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मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक में हलाला को समर्थन, 10 शरिया कोर्ट को मंजूरी

जफरयाब जिलानी ने कहा कि दिल्ली में शरिया क्लासेज भी लगाई जाएंगी. जिसके जरिए मुसलमानों को इस्लामिक कानून के बारे में जागरुक किया जाएगा.

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दिल्ली में हुई AIMPLB की बैठक
दिल्ली में हुई AIMPLB की बैठक

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शरिया कोर्ट को लेकर पूरे देश में चर्चा के बीच आज ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने इस मसले पर दिल्ली में बैठक की. बैठक में 10 दारुल कजा (शरिया कोर्ट) के प्रस्ताव आए थे, जिन्हें बोर्ड ने मंजूरी दे दी है. जल्द ही इनका गठन किया जाएगा.

मीटिंग के बाद बोर्ड की तरफ से कहा गया कि दारुल कजा (शरिया कोर्ट) देश की न्यायिक व्यवस्था के तहत आने वाले कोर्ट की तरह नहीं है यानी यह कोई समानांतर अदालत नहीं है. बोर्ड ने बीजेपी और आरएसएस पर शरिया कोर्ट के नाम पर राजनीति करने का आरोप लगाया.

मीटिंग के बाद AIMPLB के सचिव और वरिष्ठ वकील जफरयाब जिलानी ने बताया कि हमें 10 जगह दारुल कजा स्थापित करने के प्रस्ताव मिले हैं. उनके मुताबिक, जल्द ही तीन जगह दारुल कजा (शरिया कोर्ट) गठित किए जाएंगे.

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इसके अलावा उन्होंने कहा कि दिल्ली में शरिया क्लासेज भी लगाई जाएंगी. जिसके जरिए मुसलमानों को इस्लामिक कानून के बारे में जागरुक किया जाएगा. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि दारुल कजा समानांतर कोर्ट नहीं है. इस मसले पर मीडिया में बेवजह बवाल किया जा रहा है.

हर जिले में बनाने का विचार नहीं

जफरयाब जिलानी ने हर जिले में दारुल कजा का गठन करने की बात को नकारते हुए कहा कि हमने कभी भी देश के हर जिले में इसके गठन की बात नहीं कही. उन्होंने कहा कि जहां दारुल कजा की जरूरत है, वहां इसके गठन का हमारा विचार है और जहां के लिए लोगों की ऐसी मांग आई हैं.

निकाह-हलाला पर क्या बोले जिलानी

जफरयाब जिलानी ने मीडिया को संबोधित करते हुए हाल में चर्चा का विषय बने निकाह-हलाला के मसले पर भी अपनी राय रखी. उन्होंने बताया कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड निकाह-हलाला का समर्थन करता है और अभी कुछ नहीं बदला जा सकता है. उन्होंने साफ कहा कि महिलाओं को इसे मानना होगा. हालांकि, बोर्ड की तरफ से ये भी कहा गया कि निकाह हलाला की जो प्रैक्टिस देखने को मिलती है, वो शरिया के अनुरूप नहीं है.

बता दें कि मुस्लिम पर्सनल बोर्ड का विचार है कि पूरे देश में हर जिले में दारुल कजा बनाई जाएगी. बोर्ड का तर्क है कि मुसलमानों से जुड़े कुछ मामले दारुल कजा के जरिए सुलझा लिए जाते हैं. ऐसी स्थिति में कोर्ट जाने की जरूरत नहीं पड़ती है. हालांकि, इसमें ये भी साफ किया गया है कि अगर दारुल कजा में किसी मसले का हल नहीं हो पाता है तो कोई भी व्यक्ति देश की किसी भी अदालत में जाने के लिए स्वतंत्र है.

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