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पेरिस समझौते से अमेरिका अलग, अब भारत के सामने ये बड़ी चुनौतियां

अमेरिका के इस कदम का भारत पर कोई सीधा असर तो नहीं पड़ने वाला है, लेकिन इससे भारत के लिए आगे उत्सर्जन कटौती के लक्ष्य के लिए तेज कदम उठाना मुश्किल होगा, क्योंकि भारत को अब अंतरराष्ट्रीय वित्त और टेक्नोलॉजी हासिल करने में मुश्किल आएगी.

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ट्रंप ने किया पेरिस समझौते से बाहर जाने का ऐलान
ट्रंप ने किया पेरिस समझौते से बाहर जाने का ऐलान

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका को अलग करने का ऐलान कर दिया है. पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका के पीछे हटने से ग्लोबल वार्मिंग को कम करने और पर्यावरण संरक्षण की कोशिश को झटका लगा है. हालांकि भारत ने अमरीका के बगैर भी इस समझौते से जुड़े रहने का ऐलान किया है. अमेरिका के इस कदम का भारत पर कोई सीधा असर तो नहीं पड़ने वाला है, लेकिन इससे भारत के लिए आगे उत्सर्जन कटौती के लक्ष्य के लिए तेज कदम उठाना मुश्किल होगा, क्योंकि भारत को अब अंतरराष्ट्रीय वित्त और टेक्नोलॉजी हासिल करने में मुश्किल आएगी.

ट्रंप के हटने से अब दुनिया के दूसरे देशों को ग्लोबल ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन लक्ष्य को हासिल करने में मुश्किल होगी. कुछ जानकार तो यह मान रहे हैं कि अब चीन के ग्लोबल क्लाइमेट लीडर बनकर उभरने के आसार बन गए हैं. चीन के साथ भारत और यूरोपीय देश भी पेरिस जलवायु समझौते को अमल में लाने को लेकर प्रतिबद्ध हैं. हालांकि यह देखना होगा कि उत्सर्जन में कटौती के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए दुनिया को जिस बड़े आर्थ‍िक सहयोग की जरूरत है, उसे चीन पूरा कर पाएगा या नहीं. हाल में चीन की अर्थव्यवस्था की रफ्तार घटी है और उसे कई नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

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इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए अमेरिका ने वचन दिया था कि वह 2005 की तुलना में साल 2025 तक अपने ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में 26 से 28 फीसदी की कमी लाएगा. इसका मतलब यह है कि अमेरिका अपने कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन को 7.4 अरब टन (साल 2005) से घटाकर 2 अरब टन तक ले आता. वैसे अमेरिका का कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन स्तर घटकर 6.8 अरब टन तक आ चुका है. वैसे तो ट्रंप ने समझौते से बाहर होने के बावजूद उत्सर्जन लक्ष्य को छोड़ने की बात तो नहीं की है, लेकिन उन्होंने इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए जरूरी कदमों को लागू होने से रोक दिया है.

भारत ने तय किया है काफी महत्वाकांक्षी लक्ष्य
अब जब अमेरिका अपने कदम पीछे खींच चुका है तो इसका मतलब यह है कि वैश्विक लक्ष्य को हासिल करने के लिए दुनिया के दूसरे देशों को उत्सर्जन कटौती का लक्ष्य बढ़ाना होगा. यह काफी मुश्किल बात होगी, क्योंकि भारत, यूरोपीय संघ जैसे कई देश पहले से ही उत्सर्जन कटौती में काफी महत्वाकांक्षी लक्ष्य बना चुके हैं.

टेक्नोलॉजी संसाधन मिलने में मुश्किल
अमेरिका जिस तरह के वित्तीय और टेक्नोलॉजी संसाधन मुहैया करा सकता था, वह भारत या चीन जैसे देशों के बस की बात नहीं है. भारत ने साल 2030 तक अपने उत्सर्जन को प्रति जीडीपी ईकाई उत्सर्जन को (साल 2005 के मुकाबले) 2030 तक 35 से 33 फीसदी तक कटौती करने की बात कही है. भारत ने कहा है कि 2030 तक वह अपने कुल बिजली उत्पादन का करीब कम से कम 40 फीसदी हिस्सा जीवाश्म ईंधनों से करेगा.

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संयुक्त कार्यक्रमों पर नहीं होगा कोई असर
क्लीन एनर्जी और जलवायु परिवर्तन के बारे में भारत एवं अमेरिका के बीच कई संयुक्त कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. इन पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि ये द्वि‍पक्षीय व्यवस्था के तहत हैं और इनका पेरिस समझौते से कोई लेना देना नहीं है.

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