जसवंत सिंह ने बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी पर ताजा हमला बोलते हुए कहा है कि लोकसभा में पिछले साल वोट के बदले नोट घोटाले के नाटकीय घटनाक्रम में आडवाणी केंद्र में थे. जसवंत ने आउटलुक पत्रिका से कहा है कि बड़ा तरस आता है. एक शख्स जिसकी प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा थी और इस इच्छा ने उनसे कई गलतियां कराईं.
आडवाणी ने सांसदों को नोट दिखाने की सहमति दी
उन्होंने कहा कि क्या आप जानते हैं कि वोट के बदले धन का घटिया मामला गलत फैसले का एक अच्छा खासा उदाहरण है और यह भी कचोटता है कि उन्होंने खड़े होकर इसे रोका नहीं. इस पूरे नाटक के केंद्र में आडवाणी जी थे. पिछले साल जुलाई में विश्वास मत के दौरान बीजेपी के तीन सांसदों द्वारा नोटों की गड्डियां प्रदर्शित करने के मामले का जिक्र करते हुए जसवंत ने कहा कि तथ्य बहुत स्पष्ट हैं और जब आडवाणी के सहयोगी रहे सुधींद्र कुलकर्णी उनके घर एक अजनबी शख्स को लेकर पहुंचे तो उन्हें पूरे घटनाक्रम की जानकारी मिली थी. उन्होंने कहा कि मुझसे पूछा नहीं गया, लेकिन मैं इस बात को जानकर अचरज में था कि आडवाणी जी ने सांसदों को संसद में नोट दिखाने की सहमति दे दी. जसवंत ने कहा कि आडवाणी के पास दो विकल्प थे. पहला विकल्प यह था कि या तो धन स्पीकर के पास ले जाया जाए या फिर सदन में दिखाया जाए. लेकिन उन्होंने सांसदों से कहा कि संसद में धन प्रदर्शित करें.
आडवाणी पूरी तरह विफल रहे
जसवंत सिंह ने कहा कि यह बड़े दुख का विषय है कि आडवाणी एक नेता के रूप में नेतृत्व के अपने दायित्व में पूरी तरह विफल रहे. एक नेता को नजीर पेश कर नेतृत्व की जिम्मेदारी निभानी चाहिये न कि केवल अस्पष्ट और अनिर्दिष्ट संकेतों और आशंकाओं भरे आदेश से. सेना में नेतृत्व के जिम्मेदारी लेने का उदाहरण देते हुए जसवंत सिंह ने कहा कि इस बात के अनेक उदाहरण हैं कि जब भी ऐसी कोई नौबत आई, जिसमें दिक्कत हो सकती हो या आलोचना की आशंका रही हो तब आडवाणी या तो चुप रहे या अपनी जिम्मेदारी किसी और को दे दी. यह एक नेता के लक्षण नहीं है.
राजनाथ सिंह को उठाया नहीं जाना चाहिए था
अरुण शौरी द्वारा बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह को ‘हम्प्टी-डम्प्टी’ कहे जाने पर जसवंत ने कहा कि बीजेपी अध्यक्ष एक प्रांतीय नेता हैं, जिन्हें कभी भी उठाया नहीं जाना चाहिए था. बीजेपी के संबंध में उन्होंने कहा कि अब यह राजनीतिक दल नहीं है. यह एक संप्रदाय या पंथ है. यह कुछ लोगों की मालिकाना साझेदारी तक सिमट गया है. यह सब आडवाणी के नेतृत्व में हुआ है. सतही तौर पर कहा जाए तो बीजेपी के 116 सांसद आज बेघर की तरह हैं. पूर्व विदेश मंत्री ने कहा कि उन्होंने ‘ऑपरेशन पराक्रम’ के दौरान सैनिकों की तैनाती सरीखे फैसलों में समर्थन नहीं किया था. उन्होंने कहा कि वे तब भी बहुत व्यथित हुए थे, जब बीएसएफ को बांग्लादेश भेजा गया था और मीडिया में आई एक आहत करने वाली तस्वीर में बीएसएफ के एक जवान को बांस पर डालकर ले जाते हुए दिखाया गया था. जसवंत ने कहा कि मुझे कभी भी इस बात का जवाब नहीं मिल सका कि बीएसएफ को बांग्लादेश जाने का आदेश किसने दिया था. क्या गृह मंत्रालय ने नहीं.