महाराष्ट्र में जल संकट गहराता जा रहा है. अमरावती के कई गांवों के लोग कीचड़ से सना दूषित पानी पीकर अपनी प्यास बूझा रहे हैं. मेलघाट में बिहाली और भंडारी गांव में रहने वाले लोगों का कहना है कि वे भोजन के बिना कुछ समय तक रह सकते हैं लेकिन पानी के बिना कैसे जिंदा रहेंगे. उनका कहना है कि पानी इकट्ठा करने के लिए हर रोज 3-4 घंटे इधर उधर भटकना पड़ता है. उनकी शिकायत है कि सरकार कुछ नहीं कर रही है.
Amravati: Residents of Bihali & Bhandri village in Melghat survive on muddy & contaminated water; say, "we can live without food for a while but how will we survive without water. We spend 3-4 hours here everyday to collect water. Government is not doing anything." #Maharashtra pic.twitter.com/FxK0jNVUvP
— ANI (@ANI) June 10, 2019
महाराष्ट्र के कुछ गांव भयंकर सूखे का सामना कर रहे हैं. यवतमाल जिले का एक गांव लगातार कई साल से पड़ रहे सूखे की वजह से इतना बदनाम हो गया है कि यहां कोई अपनी लड़की देने को तैयार नहीं है. गांव के युवाओं की शादियां नहीं हो पा रही हैं.
यवतामल ज़िले में स्थित आजंति गांव के लोगों को पानी की तलाश में हर रोज 2 –3 किलोमीटर चलना पड़ता है. ऐसे में गांवनिवासियों का अधिकांश वक्त पानी की सुविधा करने मे चला जाता है. हालात ये है कि युवाओं के पास काम पर जाने तक का समय नहीं है. पानी के आभाव के चलते यहां युवाओं का विवाह नहीं हो पा रहा है.
पिछले तीन-चार सालों से महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में पर्याप्त बारिश नहीं हुई है, जिसके चलते आज यवतमाल जिले में आकाल जैसे हालात हैं. प्रशासन करीब 755 गांवों को सुखाग्रस्त घोषित कर चुका है, लेकिन गांववालों का कहना है कि सुखा घोषित करने के अलावा प्रशासन ने अब तक कोई भी ठोस कदम नहीं उठाए हैं, जिससे लोगों को पानी की इस भारी किल्लत से छूटकारा मिल सके.
यवतमाल जिले मे पानी की किल्लत का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते है कि कई गांवों में लोगों को पानी के लिए कुओं तक में उतरना पड़ रहा है. यवतमाल जिले के कई किसानों ने अब अपने पशुओं को आधे दामों में बेच दिया है. जिसके चलते अब किसानों को दूध से मिलने वाली कमाई भी पूरी तरह बंद हो चुकी है. प्रशासन की अनदेखी के चलते आजंति गांव के निवासी लगातार प्रशासन पर आरोप लगा रहे है. सूखे की वजह से परेशान होकर महाराष्ट्र के कुछ गांवों में शहर की तरफ पलायन शुरू हो गया है, क्योंकि लोगों का सारा समय कई-कई किलोमीटर चलकर पानी भरने में जाता है और वो मजदूरी पर नहीं जा पाते. पीने की दिक्कत तो है ही घर में खाने के भी लाले पड़ने लग हैं.
कुछ ऐसा ही हाल विदर्भ के अकोला जिले के वरखेड देवधरी गांव का है. गांव की आबादी करीब 850 है. गांव में काफी घरों पर ताले लटके हुए हैं. दरअसल गांव के काफी लोग पलायन करके मुंबई, पुणे और गुजरात की तरफ निकल गए हैं. गांव में पानी का स्तर बहुत नीचे चला गया है. गांव में सिर्फ एक हैंडपंप काम कर रहा है. उसमें घंटों मशक्कत करने के बाद एक बाल्टी पानी आता है.
गौरतलब है कि भारत का लगभग 42 फीसदी हिस्सा 'असामान्य रूप से सूखाग्रस्त' है, जो बीते साल की तुलना में छह फीसदी अधिक है. इसमें महाराष्ट्र का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. सूखा पूर्व चेतावनी प्रणाली (डीईडब्ल्यूएस) ने यह जानकारी दी है. सूखे पर निगरानी रखने वाले डीईडब्ल्यूएस के 28 मई के अपडेट में असामान्य रूप से सूखाग्रस्त इलाके का हिस्सा बढ़कर 42.61 फीसदी हो गया है, जो 21 मई से पहले 42.18 फीसदी था. सबसे बुरी तरह से प्रभावित इलाकों में तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान शामिल हैं. असामान्य रूप से सूखे वाली श्रेणी में बीते साल के 0.68 फीसदी के मुकाबले इस साल 5.66 फीसदी की वृद्धि हुई है.
इस साल मॉनसून पूर्व का यह मौसम 65 सालों में दूसरा सबसे सूखाग्रस्त मौसम है. बारिश की कुल कमी 25 प्रतिशत दर्ज की गई है. मौसम अनुमान जाहिर करने वाली निजी एजेंसी स्काईमेट ने कहा कि 31 मई को समाप्त हुए मॉनसून पूर्व के तीन महीनों में देश में 99 प्रतिशत बारिश हुई है. देश के सभी चार क्षेत्रों -उत्तर पश्चिम भारत, मध्य भारत, पूर्व और पूर्वोत्तर भारत और साथ ही दक्षिण प्रायद्वीप में क्रमश: 30 प्रतिशत, 18 प्रतिशत, 14 प्रतिशत और 47 प्रतिशत कम बारिश हुई है.