मौत की सजा पाये अफजल गुरु की क्षमादान याचिका पर विलंब को लेकर उठ रहे सवालों के बीच दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने सोमवार को कहा कि मुद्दे की संवेदनशील प्रकृति के कारण इस पर निर्णय करने में लंबा समय लगा.
शीला ने संसद पर हमले के दोषी की फाइल को निस्तारित करने में हुए विलंब के लिए दिल्ली सरकार के दो मुख्य सचिवों द्वारा दी गयी राय को जिम्मेदार बताया. दोनों वरिष्ठ नौकरशाहों ने राष्ट्रीय राजधानी में फांसी दिये जाने की स्थिति में कानून एवं व्यवस्था पर पड़ने वाले असर का मुद्दा उठाया था. सूत्रों ने बताया कि इनमें से एक ने शहर में फांसी दिये जाने का विरोध किया था. यह राय देने वाले नौकरशाह सेवानिवृत्त हो चुके हैं.
फाइल को पास करने में करीब चार साल का विलंब होने के बारे में पूछे गये एक सवाल के जवाब में शीला ने कहा, ‘मैंने पिछले साल चुनाव प्रचार अभियान (लोकसभा चुनाव) में कहा था कि हमने फाइल इसलिए नहीं भेजी क्योंकि यह एक संवेदनशील मामला है’.
दिल्ली सरकार ने अफजल की क्षमादान याचिका पर पिछले सप्ताह उप राज्यपाल तेजेन्दर खन्ना को अपनी राय भेज दी थी. सरकार ने कहा कि उसे फांसी पर कोई आपत्ति नहीं है लेकिन इसके कारण कानून एवं व्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों को ध्यान में रखा जाना चाहिए. मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने स्पष्ट किया कि दिल्ली सरकार ने अफजल के बारे में उच्चतम न्यायालय के निर्णय का कभी विरोध नहीं किया है. {mospagebreak}
उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर भारत के राष्ट्रपति का निर्णय ही अंतिम होगा. उन्होंने कहा, ‘मैं यह स्पष्ट करना चाहती हूं कि हमारा उच्चतम न्यायालय के निर्णय (अफजल के खिलाफ) का विरोध करने का कभी मकसद नहीं रहा. हम ऐसा कभी नहीं करेंगे. अफजल जेल में है और वह जेल में ही रहेगा. अंत में भारत की राष्ट्रपति उस पर (क्षमादान याचिका) हस्ताक्षर करेंगी’.
शीला ने कहा कि मौजूदा एवं पूर्व मुख्यसचिव ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि यह एक संवेदनशील मुद्दा है तथा शहर में कानून एवं व्यवस्था की समस्या उत्पन्न हो सकती है (अफजल को यहां फांसी देने पर). मुख्यमंत्री ने कहा कि बाद में जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी कहा था कि यदि अफजल को फांसी दी गयी तो कानून एवं व्यवस्था की समस्या हो सकती है.
उन्होंने कहा, ‘अंत में दो ही विकल्प बचते हैं. आजीवन कारावास या फांसी’. भाजपा अफजल संबंधी फाइल रोकने के लिए शीला पर हमले कर रही है तथा आरोप लगा रही है कि वह इस मुद्दे पर वोट बैंक की राजनीति खेल रही हैं. इस बीच उप राज्यपाल खन्ना ने कहा कि वह फाइल का अध्ययन कर रहे हैं तथा इसे शीघ्र ही गृह मंत्रालय के पास भेजा जायेगा.
दिल्ली सरकार ने फाइल को करीब चार साल तक अपने पास रखा तथा पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल आमिर कसाब को मुंबई हमले में मौत की सजा सुनाये जाने के बाद यह मुद्दा फिर से सुखिर्यों में आ गया. अफजल गुरु को 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हमला मामले में दोषी ठहराये जाने के बाद दिल्ली की एक अदालत ने 18 दिसंबर 2002 को उसे मौत की सजा सुनायी थी. दिल्ली उच्च न्यायालय ने 29 अक्तूबर 2003 को मौत की सजा को वैध ठहराया तथा बाद में चार अगस्त 2005 को उच्चतम न्यायालय ने अफजल की अपील को खारिज कर दिया.