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आडवाणी को रिलीज पसंद है...

आडवाणी को रिलीज पसंद है वो भी तब से जब उन्होंने राजनीतिक बंदी के तौर पर जेल यात्राएं की थीं. अब भी जब वो अक्सर किताबें रिलीज करते हैं. ये बात खुद लालकृष्ण आडवाणी ने एक बुक रिलीज के दौरान ही कही. ये अलग बात है कि अपने ऊपर लिखी एक किताब की रिलीज पर पिछले हफ्ते ही आडवाणी सख्त नाराजगी जता चुके हैं.

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लालकृष्ण आडवाणी
लालकृष्ण आडवाणी

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आडवाणी को रिलीज पसंद है वो भी तब से जब उन्होंने राजनीतिक बंदी के तौर पर जेल यात्राएं की थीं. अब भी जब वो अक्सर किताबें रिलीज करते हैं. ये बात खुद लालकृष्ण आडवाणी ने एक बुक रिलीज के दौरान ही कही. ये अलग बात है कि अपने ऊपर लिखी एक किताब की रिलीज पर पिछले हफ्ते ही आडवाणी सख्त नाराजगी जता चुके हैं.

एक 'रिलीज' समारोह में ही आडवाणी ने ये स्वीकार किया कि मुझे तो 'रिलीज' बहुत पसंद है. अब से नहीं बल्कि तब से जब मेरा राजनीति में शुरुआती दौर था. जब जेल यात्राएं की लेकिन तब रिलीज का मतलब कुछ और था और अब कुछ और है. तब रिहाई थी और अब किताबों का विमोचन. ये रोचक और बेबाक बयान है.

आडवाणी को पसंद नहीं आई खुद पर लिखी किताब
पूर्व उप-प्रधानमंत्री और बीजेपी के मार्गदर्शक बुजुर्ग नेता लाल कृष्ण आडवाणी के इस बयान का एक दूसरा पहलू भी है कि हाल ही में एक रिलीज आडवाणी को नागवार गुजरी वो थी उनके पुराने सहयोगी की किताब की रिलीज . विश्वंभर नाथ श्रीवास्तव की खुद आडवाणी पर लिखी किताब 'आडवाणी के साथ 32 साल'.

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किताबों के लॉन्च में जाने को तैयार रहते हैं आडवाणी
करुणा की धर्म में भूमिका जैसे विषय पर अपने दोस्त वेद प्रकाश नंदा की किताब का विमोचन करने के बाद आडवाणी ने कहा कि किताबें पढ़ने की आदत बचपन से ही पड़ गई थी. आज भी कोई किताब दिख जाए तो एक दो पन्ने पढ़ ही लेता हूं. हां, किताबों के लोकार्पण के लिए कोई भी आमंत्रण देता है तो मैं जाना चाहता हूं. क्योंकि बात 'रिलीज' की जो होती है.

किसी धर्म की निंदा को बताया बुरा
आरएसएस से जुड़े वेद प्रकाश नंदा की किताब 'कंपेशन इन धर्म' रिलीज करते समय आडवाणी ने ये भी कहा कि किसी भी धर्म की निंदा करना सबसे बुरा है. क्योंकि उससे कहीं ना कहीं अपनी उपासना पद्धति या धर्म की भी निंदा होती है. करुणा के बगैर किसी भी धर्म का अस्तित्व नहीं हो सकता.

भागवत बोले- करुणा से खत्म होगा आतंकवाद
कुछ ऐसी ही बात संघ प्रमुख मोहन राव भागवत ने भी कही. उन्होंने कहा कि धर्म का जो रूप दिखता है वो है करुणा. लेकिन इतिहास में ऐसे भी क्षण आए हैं जब धर्म की मूल भावना करुणा को छोड़ कर लोगों ने सिर्फ आवरण को पकड़ें रखा और ऐसे कृत्य किए कि धर्म को भी शर्म आई. करुणा तो तभी अपना मर्म साकार करती है जब हम दूसरे के दुख से खुद को एकाकार करते हैं. दुनिया के सारे धर्मों का आधार भी यही है. करुणा के जरिये ही दुनिया से हिंसा और खूनखराबा, आतंक और नफरत जैसी भावनाएं खत्म हो सकती हैं. लेकिन दलितों के खिलाफ हो रही हिंसा पर भागवत ने कोई जवाब नहीं दिया.

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