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रेत की लूट पर UP सरकार बेनकाब, माफियाओं की मदद के लिए बदले गए कानून

उत्तर प्रदेश में आईएएस दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन के बाद अब एक और ऐसा मामला सामने आया है जो इशारा करता है कि यूपी सरकार और रेत माफियाओं के बीच काफी गहरी साठगांठ है. खबर है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ यूपी सरकार ने राज्य के माइनर्स और मिनरल माइनिंग ऐक्ट में 35 वां संशोधन किया.

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उत्तर प्रदेश में आईएएस दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन के बाद अब एक और ऐसा मामला सामने आया है जो इशारा करता है कि यूपी सरकार और रेत माफियाओं के बीच काफी गहरी साठगांठ है. खबर है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ यूपी सरकार ने राज्य के माइनर्स और मिनरल माइनिंग ऐक्ट में 35 वां संशोधन किया.

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इस संशोधन के जरिए सरकार ने 2 मीटर तक की खुदाई को खनन की श्रेणी से बाहर कर दिया. शर्त रखी कि मशीन का इस्तेमाल न किया जाए. 8 महीने पहले ये संशोधन किया गया था.ये ऐसे बदलाव थे जिससे रेत खनन में लूट की खुली छूट मिल गयी है.

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सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक किसी भी तरह के खनन के लिए एनओसी लिया जाना आवश्यक है. लेकिन राज्य सरकार ने संशोधन ने खनन माफियाओं की मदद की और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन किया.

अखिलेश सरकार खनन माफियाओं की मदद के लिए और भी बहुत कुछ करना चाहती है. सूत्रों के मुताबिक राज्य सरकार 36वां संशोधन लाने की तैयारी कर रही है. जिसके लागू होते ही खनन में जेसीबी मशीन के इस्तेमाल के लिए भी एनओसी लेने की जरूरत नहीं होगी.

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लेकिन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव स्पष्ट कर चुके हैं कि नोएडा की एसडीएम दुर्गाशक्ति नागपाल के निलंबन और खनन माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई में कोई संबंध नहीं है. इसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कड़ी फटकार लगाते हुए निलंबन पर केंद्र और यूपी सरकार को नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने 19 अगस्त तक इस मामले पर जवाब मांगा है.

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आईएएस अधिकारी दुर्गाशक्ति को पिछले दिनों निलंबित कर दिया गया था. सरकार की ओर से इसकी वजह नोएडा के एक गांव में मस्जिद की दीवार गिराने की कार्रवाई बताई गई थी.

पिछले साल 27 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यों में किसी भी तरह के खनन कार्यों के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से एनओसी लेना अनिवार्य है. इसके बाद 18 मई को मंत्रालय ने भी राज्य सरकारों को खनन गतिविधियों पर सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का पालने करने के आदेश दिए.

करीब 6 महीने बाद 23 दिसंबर 2012 को उत्तर प्रदेश सरकार, राज्य के माइनर्स और मिनरल माइनिंग ऐक्ट में 35 वां संशोधन लेकर आयी. इस संशोधन के जरिए सरकार ने 2 मीटर तक की खुदाई को खनन की श्रेणी से बाहर कर दिया, शर्त रखी की मशीन का इस्तेमाल न किया जाए.

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ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्यों राज्य सरकार जानबूझ कर रेत की लूट का रास्ता तैयार कर रही है. इस सवाल के जवाब के लिए समझना होगा रेत के अवैध खनन से होने वाले मुनाफे का गणित...
इस तरह से निकाले गए एक डंपर रेत की कीमत करीब 8 हजार से 10 हजार रुपए होती है, जो कि वैध खनन साइट से निकाले गये रेत की कीमत की आधी है. स्थानीय लोगों और ऐक्टिविस्ट्स की मानें तो रोज करीब 500 से हजार गाड़ियों में भर कर रेत इन इलाकों से निकाले जाते हैं. यानी रोज इन इलाकों से करोड़ों रुपए का मुनाफा कमाते हैं रेत माफिया. और शायद इसी कमाई की ताकत के आगे पूरा प्रशासन बौना पड़ जाता है.

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