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बाबरी का बदला था पहला अमरनाथ हमला, लोकल आतंकियों ने नहीं दिया था साथ

15 बरस बाद अमरनाथ यात्रियों को जिस तरह आतंकवादियों ने निशाना बनाया है, उससे साफ है कि उन्होंने अमरनाथ यात्रा के बाबत अपना अलिखित नियम तोड़ दिया है, नियम तीर्थयात्रियों को निशाना न बनाने का.

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अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा में लगे जवान
अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा में लगे जवान

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अमरनाथ यात्रियों पर हमले में सात तीर्थयात्रियों की मौत का सबब क्या है? क्या यह हमला घाटी में किसी बड़े खतरे की आहट है? ये सवाल इसलिए क्योंकि घाटी में 15 बरस बाद अमरनाथ यात्रियों को जिस तरह आतंकवादियों ने निशाना बनाया है, उससे साफ है कि उन्होंने अमरनाथ यात्रा के बाबत अपना अलिखित नियम तोड़ दिया है, नियम तीर्थयात्रियों को निशाना न बनाने का. क्योंकि घाटी में आतंकवादियों की लड़ाई कथित तौर पर कश्मीर को आजाद कराने को लेकर है, जिससे तीर्थयात्रियों का कोई लेना देना नहीं है.

अमरनाथ यात्रा साझी परंपरा

अमरनाथ यात्रा कश्मीर की साझी विरासत और बरसों पुरानी परंपरा मानी जाती है, जो लोकल लोगों के बिना मुमकिन नहीं अलबत्ता इसी यात्रा से घाटी के हजारों मुस्लिम परिवारों को रोजगार भी मिलता है लेकिन साझी विरासत पर हमले ने सीधे तौर पर दिखा दिया है कि आतंकवादियों के निशाने पर अब तीर्थयात्री आ गए हैं. इस हमले से साफ है कि आतंकवादियों के बीच भी धड़े बंट गए हैं, जिनमें से एक धड़े के लिए लड़ाई आर-पार की है और इसके लिए वो घाटी के मुस्लिम पुलिसवालों से लेकर तीर्थयात्रियों तक को निशाना बनाने के लिए तैयार है.इंटेलिजेंस रिपोर्ट्स भी थीं कि आतंकवादियों का मकसद है कि कम से कम 150 श्रद्धालुओं को निशाना बनाया जाए यानी देश को साल 2000 के उस मंजर की याद दिला दी जाए, जब पहली बार अमरनाथ यात्रा को निशाना बनाया गया था. उस हमले में 80 लोगों की जान चली गई थी और उस हमले के बाद घाटी सहम गई थी.

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1993 में हुई थी पहली कोशिश

यात्रा को निशाने पर लेने की पहली कोशिश 1990 के उस दौर में हुई थी जब घाटी में आतंक उभार पर था. 1993 में आतंकी संगठन हरकत-उल-अंसार ने इस यात्रा पर हमले की कोशिश की थी. अमरनाथ यात्रा पर प्रतिबंध का भी ऐलान किया. इस संगठन ने अपने कदम को बाबरी मस्ज़िद ढहाए जाने के विरोध में की गई कार्रवाई बताया. लेकिन स्थानीय आतंकियों की मदद न मिलने से यह मंसूबा सफल नहीं हो सका.

साल 2000 में आतंकी अपने मंसूबों में कामयाब हो गए. फिर 2001 और 2002 में भी आतंकवादियों ने अमरनाथ यात्रा को निशाना बनाया लेकिन उसके बाद से तीर्थयात्रियों को निशाना न बनाने के अलिखित नियम का पालन हुआ. 15 बरस बाद अब ये नियम टूटा है तो मतलब बहुत साफ है कि घाटी में आतंक की नई आहट नए नियम के साथ हो रही है, और सवाल यही है कि सरकार के पास इससे निपटने के क्या कोई इंतजाम हैं?

 

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