प्रिय युवराज,
कल का मैच खत्म होने के बाद जब तुम आसमान और जमीन को बारी-बारी देखते हुए, कमजोर कदमों से पवेलियन की ओर बढ़ रहे थे तो मेरे दिमाग में कई तस्वीरें एक क्रम से दौड़ गईं. श्रीकांत वर्मा की एक कविता है, केवल अशोक लौट रहा है और सब कलिंग का पता पूछ रहे हैं/ केवल अशोक सिर झुकाए हुए है और सब विजेता की तरह चल रहे हैं/ केवल अशोक के कानों में चीख गूंज रही है/ केवल अशोक ने शस्त्र रख दिए हैं/ केवल अशोक लड़ रहा था.
केवल युवराज लड़ रहा था. क्रिकेट के मैदान पर नहीं, जेहनी तौर पर, अपने ही लोगों से. हाल-फिलहाल में युवी तुमने कुछ नहीं जीता. पर टाइमलाइन पर थोड़ा ही पीछे जाता हूं तो तुम्हें उतना ही विजयी पाता हूं. तुम हमेशा एक विनर, एक फाइटर रहे, पर कल तुम्हारे मैदान से वापस जाने में जो निराशा थी, उससे लगा कि तुम अपने ही देश से हार गए हो.
तुम्हारे घर के बाहर हुए प्रदर्शन और सोशल मीडिया के प्रलाप की खबरें तुम तक पहुंची होंगी. तुम्हें लगता होगा कि अपने ही लोग तुम्हारे दुश्मन क्यों हो गए हैं. सिर्फ एक दिन की गलती की वजह से, वह भी उस खेल में जो अनिश्चितताओं से भरा हुआ है.
युवी, मैं इस कृतघ्न देश के बर्ताव के लिए तुमसे माफी मांगना चाहता हूं. यह थोड़ा सा स्वार्थी, काफी भुलक्कड़ और क्रिकेट को लेकर प्रतिक्रियावादी मुल्क है. यह उस दौर को भूल जाता है जब प्रैक्टिस सेशन में खून की उल्टियां करते हुए तुमने न जाने कितनी जीतों की बुनियाद रखी थी. यह भूल जाता है जब अपने भीतर पल रहे कैंसर के चलते तुम बीच मैदान पर खांसने-हांफने लगते थे. यह भूल जाता है कि देश को पहला टी-20 वर्ल्ड कप जिताने वाले तुम ही थे. तुम्हीं थे जिसने एक यूरोपीय तेज गेंदबाज की छह गेंदों पर छह छक्के जड़कर भारतीय दर्शकों को भी सीना फुलाने का मौका मुहैया कराया था. एक शाश्वत-सा भरोसा जगाया था.
2011 का वर्ल्ड कप भी हम भूल जाते हैं. वही खिताब जिसे टीम इंडिया ने सचिन को समर्पित
किया, तुम्हारी ही बदौलत ही हमें मिला. तुम ही थे 'मैन ऑफ द टूर्नामेंट'. लेकिन तुम्हारी जीत की
तस्वीरों और आंकड़ों को फिर से याद करने लिए शायद इस देश को गूगल देवता की जरूरत है.
अस्पताल में संघर्ष की तुम्हारी वे तस्वीरें किसी कूड़ेदान का हिस्सा हो गई हैं अब. उसके बाद तुम्हारी उस चमत्कारिक वापसी को हमने अंतरिक्ष में कहीं डंप कर दिया है शायद.
युवराज, मुझे कहने दो कि कल तुम यकीनन बुरा खेले. पर तुम खलनायक बनाया जाना डिजर्व नहीं करते हो. तुम्हारे संघर्ष, सम्मान और प्रतिभा का मैं कायल हूं और इसका सम्मान मेरे जेहन में हमेशा रहेगा. युवी, तुम्हारा अज़्म अब भी बुलंद है और तुम्हें पराये शोलों का डर भी नहीं है. तुम्हें खतरा आतिश-ए-गुल से ही है. वही गुल जिसे सींचने में तुमने अपनी जिंदगी के कुछ बेशकीमती साल लगा दिए.
पर इस निर्मम देश से रहम की अपील मत करना तुम. यह वही देश है जो कहता है कि वर्ल्ड कप जीतो न जीतो, पाकिस्तान को हरा दो. इसके क्रिकेटीय राष्ट्रवाद की तुष्टि ऐसे ही होती है. यही कल श्रीलंका का झंडा जला रहा था. आईपीएल की धौंस दे रहा था. रही बर्दाश्त की बात तो देख लेना कि मेरे इस खत पर ही अभी तमाम लोग 'फूल' बरसाने लगेंगे.
युवी तुम फाइटर हो, यकीन है कि वापसी करोगे. बस इतना ही कहना है. जोक्स के आगे भी
दुनिया है. तुम ही तो कहते थे कि जब तक बल्ला चल रहा है, तब तक ठाठ है. हमें उम्मीद है
कि ठाठ जल्द ही सही रास्ते से वापस लौटेंगे. वी लव यू, युवी.