्ग की व्याकुलता के बारे में पूछे जाने पर आडवाणी ने कहा, ‘यदि यह फैसला नहीं हुआ होता तो मैंने यह नहीं कहा होता कि यह मामला आस्था बनाम कानून का नहीं है. यह कानून द्वारा आस्था के समर्थन का मामला है. मैंने यह इसलिए कहा क्योंकि फैसले में आया.’ {mospagebreak}
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में गृह मंत्री और उप प्रधानमंत्री रह चुके वरिष्ठ भाजपा नेता ने याद करते हुए कहा कि 2004 में एक वक्त ऐसा था जब मुस्लिम राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले से अपना दावा वापस लेना चाहते थे. लेकिन इस पर ज्यादा कुछ नहीं हो सका क्योंकि चुनाव आ गये और भाजपा सत्ता में नहीं आयी. उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि भाजपा और संघ परिवार की इस पहल को गलत समझा जा सकता है.
उन्होंने कहा, ‘मैंने पहले ही कई साधु संतों से बातचीत की है जो मुस्लिमों से भी संपर्क में हैं. मैंने उनसे कहा कि पहल करें और उनसे बातचीत करें. वे उनसे बातचीत कर रहे हैं.’ आडवाणी ने फैसले पर संघ के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि यह फैसला न केवल अयोध्या के इतिहास में बल्कि दोनों समुदायों के बीच रिश्तों में भी निर्णायक बिंदु होना चाहिए. इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा, ‘भाजपा की तरफ से हमने जो वक्तव्य जारी किया उसमें यह भाव था कि इसे राष्ट्रीय एकता की ओर बढ़ने का एक मौका बनाना चाहिए.’
आडवाणी ने अपनी आत्मकथा ‘माय कंट्री माय लाइफ’ में अयोध्या विवाद को सुलझाने के लिए सुझाये तीन विकल्पों के तौर पर विधेयक, न्यायिक फैसला और हिंदू तथा मुस्लिम समुदायों के प्रतिनिधियों के बीच सौहार्द्र से समझौते का जिक्र किया था. लेकिन अब उन्हें लगता है कि अदालत का फैसला और बातचीत के जरिये समाधान दोनों से इस मसले का सर्वश्रेष्ठ हल निकाला जाना चाहिए.