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अमेरिकी अधिकारियों ने डाला अड़ंगा, न्यूक्लियर डील लटकाने की कोशिश

भारत और अमेरिका के बीच नागरिक परमाणु मसले पर हाल ही में गठित संपर्क समूह पहली बार दिसंबर में मिलेगा. यह लगभग इसकी घोषणा के तीन माह बाद होगा. बातचीत मुख्य तौर पर न्यूक्लियर लायबिलिटी (परमाणु उत्तरदायित्व) के मसलों पर होगी. भारत को अमेरिकी न्यूक्लियर संस्थानों से हाल ही में ताजा अड़ंगे झेलने पड़े हैं.

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ओबामा से मिलते नरेंद्र मोदी
ओबामा से मिलते नरेंद्र मोदी

भारत और अमेरिका के बीच नागरिक परमाणु मसले पर हाल ही में गठित संपर्क समूह पहली बार दिसंबर में मिलेगा. यह लगभग इसकी घोषणा के तीन माह बाद होगा. बातचीत मुख्य तौर पर न्यूक्लियर लायबिलिटी (परमाणु उत्तरदायित्व) के मसलों पर होगी. भारत को अमेरिकी न्यूक्लियर संस्थानों से हाल ही में ताजा अड़ंगे झेलने पड़े हैं.

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अमेरिका न्यूक्लियर डील पर अंतिम बातचीत के लिए ताजा द्विपक्षीय सुरक्षा चाहता है. ये परमाणु-अप्रसार की प्रकृति के हैं, जो पहले ही भारत में मौजूद हैं. भारत और अमेरिका के बीच अभी तक इस संधि को शुरू करने के लिए प्रशासनिक प्रबंध करने हैं. मोदी-ओबामा मुलाकात में काफी पॉजिटिव बातों के बावजूद भारतीयों को अमेरिकी व्यवस्था में 'संकटमोचक' नहीं मिल रहे हैं.

दरअसल, भारत में यह भावना भी है कि अमेरिकी प्रशासन में कुछ तत्व सचमुच न्यूक्लियर डील को सफल नहीं होने देना चाहते. यह रवैया शायद शीर्ष पर नहीं हो, लेकिन मध्य स्तर के अधिकारियों के बीच यह रोग फैल रहा है और डील पर प्रगति मुश्किल होती जा रही है.

इस मामले का एक पहलू यह भी है कि भारतीयों को अगर यह लगा कि देर जानबूझकर की जा रही है, तो वेस्टिंगहाउस और जीई जैसी अमेरिकी कंपनियों के लिए प्रतिकूल स्थिति होगी, जो भारत में न्यूक्लियर रिएक्टर बनाना चाहते हैं.

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हालांकि मसलों का निपटारा इतना आसान नहीं है. जाहिर तौर पर, न्यूक्लियर लायबिलिटी के मसले पर, भारत को काफी छूट देनी पड़ेगी, ताकि परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भारतीय और विदेशी कंपनियां निवेश कर सकें. साथ ही, परमाणु ऊर्जा के लिए न्यूनतम मूल्य रखना भी एक चुनौती होगी, जब व्यावसायिक समझौते किए जाएंगे. हालांकि, भारतीय पक्ष मानता है कि उस बिंदु से अभी दोनों ही देश बहुत दूर हैं.

अलग करने की योजना के तहत, भारत ने स्वेच्छा से अपने नागरिक और रणनीतिक कार्यक्रम के बीच दीवार बना रखी है. नागरिक क्षेत्र पूरी तरह आईएईए के सुरक्षा चक्र के अंदर होगी. भारत ने आईएईए के साथ अतिरिक्त प्रावधान बना रखा है, जो आंतरिक जांच की एक और परत है. ये सभी भारत-अमेरिकी डील का हिस्सा हैं.

हालांकि, अमेरिका परमाणु ईंधन के पूरे चक्र के दौरान के लिए अब ताजा द्विपक्षीय सत्यापन चाहता है. भारत इस रास्ते पर नहीं चलना चाहता है और मानता है कि यह आईएइए जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को नीचा दिखाना होगा, साथ ही देशों के बीच द्विपक्षीय समझौतों का बांध भी तोड़ देगा.

गौरतलब है कि मोदी-ओबामा मुलाकात के बाद घोषणा हुई कि भारत ने वैश्विक परमाणु अप्रसार के चार समूहों- ऑस्ट्रेलिया समूह, वासेनार व्यवस्था, एमटीसीआर (मिसाइल टेक्नोल़ॉजी कंट्रोल रिजीम) और न्यूक्लियर सप्लॉयर्स ग्रुप यानी एनएसजी में प्रवेश के लिए जरूरी प्रक्रिया पूरी कर ली है. भारत अब पूरी प्रक्रिया जल्दी खत्म करना चाहता है.

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हालांकि, यह मसला नए संपर्क समूह के एजेंडा पर नहीं है, भारत न्यूक्लियर डील में अमेरिकी राष्ट्रपति की प्रतिबद्धता को जरूर रेखांकित करना चाहेगा, ताकि परमाणु-अप्रसार के इन समूहों में उसका प्रवेश हो सके. जब हरी झंडी होगी, भारत एक औपचारिक आवेदन के साथ तैयार रहेगा. आने वाले हफ्तों में भारत, अमेरिका को इस मसले पर घेर सकता है.

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