भारतीय वायुसेना का एएन-32 विमान सोमवार को असम से उड़ान भरने के 35 मिनट बाद लापता हो गया. विमान में 13 लोग सवार थे और यह अरुणाचल प्रदेश की ओर जा रहा था. वायु सेना ने एएन-32 को खोजने के लिए सी130 ट्रांसपोर्टरों और हेलीकप्टरों को मेचुका-जोरहाट मार्ग पर तैनात किया है. एक ऐसी ही घटना साल 2016 में हुई थी जिसमें एंतनोव एन-32 (एएन-32) विमान लापता हो गया था. इस विमान का मलबा अब तक नहीं मिल पाया है.
एएन-32 की घटना 22 जुलाई 2016 की है. एयर फोर्स का विमान एंतनोव एएन-32 चेन्नई स्थित तांबरम एयर फोर्स स्टेशन से उड़ान भरा था. इस विमान का रजिस्ट्रेशन नंबर के 2743 था. पोर्ट ब्लेयर जाने वाले इस विमान पर 29 लोग सवार थे जिसमें क्रू मेंबर भी शामिल थे. चेन्नई से 8 बजे उड़े इस विमान को पोर्ट ब्लेयर के आईएएनएस उत्कर्ष पर लैंड करना था. उड़ान के कुछ देर बाद ही बंगाल की खाड़ी के ऊपर रडार से विमान का संपर्क टूट गया. इस विमान की तलाश अब तक जारी है. भारत में तलाशी का इसे सबसे बड़ा अभियान माना जाता है.
कई खोजी विमान, पानी के जहाज, पनडुब्बी और यहां तक कि सैटेलाइट भी एएन-32 की तलाशी में लगे रहे लेकिन इसमें कोई कामयाबी नहीं मिली. लापता विमान की तलाशी में भारतीय नौसेना ने भी बड़ा रोल निभाया और दो सर्विलांस एयरक्राफ्ट, चार जहाज और एक पनडुब्बी खोज में लगाए गए. भारतीय वायुसेना ने भी बंगाल की खाड़ी में खोजबीन के लिए अपने तीन विमान लगाए. भारतीय अंतरीक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपना योगदान दिया और अपने रडार इमेजिंग सैटेलाइट लगाए. भारत सरकार ने इस काम के लिए अमेरिका से मदद मांगी थी लेकिन सारी कवायदें नाकाम साबित हुईं.
आखिर इतने बड़े तलाशी अभियान के बाद एएन-32 को क्यों खोजा नहीं जा सका? इसका कारण यह पता चला कि उस लापता विमान में अंडरवाटर लोकेटर बिकॉन नहीं लगा था. जब कोई विमान हादसे के बाद पानी में डूब जाए तो ये बिकॉन रेडियो सिग्नल भेजते हैं जिसे तलाशी अभियान में लगे जहाज या पनडुब्बी रिसीव करते हैं और इसी आधार पर आगे की कार्रवाई होती है. बिकॉन नहीं होने के कारण रेस्क्यू में लगी टीम के हाथ खाली रह गए और लापता विमान का मलबा नहीं मिल पाया.