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ये 'अच्छे दिन' हैं या 'नंगे दिन', AIB के नए वीडियो पर एक टिप्पणी

एआईबी ( आल इंडिया बक** ) नामक बहुचर्चित ह्यूमर फैक्टरी ने भी इस तरह हंसाया कि मुखौटे में पश्चिम आयातित ट्रेंड, 'इंसल्ट ह्यूमर' का अपने देश श्रीगणेश हो गया.

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AIB knockout
AIB knockout

एक हफ्ते में अपने देश में हमारे नयन सुख की काफी चलती रही है. एक तरफ जहां हमारे लोकप्रिय प्रधानमंत्री मोदी ने अपने बड़े भाई तुल्य अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को बुलाकर दिल्ली में मीना बाजार की याद ताजा करा दी. वहीं दूसरी तरफ एआईबी ( आल इंडिया बक** ) नामक बहुचर्चित ह्यूमर फैक्टरी ने भी इस तरह हंसाया कि मुखौटे में पश्चिम आयातित ट्रेंड, 'इंसल्ट ह्यूमर' का अपने देश भी श्रीगणेश कर दिया.

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इस तरह हंसाने की कोशिश की करने वाली इस विधा का नाम रखा गया, 'एआईबी रोस्ट'. इस तंदूर में रोस्ट करने के लिए जिन दो मुर्गों को लाया गया वो थे फिल्म स्टार अर्जुन कपूर और रणवीर सिंह. इस कसरत में मास्टरशेफ की भूमिका में बॉलीवूड में फैमिली मेलोड्रामा वाली फिल्में बनाने वाले डायरेक्टर-प्रोड्यूसर, करण जोहर आये और साथ में एआईबी की पूरी टीम. 4000 रुपये प्रति टिकट की दर से टिकट खरीदकर आई आडियेंस का सिर्फ एक मकसद था, 'तुम मझे गालियां दो, मैं तुम्हे तालियां दूंगा.'

मुंबई में हजारों लोगों की इस खास आडिएंस वाले अपने तरफ के पहले इवेंट को देखकर ऐेसा लगा जैसे कपिल शर्मा, गुत्थी, दादी इत्यादि की भांडगिरी के दिन भी लदने वाले है. पेशे-ए-खिदमत है एक नए किस्म की 'इंसल्ट कॉमेडी' जिसमें गला फाड़कर हंसने के लिए ‘मन की बात’ की नहीं बल्कि 'तन की बात' की जरूरत है. ये शो यू ट्यूब पर भी मौजूद है. जिसके अब तक 44 लाख से ज्यादा बार देखा जा चुका है.

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इस 'ब्रो-रोस्ट' के आगमन से देश में टीनएजर्स को छुप-छुप कर देखने के लिए एक नया आइटम मिल गया है. देश में किसी कारगर साइबर लॉ की नामौजूदगी में इस लगाम कसने का स्कोप भी दिखता नजर नही आ रहा है. इस इवेंट के आयोजकों ने इसी बात का फायदा उठाते हुए इस पूरे इवेंट का वीडियो तीन हिस्सों में यूट्यूब पर परोस दिया. ये बात जरूर है कि देश में मनोरंजन के इस बदलते रूप से हजारों पैरेंट्स असहज हो रहे हैं और वे उसी तरह से इसका विरोध करने के लिए गुट बनाने में लग गए हैं, जैसे पहली बार इंडिया में केएफसी के आने के बाद हल्दीराम प्रेमियों ने बनाया होगा.

अभिव्यक्ति की आजादी की इस ताजी व्याख्या ने कई बड़े सवाल खड़े कर दिये है. हमारे लिए सबसे ज्यादा मायने क्या रखता है? मन की बात या सिर्फ तन की बात? हालांकि 'एआईबी' वालों ने तो विवाद की अगली कड़ी ‘स्तन की बात’ की भी तैयारी कर ली है. शो का शंखनाद बजाया करन जोहर ने लेकिन ये सुनिश्चित करते हुए कि इस 'इंसल्ट ह्यूमर' को देश का कोई मिडल क्लास परिवार नहीं देख पाएगा, इसका ऐलान करन जोहर ने स्टेज पर कदम रखते ही किया, ‘लेट दी फिल्थ बिगेन’ (आओ गन्ध मचाएं).'

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इस शो को इतना अधिक पॉलिटिकली इनकरेक्ट रखा गया कि इसका समूचा स्वर गुलजार के उस गाने से इंसपायर्ड लगा, 'कोई सगा नहीं, जिसे ठगा नहीं.' फिर चाहे पीएम मोदी हों, बच्चन परिवार, खान्स, कपूर या फिर फिल्म इंडस्ट्री की तमाम अभिनेत्रियों के शारीरिक गठन और उनके विवादास्पद इस्तेमाल. साथ ही, इस शो में मेल बॉडीज के प्रति भी कोई 'स्टेप ब्रदर्ली ट्रीटमेंट' नहीं किया गया और करण जोहर को भी मुर्गा बनाते हुए इस लेवल तक ला खड़ा कर दिया गया कि 'बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं, आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं.'

लोकतंत्र में अभिव्यक्ति के खुलेपन का ऐसा मंज़र आज़ाद हिन्दुस्तान में शायद पहली बार देखा गया हो. 'रॉक्स्टिंग' दरअसल 1949 में न्यूयॉर्क में शुरू हुआ एक कॉमिक आर्ट फॉर्म है जो बाद में दुनिया भर में जंगल की आग की तरह फैला.

ये देखना दिलचस्प रहा कि दर्शकों को जबरदस्ती हंसाने के लिए एक प्रयोगशाला जैसा माहौल बनाया गया जिसकी सिर्फ एक ही मर्यादा तय की गई, कि किसी तरह की मर्यादा का कोई पालन नहीं होगा. इस ऐतिहासिक शो में अपनी बातों को ईमानदारी से कहने का जो व्याकरण अपनाया गया वो ये कि हम किसी भी तरह की सांकेतिक भाषा का प्रयोग भला क्यों करें. यू ट्यूब पर इस वीडिया के साथ एक डिसक्लेमर भी है, 'दिस वीडियो इस फिल्दी, रूड एंड ओफेंसिव'.

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'एआईबी' के कॉमेडियन आशीष सैकिया ने बताया कि अभिनेत्री परिणीति चोपड़ा नहीं आईं, क्योंकि उन्हें ये बता दिया गया था कि इस शो में 4000 लोगों के सामने 10 लोग मिलकर एक आदमी की स्टेज पर भी 'बजाएंगे' और यही वजह सुनकर करण जोहर मुंह में पानी भरकर आ गए हैं कि ऐसा मौका फिर कहां मिलेगा! हम उनके शुक्रगुज़ार हैं.

 दूसरे रोस्टर रोडीज शो के मशहूर रघु राम ने बड़े गर्व से बताया की उन्होंने अभी से पहले एक साथ इतने महिला गुप्तांगों के दर्शन ऑडिशन के दौरान ही किए हैं. उन्होंने बड़े शान से कहा, 'गालियां दो, लाखों *** देखेंगे.' उन्होंने एक और भद्दी गाली दी और कहा कि मैंने तुम्हें (एआईबी वालों को) 50 व्यूज और दिए.

आगे एआईबी की एकमात्र महिला सदस्य अदिति मित्तल को लेकर भी भद्दी टिप्पणी की गई. इस शो ने एक तरह से देश में साइबर कानूनों की गैरमौजूदगी के माहौल में अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर लोकतंत्र के छाती पर चढ़कर मूंग डालने से काम कोई काम किया हो, ऐसा लगता तो नहीं है.

इस शो में हजारों लोग आए लेकिन इसे पूरी दुनिया के अरबों लोगों तक परोसने में ‘आवारा (डिजिटल ) मीडिया’ ने कोई कसर नहीं छोड़ी है. इस नई ‘इंसल्ट कॉमेडी’ की स्वघोषित क्रांति के प्रैक्टीशनर्स किसी सरकारी स्कूल के वे लौंडे-लफाड़े लगे जिनकी कोई गर्लफ्रेंड शायद इसलिए भी नहीं बन पाती थी क्योंकि उन्हें हमेशा ‘लिंग ’ का अनुवाद ‘सेक्स’ समझ में आता था. जिनके लिए स्त्री के गुप्तांग और चूहे के बिल में कोई फर्क नहीं था.

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उनकी विकृति और कुंठा वाली कॉमेडी को हजम करने के लिए हज़ारों रुपये देकर अंग्रेजी में हंसने के लिए हज़ारों लोगों की भीड़ ने मोदी के भारत में 'मोरल पोलिसिंग' में लगे बजरंगियों को एक अतिरिक्त काम जरूर दे दिया.

लगता है ये शो अपने देश में नया विवाद खड़ा करेगा. ऐसा विवाद जिसमें किसी भी बच्चे के मां-बाप के पास सोशल मीडिया की क्वालिटी को फिल्टर करके अपने बच्चों को परोसने के लिए कोई रास्ता समझ में न आ रहा हो . उन बच्चों को तो उनके बर्थडे पर उन्होंने खुद ही काफी पहले ही आईफोन, आईपैड, और लैपटॉप गिफ्ट कर दिए हैं. पेरेंट्स भी करें तो क्या, इन मुद्दों पर चर्चा के लिए सिर्फ वीकेंड्स ही मिल पाते हैं और इस साल तो सबसे अधिक लॉन्ग वीकेंड्स हैं जिनमे घूमने के लिए काफी पहले ही ट्रेवल प्लान्स बना कर सस्ती टिकट बुक की जा चुकी हैं.

अपना देश भी है बड़ा दिलचस्प . देश को इंतज़ार था , ‘अच्छे दिन’ का और 'एआई बी' ने परोस दिए ‘नंगे दिन’. देश के टीनएजर्स और कामुकता के मद में अंधे दर्शकों का जोश देखकर लग रहा है कि जैसे उन्हें होली-दिवाली एक साथ मनाने का मौका मिल गया हो.

यह देखना दिलचस्प होगा कि यूट्यूब पर वायरल बन चुके इस 'सोफिस्टिकेटेड' चोंचले को रोकने के लिए कोई पहलाज निहलानी को ढूंढेगा या महाराष्ट्र सरकार अब जागकर पता लगाएगी कि इस शो के आयोजकों को परमिशन किसने दी. यह भी हो सकता है कि महाराष्ट्र चुनाव में बुरी तरह पिट चुकी एमएनएस कार्यकर्ताओं को बिजी रहने के लिए आखिर एक काम मिल ही गया.

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हालांकि एक बात तो तय है कि फोटोशॉप के रास्ते ही सही लेकिन लगातार स्वच्छ होते भारत में बराक भाई साहब के पैर पड़ते ही ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ के मायने पुनर्परिभाषित जरूर हो गए. चलिए आप भी एक ‘लाइक’ बटन दबा ही दीजिए, आखिर ‘डिस लाइक’ का ऑप्शन आपको दिया ही किसने है.

(पंकज दुबे बेस्टसेलिंग किताब 'लूजर कहीं का' के लेखक हैं. वह पत्रकारिता से होते हुए फिल्ममेकिंग की दुनिया में आए. मुंबई में रहते हैं. उनसे संपर्क का पता carryonpd@gmail.com है.)

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