दो मंत्री गए, अब प्रधानमंत्री की बारी. यही इरादा है बीजेपी का. यही मांग है बीजेपी की और इसी मुद्दे पर सड़क पर उतर आयी है बीजेपी. रविवार को पार्टी के युवा मोर्चा ने अपने विरोध के रंग दिखाए, आगे बीजेपी सड़क पर अपने तेवर दिखाएगी. सवाल पूछे जा रहे हैं कि जिनकी वजह से कानून मंत्री की कुर्सी गयी उसे कुर्सी पर बैठे रहने का कितना का हक है?
विरोध और दबाव की सियासत में दो मंत्री क्या नपें बीजेपी का हौसला कुलांचे मारने लगा. अब तो सीधी नजर सरकार के 'सरदार' के सिर पर टिकी है.
वहीं दो इस्तीफों के बाद कांग्रेस बैक फुट पर तो है, लेकिन लगे हाथ बीजेपी को भी उनकी असल जगह दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही. कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने कहा, भारतीय जनता पार्टी की तो आदत है, वो हर दिन किसी ना किसी का इस्तीफा मांगते रहते हैं. कभी मंत्री का कभी प्रधानमंत्री का. जनता ने उन्हें विपक्ष की भूमिका निभाने की जिम्मेदारी दी है, बदकिस्मती है कि जो जिम्मेदारी उन्हें दी है, वो ठीक से नहीं निभा पा रहे हैं.
मुश्किल यह है कि कांग्रेस कितनों का मुंह बंद कराएगी. राइट की छोड़िये अब तो लेफ्ट भी पीएम के बने रहने पर सवाल उठा रहा है. सीपीआई (एम) नेता डी राजा ने कहा कि इस्तीफों के बावजूद अभी कई मुद्दे हैं जिनपर पीएम को जवाब देना होगा.
जिन दो मंत्रियों की छुट्टी हुई है, उनमें से एक घूसकांड में तो दूसरे घोटाले की जांच में घालमेल के आरोपों में नप गए. चलिए माना कि पवन बंसल अपने परिवार के फेर में गए, लेकिन अश्विनी कुमार का क्या कहेंगे. उनपर लगे आरोपों का सिरा तो प्रधानमंत्री तक पहुंचता है और शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री आखिर तक दोनो मंत्रियों का इस्तीफा नहीं चाहते थे.
खबरें आईं हैं कि सोनिया गांधी के दबाव में ही इस्तीफा हुआ है. इस वजह से सोनिया और प्रधानमंत्री के बीच खटास की बातें भी आम हुई. आलम यह था कि कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी को बयान जारी करना पड़ा कि दो मंत्रियों को हटाने का फैसला प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी ने मिल कर लिया है.
कुछ जानकार तो ये भी मानते हैं, कि मतभेद की खबरें आम होने के पीछे भी एक सियासत है. ताकि तमाम घोटालों के आरोपों के बीच भी गांधी परिवार की छवि बेदाग बनी रहे. लेकिन सवाल यही है कि क्या ऐसा मुमकिन है?