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सोहराबुद्दीन एनकाउंटर में अमित शाह को कोई रोल नहीं: जेटली

जेटली ने कहा कि ऐसे आधारहीन सबूतों की बिनाह पर कोई भी अदालत अमित शाह को बरी कर देती. उन्होंने गुजरात हाईकोर्ट की टिप्पणी का जिक्र करते हुए कहा कि हाई कोर्ट ने तो इसे दावा योग्य केस तक नहीं बताया था.

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अमित शाह के साथ अरुण जेटली
अमित शाह के साथ अरुण जेटली

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वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जज लोया केस में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ब्लॉग लिखकर इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी है. जेटली ने सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को क्लीन चिट देते हुए कहा कि एनकाउंटर में उनका कोई रोल नहीं था.

जेटली ने ब्लॉग में लिखा कि एनकाउंटर केंद्रीय एजेंसियों के कहने पर राज्य पुलिस की ओर से किया गया और इसमें अमित शाह की कोई भूमिका नहीं थी. उन्होंने कहा, 'मैंने इस बाबत 27 सितंबर 2013 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर केस से जुड़े सभी तथ्यों की जानकारी दी थी. अमित शाह के खिलाफ दो भू-माफियाओं रामनभाई पटेल और दशरथ भाई पटेल ने सबसे पहले गवाही दी थी और शाह से मुलाकात की बात कही थी.'  जेटली ने कहा कि तथ्य यह है कि यह दोनों कभी अमित शाह से मिले ही नहीं थे.

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जेटली ने कहा कि ऐसे आधारहीन सबूतों की बिनाह पर कोई भी अदालत अमित शाह को बरी कर देती. उन्होंने गुजरात हाईकोर्ट की टिप्पणी का जिक्र करते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने तो इसे दावा योग्य केस तक नहीं बताया था. अमित शाह के लिए यह मायने नहीं रखता कि कौन सा जज इन हल्के आरोपों की सुनवाई करेगा और आखिर में वह इस केस में बरी हुए.

अरुण जेटली ने कहा कि कुछ लोगों ने फैसले के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपील भी की, लेकिन उसे भी खारिज कर दिया गया. इनमें कई ने जज लोया की मौत को भी सोहराबुद्दीन केस और अमित शाह से जोड़ा और कारवां मैगजीन ने भी इस मामले में गलत खबर प्रकाशित की.

कैसे हुई जज लोया की मौत

अरुण जेटली ने अपने ब्लॉग में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए लिखा कि एक दिसंबर 2014 को जज लोया को सीने में दर्द की शिकायत हुई. नागपुर के रवि भवन में उस दौरान जज के साथ 2 जिला जज भी मौजूद थे. दोनों जजों ने 2 और जजों की मदद से जज लोया को अस्पताल पहुंचाया, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका. जज लोया को बचाने की कोशिश की गई, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो सका.

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जेटली ने कहा कि जज लोया के परिजनों ने भी इसे प्राकृतिक मौत माना और सुप्रीम कोर्ट ने भी किसी तरह का संदेह पाए बिना इसे नेचुरल डेथ ही बताया है, लेकिन कारवां मैगजीन ने इस मामले को लेकर फेक न्यूज चलाई और विवाद पैदा किया.

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