scorecardresearch
 

अल्‍मोड़ा: परंपरा के नाम पर 8 मिनट का खूनी खेल

आस्‍था और परंपरा के नाम पर उत्तराखंड के चम्पावत जिले में पूरे आठ मिनट तक चारों तरफ से पत्थर बरसते रहे. चोट और जख्म की परवाह किए बगैर लोग एक दूसरे पर पत्थर बरसाते रहे.

Advertisement
X

कल्पना कीजिए, चार चरफ से चार सेना. हर तरफ से बरस रहे हों पत्थर. क्या नजारा होगा. ऐसा ही नजारा था उत्तराखंड के चम्पावत जिले में. पूरे आठ मिनट तक चारों तरफ से पत्थर बरसते रहे. चोट और जख्म की परवाह किए बगैर लोग एक दूसरे पर पत्थर बरसाते रहे और ये सब किसी झगड़े या लड़ाई की वजह से नहीं बल्कि आस्था और परंपरा के नाम पर हुआ.

रक्षाबंधन के दिन होता है बग्‍वाल का आयोजन
परंपरा के मुताबिक हर साल रक्षाबंधन के दिन देवीधुरा के मां बाराही के इस मंदिर के सामने बग्वाल का आयोजन होता है. हर साल सैंकड़ों योद्धा इस युद्ध में जख्मी होते हैं, लेकिन देवी पर अटूट विश्वास और परंपरा के प्रति श्रद्धा का ही नतीजा है इस बार भी बड़ी तादाद में लोग बग्वाल में शरीक हुए. देवी बाराही मां को खुश करने के लिए सुबह-सुबह ही चारों खामों- चम्याल, लमगड़िया, वालिक और गहड़वाल के योद्धा मां का जयकारा करते हुए मंदिर प्रांगण में पहुंच गए.

एक आदमी के बराबर खून बहने के बाद होता है युद्ध खत्‍म
हरेक योद्धा के सिर पर बगड़ी और हाथ में बांस का ढाल. बाराही देवी के पूजा और अभिषेक के बाद जैसा ही पुजारी ने युद्ध शुरू करने की घोषणा की, चार खामों के लोग एक  दूसरे पर पत्थर फेंकने लगे. करीब आठ मिनट बाद, जब मंदिर के पुजारी को ये अहसास हुआ कि एक आदमी के बराबर खून बह चुका है, तो उन्होंने युद्ध खत्म करने का ऐलान कर दिया.

इस बार 50 लोग हुए जख्‍मी
परंपरा के मुताबिक चार खाम के लोग एक दूसरे पर तब तक पत्थर बरसाते हैं जब तक पुजारी को ये अहसास ना हो जाए कि एक आदमी के बराबर खून बह चुका है. इस बार बग्वाल में करीब पचास लोग जख्मी हुए. इनमें से ज्यादातर लोगों ने इसे देवी का आर्शीवाद मानते हुए इलाज नहीं कराया. ऐसा माना जाता है बग्वाल के दौरान लगा जख्म खुद भर जाता है.

Advertisement
Advertisement