कश्मीर घाटी में लगातार जारी हिंसा के बीच वहां हालात का जायजा लेने एवं समाज के सभी वर्ग के लोगों की राय जानने के उद्देश्य से एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल संभवत: रविवार को राज्य के दौरे पर जायेगा. लेकिन सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम पर कोई सहमति नहीं बन पायी.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में बुधवार को आयोजित विभिन्न राजनीतिक दलों की बैठक में राज्य में स्थिति का जायजा लेने के लिए एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल वहां भेजने पर सहमति बनी.
गृह मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि इस दौरे की रूपरेखा तैयार की जा रही है और शुक्रवार तक अंतिम रूप दे दिया जायेगा. इस प्रतिनिधिमंडल में संसद सदस्य ही शामिल होंगे. प्रतिनिधिमंडल के साथ संयोजन के लिए एक कैबिनेट स्तर के मंत्री को भी भेजे जाने की संभावना है.
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि प्रतिनिधिमंडल के जम्मू का दौरा करने की भी संभावना है. उन्होंने कहा कि जो भी प्रतिनिधिमंडल से बातचीत करना चाहता है, उसके लिए खुला निमंत्रण है.
उन्होंने कहा कि महिला संगठनों, युवाओं, स्वयंसेवी संस्थाओं समेत सभी लोग इस सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल से बातचीत कर सकते हैं. यह शिष्टमंडल समाज के सभी वर्ग के लोगों की राय लेने के बाद अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपेगा. इस प्रतिनिधिमंडल की रिपोर्ट के बाद ही सुरक्षा मामलों पर मंत्रिमंडल समिति की बैठक होने की संभावना है.
प्रधानमंत्री निवास पर बुधवार को लगभग साढे पांच घंटे तक चली मैराथन सर्वदलीय बैठक में राज्य में सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (एएफएसपीए) को नरम करने या राज्य के कुछ इलाकों से इसे हटाने, कश्मीर के लिए राजनीतिक पैकेज जैसे विषयों पर कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका.
{mospagebreak}यह तय हुआ कि एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल राज्य के दौरे पर जाएगा यह प्रतिनिधिमंडल वहां के हालात का जायजा लेने के बाद समाधान के विभिन्न विकल्पों को लेकर अपनी रिपोर्ट सरकार को देगा. सरकार ने बाद में स्पष्ट किया कि जम्मू कश्मीर के लिए कोई भी पहल करते समय वह इस रिपोर्ट को आधार बनायेगी. बैठक में जम्मू कश्मीर के हालात से व्यथित प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि सरकार किसी भी व्यक्ति या समूह से बातचीत करने को तैयार है लेकिन ऐसा तब तक नहीं हो सकता जब तक हिंसा खत्म नहीं हो.
प्रधानमंत्री ने कहा कि हिंसा की कुछ घटनाओं की साजिश कुछ समूहों ने रची है और राज्य में ‘टिकाउ शांति और खुशहाली का एकमात्र रास्ता’, बातचीत और चर्चा है. जिन लोगों को सरकार के खिलाफ शिकायतें हैं, उन्हें ‘प्रशासन से बातचीत करनी होगी.’ सार्थक बातचीत हिंसा और टकराव से मुक्त माहौल में ही हो सकती है.
शांति की अपील करते हुए प्रधानमंत्री ने जम्मू कश्मीर में लोगों, पुलिस कर्मियों और सुरक्षाकर्मियों के हताहत होने, आम आदमी के जनजीवन में बाधा उत्पन्न होने पर दु:ख जाहिर किया.
इधर, सरकार की ओर से जारी बयान के अनुसार, ‘नेता इस बात पर सहमत थे कि भारतीय संविधान इतना व्यापक है कि उसमें किसी भी जायज राजनीतिक मांग को वार्ता, शांतिपूर्ण विचार विमर्श और असैन्य तरीके से हल करने की क्षमता है.’ सर्वदलीय बैठक में पारित प्रस्ताव में कहा गया कि सरकार जम्मू कश्मीर के बारे में कोई भी कदम उठाते समय आज की बैठक की कार्यवाही और सुझावों को संज्ञान में लेगी.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में संप्रग के विभिन्न घटकों समेत मुख्य विपक्षी दल भाजपा, वाम दल, जद यू, शिवसेना, अन्नाद्रमुक, रालोद, राजद, सपा, लोजपा, नेशनल कांफ्रेंस, बसपा, पीडीपी आदि ने हिस्सा लिया.
{mospagebreak}बैठक में एएफएसपीए पर भाजपा का रूख शिवसेना से थोड़ा नरम था. हालांकि भाजपा ने सशस्त्र विशेषाधिकार कानून और राज्य के लिए स्वायत्तता के किसी प्रयास का विरोध किया.गडकरी ने कहा कि इस बात को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है कि आतंकवाद को पाकिस्तान की ओर से पोषण और प्रोत्साहन दिया जा रहा है. सरकार को कोई नीति बनाते समय इसे ध्यान में रखना चाहिए.
गडकरी ने कहा कि भाजपा भारतीय संविधान के दायरे में किसी बातचीत का समर्थन करेगी लेकिन हिंसा समाप्त होने के बाद ही.
नेशनल कांफ्रेस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने कहा, ‘बैठक अच्छी रही. सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजने पर सहमति बनी है. यह प्रतिनिधिमंडल राज्य के विभिन्न पक्षों से बातचीत करेगा.’ यह कहे जाने पर कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार की काफी आलोचना हो रही है और लोग उनके इस्तीफे की मांग कर रहे हैं, अब्दुल्ला ने कहा कि राज्य सरकार के कामकाज में कोई कमी नहीं है. वह अच्छा काम कर रही है. वहां की सरकार के कार्य की खुद प्रधानमंत्री और केन्द्र सरकार ने प्रशंसा की है.
जम्मू-कश्मीर विधानसभा को निलंबित कर वहां किसी राजनीतिक व्यक्ति को राज्यपाल नियुक्त किये जाने की मांग के बारे में उन्होंने कहा कि ऐसी कोई बात बैठक में नहीं उठी और ऐसा होगा भी नहीं. उन्होंने एएफएसपीए को आंशिक रूप से हटाने की मांग की.
जम्मू-कश्मीर में मुख्य विपक्षी दल पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती ने भी एएफएसपीए और असैन्य क्षेत्रों से सशस्त्र बलों को तत्काल हटाने के साथ राजनीतिक बंदियों और गिरफ्तार किये गये निर्दोष लोगों को रिहा करने की मांग की.
{mospagebreak}बैठक में शामिल लोजपा नेता राम विलास पासवान ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोगों को मुख्य धारा में लाने के रास्ते तलाशने पर बैठक में चर्चा हुई. भाकपा नेता गुरूदास दासगुप्ता ने कहा कि एएफएसपीए को नरम करने और इसे राज्य से हटाने की मांग वाम दलों ने बैठक में उठायी है. शिवसेना के मनोहर जोशी ने कहा कि जम्मू-कश्मीर से एएफएसपीए को हटाने का उनकी पार्टी ने पुरजोर विरोध किया है.
जम्मू कश्मीर पैंथर्स पार्टी के अध्यक्ष भीम सिंह ने सर्वदलीय बैठक को राज्य के लोगों के विशेष तौर पर जम्मू और लद्दाख के लिए ‘मनमाना’ करार दिया क्योंकि पहली बार ऐसी किसी बैठक में इस क्षेत्र के लोगों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं था. उन्होंने कांग्रेस पार्टी से उमर अब्दुल्ला सरकार से समर्थन वापस लेने को कहा.
इस बीच सूत्रों के मुताबिक जम्मू कश्मीर में बीते तीन महीने में 80 से अधिक लोगों की जान जाने की घटनाओं के मद्देनजर बुलायी गयी इस बैठक में नेताओं का मानना था कि कश्मीर में पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान विभिन्न राजनीतिक दलों को जनता का भारी समर्थन मिला था. लेकिन अब हालात बदतर हो जाने के चलते जनता का विश्वास फिर से हासिल करने की पहल होनी चाहिए.
सूत्रों ने कहा कि सात रेसकोर्स रोड पर हुई बैठक में राजनीतिक दलों की ओर से यह सुझाव आया कि जम्मू कश्मीर विधानसभा को निलंबित अवस्था में रखा जाये और वहां राजनीतिक दल के ही किसी व्यक्ति को राज्यपाल बना दिया जाये.
बैठक में संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी, वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी, गृह मंत्री पी चिदंबरम, भाजपा संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी और पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी, सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और राजद नेता रघुवंश प्रसाद सिंह आदि ने भाग लिया.