नोटबंदी को लेकर विवाद महज लोगों को हो रही किल्लत तक सीमित नहीं है. अब के नये नोटों में इस्तेमाल भाषा पर भी सवाल उठने लगे हैं.
नोटों पर देवनागरी अंक क्यों?
AIADMK के सांसद तिरुचि शिवा ने बुधवार को राज्यसभा में 500 और 2000 रुपये के नए नोटों में देवनागरी अंकों के इस्तेमाल की निंदा की. शिवा की राय में ये कदम संविधान का उल्लंघन है.
उनके मुताबिक 'नए नोटों में हिंदी लिपि संविधान के अनुच्छेद 343 (1) के खिलाफ है. इसके तहत केंद्र सरकार आधिकारिक उद्देश्यों के लिए भारतीय अंकों के अंतर्राष्ट्रीय रूप का ही इस्तेमाल कर सकती है.'
'प्रचार का माध्यम नहीं नोट'
तिरुचि शिवा ने सदन में प्रशनकाल के दौरान ये मसला उठाया. उनका कहना था कि नये नोटों में देवनागरी लिपि का इस्तेमाल इस बात को दर्शाता है कि सरकार एक भाषा या एक भाषा समूह तो तरजीह दे रही है. शिवा ने आगाह किया कि इससे बाकी समूह अलग-थलग महसूस कर सकते हैं.
शिवा को नये नोटों में स्वच्छ भारत के लोगो के इस्तेमाल पर भी ऐतराज था. उनकी दलील थी कि सरकार नोटों को अपनी योजनाओं के प्रचार का माध्यम नहीं बना सकती.
संसद की मंजूरी क्यों नहीं?
AIADMK सांसद ने 1960 में राष्ट्रपति के उस आदेश की याद दिलाई जिसके मुताबिक केंद्रीय महकमों के हिंदी प्रकाशनों में देवनागरी अंकों के इस्तेमाल पर एकसमान नीति अपनाई जानी चाहिए. शिवा का कहना था कि 'नोट कोई केंद्र का हिंदी प्रकाशन नहीं है और ना ही वो महज एक वर्ग की जरुरत को पूरा करते हैं.'
शिवा के मुताबिक सरकार सिर्फ संसद में कानून पास करके ही नोटों में देवनागरी अंकों का इस्तेमाल कर सकती है. लेकिन ऐसा नहीं किया गया.