दिल्ली चुनाव में बीजेपी की हार पर तमाम माथापच्ची के बाद एक ही नतीजा निकला - हार की सबसे बड़ी वजह रही कार्यकर्ताओं की नाराजगी . फिर सबक क्या मिला? सुधर जाओ वरना बिहार भी हाथ से निकल जाएगा.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की खास चेतावनी और सलाह के बाद बीजेपी अब नये सिरे से सक्रिय होने जा रही है. इसी के तहत बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह अब महीने में दो बार कार्यकर्ताओं के लिए वक्त निकालेंगे और बिहार पर खासतौर पर ध्यान देंगे.
पहले बिहार बचाओ, फिर देखेंगे
संघ ने कार्यकर्ताओं से संपर्क टूटने को लेकर गहरी चिंता जताई थी. अपनी पड़ताल के बाद संघ इस नतीजे पर पहुंचा कि संपर्क टूटने के चलते ही बीजेपी को दिल्ली चुनाव में करारी हार मिली. अगर इस बात पर ध्यान नहीं दिया गया तो बिहार में भी सीटों के लाले पड़ सकते हैं. इसीलिए अमित शाह अप्रैल के मध्य में बिहार के दो दिन के दौरे पर जा रहे हैं. इस दौरान शाह बीजेपी नेताओं के साथ साथ कार्यकर्ताओं से खास तौर पर मुलाकात करेंगे. उसी आधार पर चुनावों में पार्टी की रणनीति तैयार की जाएगी. इस साल बिहार, अगले साल पश्चिम बंगाल और 2017 में उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं. संघ की सलाह है कि बाकी दोनों राज्यों पर भी ध्यान देना जरूरी है, लेकिन उससे भी कहीं ज्यादा जरूरी है - बिहार पर पूरा फोकस करना.
दलित वोटों पर खास नजर
14 अप्रैल को आंबेडकर जयंती है, और इसी दिन पटना में बीजेपी का कार्यकर्ता सम्मेलन होने जा रहा है. इस सम्मेलन को अमित शाह संबोधित करेंगे. चुनाव में दलित मतदाताओं पर बीजेपी की विशेष नजर है. दलित नेता रामविलास पासवान पहले से ही बीजेपी के साथ हैं - और अब पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी भी बीजेपी के संपर्क में लगातार बने हुए हैं. बीजेपी इन दोनों नेताओं के बल पर दलित वोट बटोरने की कोशिश में लगी है. इसके लिए और क्या क्या उपाय अख्तियार करेगी ये अभी तय होना है.
ताकि लगे कि अपनी सरकार है
बीजेपी कार्यकर्ताओं की एक बड़ी शिकायत थी - 'लगता ही नहीं कि केंद्र में उनकी अपनी सरकार है.' बीजेपी कार्यकर्ताओं का कहना था कि केंद्र सरकार के कई मंत्री उन्हें मिलने का वक्त ही नहीं देते. इतना ही नहीं, संघ ने पाया कि बीजेपी अध्यक्ष भी कार्यकर्ताओं की पहुंच से बाहर होते जा रहे हैं. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के घर हुई बैठक में बाकी बातों के अलावा इस पर खास चर्चा हुई कि इसका कोई मैकेनिज्म बने और कार्यकर्ता अपनी बात रख सकें.
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह अब हर महीने के पहले और तीसरे सोमवार को पार्टी कार्यकर्ताओं से मिलेंगे और उनकी शिकायतों का निवारण करेंगे. इसका फायदा ये होगा कि वो जमीनी हकीकत से भी वाकिफ होंगे जिसे संघ की नजर में बेहद अहम माना जा रहा है. संघ ने अपने सर्वे के बाद बीजेपी को जमीनी स्तर पर कार्य करने और छवि पर ध्यान देने की सलाह दी थी. पार्टी फोरम के बाद अब कोशिश ये है कि जल्द ही मंत्रियों से मुलाकात का भी कोई रास्ता निकाला जा सके.
मार्गदर्शक मंडल भी सक्रिय होगा
बीजेपी ने मार्गदर्शक मंडल बना तो लिया था, लेकिन उसके प्रति डंपिंग ग्राउंड जैसी धारणा बनने लगी थी. माना जा रहा था कि वो नाराज, असंतुष्ट और बुजुर्ग नेताओं का एक कोना बना दिया गया है. अब मार्गदर्शक मंडल की भी सक्रियता बढ़ने वाली है. बीजेपी अध्यक्ष शाह और केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली की वरिष्ठ नेताओं लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी से हाल की मुलाकात की वजह भी यही है. भविष्य में अब पार्टी मार्गदर्शक मंडल के नेताओं के अनुभव का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाने की कोशिश करेगी.