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प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक आम आदमी का खुला खत

आदरणीय प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी,सबसे पहले तो मैं ये बिना असभ्य हुए साफ कर दूं कि ये जो आपके नाम और पद के पहले आदरणीय शब्द जोड़ा है, वह आपकी बुजुर्गियत, विनम्रता और इस पद की संवैधानिक गरिमा के चलते जोड़ा है.

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प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह

आदरणीय प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी,
सबसे पहले तो मैं ये बिना असभ्य हुए साफ कर दूं कि ये जो आपके नाम और पद के पहले आदरणीय शब्द जोड़ा है, वह आपकी बुजुर्गी, विनम्रता और इस पद की संवैधानिक गरिमा के चलते जोड़ा है. बेहतर तो होता कि मैं इस देश का आम आदमी लिखता, मेरे प्यारे पीएम जी. मगर माफ कीजिए. प्यार कहीं से भी नहीं आ रहा. और आज आपका कमोबेश विदाई के भाव में रचा भाषण सुनने के बाद तो खीझ और भी बढ़ गई है.

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सिंह साहब, ये बोलता हुआ देश है और पिछले कुछ बरसों में तो इसकी बेचैनी इतनी बढ़ गई है कि बोल शोर में बदल गए हैं. हर हफ्ते का सब्जी का खर्च जब बढ़ा तो हम वहीं मंडी में ही भिनभिनाने लगे. जब पेट्रोल पंप की लाइन में लगे, तो मीटर देखकर लगा अपनी शुगर रिपोर्ट देख रहे हों जैसे. बलात्कार के मुद्दे पर हम युवा सड़कों पर उतरे, तब सरकार ने हमारा स्वागत लाठियों और पानी की बौछार से किया. मगर हम बोले, लगातार बोले और आपसे देश का संवैधानिक मुखिया होने के नाते ये उम्मीद की कि आप भी बोलेंगे. हमारे सुलगते सवालों का जवाब देंगे. मगर नहीं, आप ज्यादातर वक्त तक चुप्पी साधे रहे और जब इस पर सवाल पूछा गया. तो आप बोले, हां मैं बोलता हूं. मगर पार्टी के फोरम पर. प्रधानमंत्री जी, आप कांग्रेस पार्टी के नहीं, इस देश के मुखिया हैं. तो बेहतर होता कि देश आपको सुनता, एक खास परिवार या पार्टी के चुनिंदा प्रतिनिधि नहीं.

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बीजेपी नेता और पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा का आपके बारे में कहा एक जुमला अब देश में खूब दोहराया जाता है, मनमोहन सिंह एक ओवर रेटेड इकॉनमिस्ट हैं और अंडर रेटेड पॉलिटीशियन. मुझे अफसोस है कि आप आपकी राजनीतिक समझ बहुत कच्ची दिखी. जब आपसे कोयला आवंटन और 2जी स्पेक्ट्रम में हुए घोटालों पर सवाल पूछे गए, तो आपका जवाब था, ये सब यूपीए 1 में हुआ और उसके बाद हुए चुनावों में जनता ने हम पर यकीन दिखाया. तो क्या आप कह रहे हैं कि इन घोटोलों या गड़बड़ियों पर जनादेश की मुहर लग गई. सब जायज हो गया. क्या बहुमत मिलना ही सब कुछ सफेद करने की शर्त है. तब तो फिर आपको आज के भाषण में नरेंद्र मोदी पर भी सवाल नहीं उठाना चाहिए था. क्योंकि वह भी तो 2002 के गुजरात दंगों के बाद तीन बार जनादेश हासिल कर चुके हैं. कितना बड़ा विरोधाभास था आपकी दलीलों में!

आपको लगता है कि मीडिया, सीएजी और विपक्ष ने निर्मम और अतार्किक रवैया अपनाया है आपके मूल्यांकन में. आपको लगता है कि इतिहासकार ज्यादा दयालुपूर्ण ढंग से आपका मूल्यांकन करेंगे. मुझे गर्व हो रहा है ये कहते हुए कि आपको गलत लगता है. हम इस देश के युवा कभी ट्विटर, कभी फेसबुक, कभी ब्लॉग तो कभी बैलेट के जरिए अपनी बेचैनी जाहिर करना सीख रहे हैं. हम इस देश का इतिहास लिखेंगे और पूरी निर्ममता से यह बात लिखेंगे कि जब देश 21वीं सदी के सबसे निर्णायक वक्त में था, तब आपने चुप्पी के साथ कभी गठबंधन के धर्म तो कभी गांधी परिवार के मर्म के सामने सरेंडर कर दिया.मनमोहन जी, इतिहास दयालु नहीं निर्मम होता है और ये बात आप भी जानते हैं. जरा याद करिए कि आपको राष्ट्रीय फलक पर चमकाने वाले पीवी नरसिम्हाराव का इतिहास और उनके साथ आपकी पार्टी का सुलूक. बहुत मुमकिन है कि 2014 के चुनावों में कांग्रेस के गुड़-गोबर होने पर उन नतीजों के लिए आपकी सरकार को ही जिम्मेदार ठहराया जाए.

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जहां खरी-खरी बोलने की बात थी, मसलन वीरभद्र सिंह पर लगे आरोप, आपने सपाट जवाब दिया कि अभी मुझे जेटली की चिट्ठी पर दिमाग लगाने का वक्त नहीं मिला. तो मुझे उम्मीद है कि बहुत जल्द आपको वक्त ही वक्त मिलेगा. आज आपकी चौकसी नरेंद्र मोदी को घेरने पर रही, जो कि पार्टी लाइन के लिहाज से सही भी है. मगर देश आपसे मोदी के अलावा और भी मुद्दों पर ऐसी ही सतर्क मगर सटीक टिप्पणी चाहता था. प्रेस कॉन्फ्रेंस में कभी तो आप बोले कि गठबंधन की मजबूरियों के चलते जो बेस्ट हो सकता था, मैंने किया. कभी बोले कि हमने गठबंधन की सरकार चलाकर दिखा दी. तो तय कर लीजिए कि गठबंधन से नफा हुआ कि नुकसान. प्रोफेसर रहे हैं आप, जानते हैं कि गोल-मोल बात से कितना खीझते हैं हम युवा स्टूडेंट.

बातें बहुत हैं, मगर आप कम बोलने वाले हैं इसलिए हम भी कुछ कम शब्दों में ही अपनी तकलीफ बता रहे हैं. बतौर प्रधानमंत्री संभवत: अपनी आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में आप कुछ सच कहते और स्वीकार करते तो अच्छा लगता.

आपकी अच्छी सेहत की कामना करता

एक आम आदमी

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