सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर ‘खुला ख़त’ लिखना नया चलन है, नई भाषा में कहें तो ‘ओपन लेटर इज न्यू कूल’ मजे कि बात ये कि खत जिसके नाम लिखा जाता है उस तक कभी पहुंचता नहीं और जिसने लिखा होता है वो चाहता भी नहीं कि उस तक पहुंचे, वो तो बस ये चाहता है कि ढेर से लोग इसे पढ़ें कुल जमा सूरत बदले न बदले हंगामा खड़ा होना चाहिए. तो बतर्ज़ खुला खत ये ख़त उन तमाम पकाऊ-उबाऊ-झेलाऊ-खिझाऊ रिश्तेदारों के नाम जो रिश्तेदारियों से निकल कर सोशल नेटवर्किंग साइट्स तक आ पहुंचें हैं.
“प्रिय स्नेही स्वजन,
सादर यथोचित अभिवादन,
मैं यहां अब तक कुशलपूर्वक हूं और आपके पड़ोसियों की कुशलता की कामना करता हूं,फर्स्ट ऑफ़ आल मैं ये साफ़ कर देना चाहता हूं कि आप फ्रेंडलिस्ट में हैं ये मेरी गलती है कि आपको वक़्त रहते ढूंढकर ब्लॉक न कर सका और आप फ्रेंडलिस्ट में सिर्फ इसलिए हैं, क्योंकि जाने किस-किस की प्रोफाइल से झांकते हुए आपने मुझे खोज निकाला. गति सांप-छछूंदर जैसी होती है पर कैसी होती है ये मैंने तब जाना जब वन न्यू फ्रेण्ड रिक्वेस्ट में आपका नाम दृष्टिगोचर हो रहा था, अब न तो मैं आपकी रिक्वेस्ट नॉट नाउट कर सकता था न आपको ब्लॉक,क्योंकि ब्लॉक किया हुआ रिश्तेदार जिज्ञासु हो पड़ता है और फेंके हुए बूमरैंग की तरह वापिस किसी और रूप में आता है. आपका चिर-परिचित चेहरा जिस पल फेसबुक की खिड़की पर कुछ सेंटीमीटर के चित्ररूप में देखा आंखों से आंसू छलक पड़े और बेशक ये ख़ुशी के नहीं थे.
उन आंसुओं में मैंने अपने फेसबुक पोस्ट्स की स्वतंत्रता को तिलांजलि दे दी,आप सच जानिये ‘तिलांजलि’ किसी लड़की का नाम नहीं है और वो मेरी गर्लफ्रेंड तो कतई नही,साथ ही वो तमाम लडकियां जो किसी ग्रुप फोटो पर आड़े-तिरछे मुंह बनाकर मेरे साथ खड़ी हैं वो भी मेरी गर्लफ्रेण्ड नही हैं,उम्मीद है ये जानने के बाद आप मुझसे और आपसे जुड़े तमाम लोगों को मिलने पर बार-बार फोटो एलबम दिखाने का कष्ट अगली बार न करेंगे.
एक बात और मैं जानता हूं कि आप मुझे बहुत दिनों से जानते हैं इसलिए ‘लाचारी नाम’ भी जानते होंगे और ये भी जानते होंगे कि लाचारी नाम किसी को पसंद नही होते इसलिए ये जरूरी नहीं कि हर फोटो पर ‘नोक्खे तुम मोटे हो रहे हो’,’कुन्ने तू तो ज़रा भी नहीं बदला’ लिख जाएं और अगर किसी फोटो पर कोई कन्या दिल या कोलोन स्टार बना जाए तो आपका उसके इनबॉक्स में जा पहुंचना भी लाजिम नहीं है.
अब जब आपने मेरी ऐरी-गैरी नत्थूखैरी हर बात पर नाक घुसा ही दी है तो आपकी कुछ बातों पर मैं भी टांग अड़ाना चाहूँगा, आपकी भतीजी की फोटो किसी फोटो कॉन्टेस्ट में भेजी गई है या आपके ताऊ के बेटे ने कोई नया पेज बनाया है उसकी लिंक दिन में चार बार मेरी टाइमलाइन पर डाल जाना जरूरी नहीं है, अगर आप खुद की वाल तक ही पोस्ट करें तो हम जरुर ख़ुशी-ख़ुशी लाइक कर आएंगे,और सबसे ख़ास बात अगर रात बारह के बाद चैटबॉक्स में मेरे नाम के आगे हरी बत्ती जलती दिखे तो जरूरी नहीं कि आप रोज ‘किससे बातें चलती हैं आधी-आधी रात तक?’ ही पूछें,मैं अपने नेट पैक की कसम खाकर कहता हूं रात बारह बजे के बाद ऑनलाइन होना और किसी की बिटिया के साथ भाग जाना दो अलग बातें होती हैं.
शायद मैं फेसबुक पर आपके पहले आया होऊं, लेकिन इसका ये मतलब नही कि मैंने देवतालाब वाली बुआ की नातिन से लेकर गोविन्दगढ़ वाली मौसी की चचेरी पतोहू तक को ऐड कर रखा है अगर वो आपको म्युचुअल फ्रेंड्स में नहीं दिखीं तो पक्का मैंने उन्हें किसी गुप्त फ्रेंडलिस्ट में नही छुपा रखा, नौकरी नौ से पांच की होती है इसलिए हर सुबह आपकी गुड मोर्निंग और हर रात आपके गुड नाइट फ्रेंजज्ज्ज्ज़ को लाइक-कमेन्ट न कर पाने का ये मतलब नहीं कि मैं आपसे नाराज हूँ, अगर आप खाली समय में हर किसी से ‘नौकरी कैसी चल रही?’ पूछने के आदी हो ही चुके हैं तो आपको अभी बता दूं कि हफ्ते में आपके तीन बार वही सवाल करने के अंतराल में सत्या नडेला मुझे माइक्रोसॉफ्ट न बुला चुके होंगे.
आपने पिछले महीने मुझे फैमिली मेंबर्स में ऐड कर डाला,जानकर ख़ुशी हुई कि फेसबुक पर अब आप तीर घुसे दिल की फोटो पर टैग और पीले ट्यूलिप की डिफॉल्ट वॉलपेपर वाली फोटो को प्रोफाइल पिक पर लगाने के बचपने से निकल वर्चुअल दुनिया में रिश्तेदारों के करीब आने का प्रयास कर रहे हैं, रिश्ते आपके लिए काफी अहमियत रखते हैं ये आपके लाइक किए ‘भाभियों’ वाले पेज से पता चलता है,भगवान के लिए उन्हें अनलाइक न कीजिये तो कम से कम उन पर कमेन्ट तो न कीजिये आपकी ठरक मेरे न्यूजफीड तक पहुँच रही है.
और भी बहुत कुछ कहना है आपसे पर वो फिर कभी, आपके फेसबुक पर होने से समस्या नहीं है आपके इस तरह होने और ऐसे पेश आने से समस्या हो जाती है. शेष कुशल बड़ों को प्रणाम छोटों को आशीर्वाद.
आपका अपना
(खिझाऊ रिश्तेदारों से फेसबुक पर प्रताड़ित अपना नाम लिख लेवें)