एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के विवादास्पद विलय में भूमिका के लिए और दोनों एयरलाइंस कंपनियों द्वारा बोइंग और एयरबस के 111 विमानों की खरीद में कथित अनियमितताओं के मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) केंद्रीय उड्डयन मंत्रालय, सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश बोर्ड और योजना आयोग, नेशनल एविएशन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड को जिम्मेदार मानता है.
सीबीआई ने इस मामले में उड्डयन मंत्रालय सहित इन तीनों संगठनों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है और इस संबंध में पूर्व नागर विमानन मंत्री प्रफुल्ल पटेल की भूमिका की जांच कर सकती है. सूत्रों के मुताबिक, सीबीआई की जांच में पता चला कि पटेल यह बात पूरी तरह जानते थे कि इन विमानों की खरीद आपदा जैसी होगी, लेकिन फिर भी इसे पूरा होने दिया.
सीबीआई के मुताबिक, उड्डयन मंत्रालय और एयर इंडिया के अधिकारियों ने अपने आधिकारिक पदों को दुरुपयोग करते हुए 67,000 करोड़ रुपये में 111 विमानों का ऑर्डर दिया. इतनी बड़ी खरीद से पहले जरूरी अध्ययन और पारदर्शिता का भी खयाल नहीं रखा गया.
हालांकि इस मामले में तत्ताकलीन नागर विमानन मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि ये फैसले बहुस्तरीय और सामूहिक थे. पटेल ने कहा कि केंद्रीय जांच एजेंसी ने 2013 में यूपीए सरकार के समय भी संबंधित विषय में प्रारंभिक जांच दर्ज की थी. उस समय लिए गए सभी फैसलों को बहुस्तरीय और सामूहिक बताते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, विमानों की खरीद के ऑर्डर को पी. चिदंबरम की अध्यक्षता वाले अधिकार प्राप्त मंत्रिसमूह (EGoM) ने मंजूरी दी थी और विलय को प्रणब मुखर्जी की अगुवाई वाले EGOM ने मंजूरी दी थी.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने वकील प्रशांत भूषण की अगुवाई वाले सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन द्वारा दाखिल याचिका पर 5 जनवरी को निर्देश दिया था, जिस पर सीबीआई ने कार्रवाई की. विलय की प्रक्रिया 16 मार्च 2006 को पटेल ने शुरू की थी. उन्होंने तब विलय पर अवधारणा पत्र मांगा था, उसी साल 22 मार्च को प्रधानमंत्री के समक्ष प्रस्तुतिकरण दिया गया. बाद में EGoM ने प्रस्ताव का अध्ययन किया था. विलय के प्रस्ताव को 1 मार्च, 2007 को मनमोहन सिंह सरकार के मंत्रिमंडल की मंजूरी मिली थी. इंडियन एयरलाइन्स का अप्रैल 2007 में आधिकारिक तरीके से एयर इंडिया में विलय हो गया.