नौंवी क्लास में था. तेरे नाम फिल्म देखने के बाद बड़े से बालों के साथ बीच की मांग निकालकर घूमने लगा था. इस बात पर अक्सर पापा से पिटाई पड़ती, लाल से गाल लिए मैं जिस शख्स के हेयरस्टाइल की आड़ लेने लगता, वो आज बादलों और तारों की आड़ लेकर दुनिया छोड़ चुका है. अलविदा कलाम सर.
बचपन में साइंस का मतलब केमिस्ट्री के कुछ फॉर्मूले और बायोलॉजी में एक्स-रे की शक्ल से चित्र ही समझ आता था. सामान्य ज्ञान की लंबी सी किताब और क्लास टेस्ट में अक्सर एक सवाल जो सबसे आसान लगता था वो था, देश का राष्ट्रपति कौन है? मिसाइल मैन कौन है? शब्दों की शक्ल लेने से पहले सवाल का जवाब आखों के सामने एक सांवली, मुस्कुराते चेहरे पर हाथ रखती तस्वीर बना देता. एपीजे अब्दुल कलाम की तस्वीर.
स्कूल और कॉलेज के दिनों में बच्चों के लिए राष्ट्रपति का बचकाना मतलब टेस्ट के एक नंबर के सवाल से होता. अगर मुझे राष्ट्रपति का नाम पता होगा, तो टेस्ट में एक नंबर ज्यादा आ जाएंगे. लेकिन ये कलाम का जादू और लोकप्रियता ही तो थी कि बहुत से बच्चे मेरा प्रिय नेता निबंध में कलाम की जीवनी लिखने लगते. ये कमाल के कलाम ही तो थे, जो मोहल्लों के कोनों में अब भी राष्ट्रपति हो तो कलाम जैसी चर्चाएं सुनने को अक्सर मिल ही जाती हैं.
सुपर 30 और आंखों में तमाम सपने लिए प्रतियोगिता परीक्षा देने वाले लोअर मिडिल क्लास परिवार के युवाओं के लिए कलाम आज भी प्रेरणा हैं. बचपन में अखबार डालने की कलाम की कहानी, आज भी न जाने कितने युवाओं के सपनों से भरी आंखों में उगते सूरज से चमक भर देता है, लेकिन आज वो चमक कुछ फीकी पड़ी है. हौसलों की मिसाइल को उड़ान देने वाला मैन अब अपने अंतिम सफर के लिए उड़ चुका है. फेसबुक, ट्विटर पर RIP KALAM के साथ बहुत से भाव सामने आ रहे हैं. पर न जाने क्यों मुझे इसमें भी कलाम का कोई नया सपना ही नजर आता है.
कहते हैं एक दूसरी दुनिया मिली है. लगता है कलाम सर ने उसी दुनिया के लिए कुछ नए प्लान बना लिए हैं, तभी शायद वो निकल पड़े हैं अपने उस अंतिम सफर पर, जहां वो बैठकर अपने सपनों की हकीकत की स्याही में पिरोकर कुछ रच सकें. ताकि सालों बाद जब कभी कहीं उस दुनिया से इस दुनिया का मिलन हो तो एक शख्स कुछ घुंघराले और बड़े से बाल लिए मुस्कराकर बोले- हैलो, आईएम कलाम!