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कर्नाटक के नतीजों से मायावती का बढ़ा उत्साह, अब इन राज्यों में BJP से लेंगी मोर्चा

यूपी के उपचुनावों और अब कर्नाटक में अपने गठबंधन को मिली जीत से उत्साहित होकर मायावती तीन और राज्यों में बीजेपी के खिलाफ मोर्चेबंदी की तैयारी कर रही हैं.

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बसपा सुप्रीमो मायावती
बसपा सुप्रीमो मायावती

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साल 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी में शून्य सीटें हासिल करने पर मायावती का करियर खत्म होने की भविष्यवाणी की जा रही थी. लेकिन यूपी के उपचुनावों और अब कर्नाटक में अपने गठबंधन को मिली जीत से उत्साहित होकर मायावती तीन और राज्यों में बीजेपी के खिलाफ मोर्चेबंदी की तैयारी कर रही हैं.

यूपी की बड़ी हार के बाद मायावती का रुख लचीला हुआ है. हाल में उन्होंने यूपी के गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में सपा उम्मीदवारों का समर्थन किया और इस तरह बीजेपी को उसके गढ़ में ही मात दे दी. बुधवार को वह जनता दल सेकुलर के नेता एचडी कुमारस्वामी के शपथग्रहण समारोह में शामिल होने जा रही हैं.

मायावती ने दक्ष‍िण की तरफ कदम बढ़ाया है. कर्नाटक में उनकी पार्टी जेडीएस के साथ गठबंधन में शामिल थी. बसपा वहां एक सीट हासिल करने में कामयाब भी हुई है. राज्य बसपा के अध्यक्ष एन महेश को कोलेगल सीट पर विजय मिली है.

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2019 की रणनीति पर काम शुरू किया

लेकिन मायावती यहीं रुकने वाली नहीं हैं. वह आगे भी बीजेपी को घेरने की तैयारी में लग गई हैं. पिछले कुछ दिनों वह दिल्ली में थीं और उन्होंने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में पार्टी के विधानसभा उम्मीदवारों के नाम तय करने और रणनीति बनाने पर काम किया. इन तीनों राज्यों में फिलहाल बीजेपी का शासन है. वह इन राज्यों के बसपा नेताओं से मिलकर वोटरों के मसलों के बारे में फीडबैक ले रही हैं.

कांग्रेस ने गठबंधन के लिए किया संपर्क

मायावती से जुड़े सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस ने इन तीनों राज्यों में गठबंधन के लिए उनसे संपर्क किया था, लेकिन अभी उन्होंने इस पर कोई जवाब नहीं दिया है.

मायावती अब कर्नाटक में तो बेस बना ही चुकी हैं, हरियाणा में भी उन्होंने विपक्ष के नेता ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल के साथ गठजोड़ किया है. लोकसभा चुनाव में मायावती यूपी के अलावा अन्य राज्यों में भी अपने कैंडिडेट खड़े कर सकती हैं.

यूपी में 2019 के लिए एक चुनाव पूर्व गठजोड़ बनाने के लिए अखिलेश उनसे संपर्क कर चुके हैं. हालांकि, यूपी के बीजेपी नेता और प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी कहते हैं, 'मायावती अपने राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं. उन्हें पिछले लोकसभा चुनाव में एक सीट भी नहीं मिली थी और 2017 के विधानसभा चुनाव में उनकी बुरी तरह हार हुई थी. उन्होंने अगर जाति की राजनीति जारी रखी तो बसपा फिर कभी नहीं उभर पाएगी.'

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