सीबीआई के पूर्व निदेशक आलोक वर्मा ने शुक्रवार को प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा दे दिया है. मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें सीबीआई निदेशक के पद पर बहाल किया था जिसके दो दिन बाद ही प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कमेटी ने वर्मा को फिर से निदेशक पद से हटा दिया था. इसके बाद उन्हें फायर सर्विसेज एंड होमगार्ड विभाग में महानिदेशक नियुक्त किया गया था. लेकिन आलोक वर्मा ने इस पद पर आने से इनकार करते हुए सरकारी नौकरी छोड़ दी है.
आलोक वर्मा 1979 बैच के IPS अफसर हैं जिन्होंने महज 22 साल की उम्र में यह परीक्षा पास की थी. उनके पास दिल्ली पुलिस कश्मिश्नर और मिजोरम पुलिस में महानिदेशक रहने का भी अनुभव है. दिल्ली में पुलिस कमिश्नर रहते हुए उन्होंने पुलिस व्यवस्था में सुधार के तमाम काम किए जिनमें महिला पीसीआर की शुरुआत करना शामिल है.
दिल्ली के प्रतिष्ठित सेंट स्टीफेंस कॉलेज से स्नातक आलोक वर्मा 19 जनवरी 2017 को सीबीआई की प्रमुख बनाए गए थे. हालांकि इस पद पर आने से पहले उनके पास जांच एजेंसी में काम करने का कोई अनुभव नहीं था. बावजूद इसके प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति ने उन्हें इस पद पर नियुक्त किया था. इस समिति में प्रधानमंत्री के अलावा लोकसभा में नेता विपक्ष और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस शामिल होते हैं.
इसके बाद सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना और आलोक वर्मा के बीच बढ़े विवाद के बाद दोनों ही अधिकारियों को छुट्टी पर भेज दिया गया था. सीबीआई निदेशक के पद पर वर्मा का कार्यकाल 31 जनवरी तक तय था लेकिन उससे पहली ही उन्हें फायर सर्विस विभाग में भेजने के आदेश जारी कर दिए गए.
Former CBI Chief Alok Verma in a letter to Secy Dept of Personnel and Training:It may be noted that the undersigned would have already superannuated as on July 31, 2017 and was only serving the Government as Director, CBI till January 3, 2019, as the same was a fixed tenure role. pic.twitter.com/iMRxwWOgUl
— ANI (@ANI) January 11, 2019
पुलिस मेडल से सम्मानित
दिल्ली में कमिश्नर रहते हुए वर्मा ने हजारों पुलिसकर्मियों का एक साथ प्रमोशन किया था. पुलिस में अपनी बेहतरीन सेवाओं के लिए उन्हें पुलिस मेडल और 2003 में राष्ट्रपति की ओर से पुलिस मेडल से सम्मानित भी किया जा चुका है. सीबीआई के 55 साल के इतिहास में किसी भी निदेशक को इस तरह की कार्रवाई का सामना नहीं करना पड़ा है. राजनीतिक हलकों से लेकर सुप्रीम कोर्ट भी सीबीआई में मचे घमासान पर टिप्पणी कर चुके हैं. यहां तक की शीतकालीन सत्र के दौरान संसद में भी सीबीआई विवाद का शोर सुनाई दिया था.