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राफेल डील को वायुसेना चीफ ने दी क्लीन चिट, कहा- ये सरकार का बोल्ड फैसला

राफेल विमान सौदे को वायुसेना प्रमुख ने सही ठहराया है. उन्होंने एचएएल के साथ बनाए जा रहे दूसरे एयरक्राफ्ट के मामलों में पहले ही देरी होने की बात कही है.

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वायुसेना प्रमुख बीएस धनोआ (फोटो-PTI)
वायुसेना प्रमुख बीएस धनोआ (फोटो-PTI)

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राफेल लड़ाकू विमान सौदे पर मची सियासी रार के बीच भारतीय वायुसेना के प्रमुख ने फ्रेंच कंपनी दसॉ एविएशन के साथ हुए इस सौदे को सही ठहराया है. वायुसेना प्रमुख ने कहा है कि हमें अच्छा पैकेज मिलने के अलावा राफेल सौदे में कई फायदे मिले हैं.

विमान और उसकी कीमत को लेकर घोटाले का आरोप लगा रही कांग्रेस के दावों से इतर वायुसेना प्रमुख बी एस धनोआ ने डील को सही करार दिया है. उन्होंने कहा है कि राफेल अच्छा विमान है और जब यह उपमहाद्वीप में आएगा तो अत्यंत महत्वपूर्ण साबित होगा. धनोआ ने इसे गेम चेंजर बताते हुए डील को सरकार का बोल्ड फैसला करार दिया है.

इतना ही नहीं उन्होंने इस सौदे के लिए भारतीय कंपनी के चयन पर भी सफाई दी. उन्होंने बताया कि फ्रेंच कंपनी दसॉ को ही ऑफसेट साझेदार का चयन करना था और इसमें सरकार या भारतीय वायु सेना की कोई भूमिका नहीं थी. वायुसेना प्रमुख का यह बयान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि कांग्रेस मोदी सरकार पर यह आरोप लगा रही है कि उसने नई नवेली कंपनी रिलायंस डिफेंस को इस डील में साझेदार कंपनी चुने जाने के लिए दबाव बनाया.

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HAL पर उठाए सवाल

हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के साथ राफेल विमान का सौदा न होने पर भी वायुसेना प्रमुख ने टिप्पणी की. उन्होंने बताया कि HAL के साथ सुखोई के निर्माण में हम पहले से ही तीन साल पीछे चल रहे हैं, जबकि जगुआर में 6 साल की देरी हुई है. उन्होंने ये भी बताया कि एलएसी और मिराज में 5 और 2 साल की देरी हो रही है.

वायुसेना प्रमुख का यह बयान अंग्रेजी अखबार की उस रिपोर्ट के बाद आया है, जिसमें दावा किया है कि सुखोई Su-30 MKi एयरक्राफ्ट के निर्माण में तीन साल की देरी होगी. यह विमान एचएएल ही बना रहा है.

बता दें कि रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस संबंध में कहा था कि HAL के पास फ्रांसीसी कंपनी दसॉ एविएशन के साथ मिल कर भारत में इस लड़ाकू विमान के विनिर्माण के लिए जरूरी क्षमता ही नहीं थी और सार्वजनिक क्षेत्र की यह कंपनी काम की गारंटी देने की स्थिति में नहीं थी.

सीतारमण ने ये भी बताया था कि एचएएल के साथ कई दौर की बातचीत के बाद फ्रांसीसी कंपनी दसॉ एविएशन को महसूस हुआ कि यदि राफेल जेट का उत्पादन भारत में किया जाता है तो इसकी लागत काफी अधिक बढ़ जाएगी.

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क्या हैं कांग्रेस के आरोप

कांग्रेस राफेल डील को रक्षा क्षेत्र का सबसे बड़ा घोटाला करार दे रही है. कांग्रेस का आरोप है कि मोदी सरकार इस विमान की खरीद 1,670 करोड़ रुपये प्रति विमान की दर पर कर रही है जबकि यूपीए सरकार ने इसके लिए 526 करोड़ रुपये की कीमत को अंतिम रूप दिया था. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कीमत को आधार बनाकर नरेंद्र मोदी पर अपने उद्योगपति दोस्तों को लाभ पहुंचाने का आरोप लगा रहे हैं.

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