भारत-पाकिस्तान के बीच राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर की बातचीत से पहले हुर्रियत कॉन्फ्रेंस एक बार फिर चर्चा में है. ऐसे में हुर्रियत के बड़े नेताओं के बारे में कुछ बुनियादी बातें जानना जरूरी हो जाता है.
हुर्रियत कॉन्फ्रेंस और इसके बड़े नेता...
जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों का सबसे बड़ा संगठन हुर्रियत कॉन्फ्रेंस है. दरअसल, इसमें 23 अलग-अलग धड़े हैं. इनमें से कुछ गुटों का रुख नरम है, तो कुछ गरम.
मीरवाइज उमर फारूक
हुर्रियत कॉन्फ्रेंस में मीरवाइज उमर फारूक के नेतृत्व वाला धड़ा नरमपंथी माना जाता है. उदारवादी धड़े के अध्यक्ष मीरवाइज पहले कई बार नजरबंद किए जा चुके हैं.
सैयद अली शाह गिलानी
सैयद अली शाह गिलानी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के कट्टरपंथी धड़े के नेता हैं. गिलानी पाकिस्तानपरस्ती के लिए जाने जाते हैं. गिलानी का मानना है कि कश्मीर भारत का आंतरिक मुद्दा नहीं, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय मुद्दा है, जिसे इसी सोच के साथ हल किया जाना चाहिए. जब भारत सरकार ने इसके पहले पाकिस्तान के साथ होने वाली विदेश सचिव स्तरीय वार्ता रद्द कर दी थी, तो इन्होंने इसे दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया था.
मुहम्मद यासीन मलिक
यासीन मलिक जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के अध्यक्ष हैं. यासीन मलिक का हालिया रुख यह है कि वे पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज से मुलाकात नहीं करने वाले हैं. उन्होंने अपने दो वरिष्ठ साथियों गुलाम रसूल ईदी और शौकत बख्शी को उनसे मुलाकात के लिए दिल्ली भेजने की बात कही. यासीन ने पिछले साल विधानसभा चुनाव का बहिष्कार किया था.
इनके आगे क्यों झुकती है सरकार
दरअसल, हुर्रियत कॉन्फ्रेंस को जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के एक तबके का विश्वास हासिल है. इन नेताओं की आवाज पर कश्मीर घाटी के कई लोग शासन के खिलाफ प्रदर्शन के लिए उतर आते हैं. जम्मू-कश्मीर में जितनी अशांति फैलेगी, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उतना ही कश्मीर का मुद्दा सुर्खियों में छाएगा. इन्हीं वजहों से केंद्र सरकार लंबे समय तक इन नेताओं को नजरअंदाज करके नहीं चल सकती.
आखिर क्यों रिहा किए गए अलगाववादी नेता.. .
सवाल उठता है कि पाकिस्तान के साथ NSA स्तर की बातचीत से पहले हुर्रियत नेताओं को नजरबंद किया गया, तो फिर उन्हें रिहा क्यों कर दिया गया? दरअसल, केंद्र का मकसद उन नेताओं को वार्ता होने तक नजरबंद रखना था ही नहीं.
सरकार हुर्रियत नेताओं के साथ-साथ पाकिस्तान को भी यह संकेत देना चाहती थी कि वह वार्ता को लेकर एकदम संजीदा है और इसकी राह में रोड़े अटकाए जाने पर कोई भी कठोर कदम उठा सकती है. केंद्र ने नजरबंदी और फिर रिहाई के जरिए पहले सिर्फ 'इशारा' करना जरूरी समझा.