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Opinion: फिर शर्मसार हुई देश की राजधानी!

देश की राजधानी दिल्ली एक बार फिर शर्मसार हुई है. निर्भया कांड के बाद बने कड़े कानूनों का भी गुंडों को भय नहीं रहा और न ही पुलिस की व्यवस्था उतनी चुस्त-दुरस्त रही कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्त‍ि न हो. हालात वैसे के वैसे ही हैं. महानगर में महिलाओं की इज्जत सुरक्षित नहीं है, ऐसा कहना गलत नहीं होगा. असामाजिक तत्वों के हौसले बुलंद हैं और वे अक्सर मनमानी करते दिख रहे हैं.

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इसी कैब में हुई थी वारदात
इसी कैब में हुई थी वारदात

देश की राजधानी दिल्ली एक बार फिर शर्मसार हुई है. निर्भया कांड के बाद बने कड़े कानूनों का भी गुंडों को भय नहीं रहा और न ही पुलिस की व्यवस्था उतनी चुस्त-दुरस्त रही कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्त‍ि न हो. हालात वैसे के वैसे ही हैं. महानगर में महिलाओं की इज्जत सुरक्षित नहीं है, ऐसा कहना गलत नहीं होगा. असामाजिक तत्वों के हौसले बुलंद हैं और वे अक्सर मनमानी करते दिख रहे हैं.

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अब इस बार एक कंपनी मे काम करने वाली एक महिला को यह दंश झेलना पड़ा. एक अंतर्राष्ट्रीय कंपनी की टैक्सी से घर वापस जा रही उस महिला के साथ टैक्सी ड्राइवर ने जान से मारने की धमकी देकर रेप किया. पीड़ित महिला ने इस घटना के बाद पूरा साहस दिखाया और उस हालत में भी पुलिस को संपर्क करने में सफल रही. खैरियत यह रही कि इस बार पुलिस ने आनन-फानन में कार्रवाई की और अपराधी हत्थे चढ़ गया.

मालूम पड़ा कि वह तो पहले भी ऐसा अपराध कर चुका है. इतना ही नहीं उसके पास न तो वाहन चलाने का कोई लाइसेंस है और न ही उसका दिया हुआ पता असली. उस कंपनी ने उसके पते की कोई जांच भी नहीं करवाई थी और न ही यह देखने की कोशिश की कि उसके पास लाइसेंस है या नहीं. इतनी बड़ी कंपनी होकर भी उसने गाड़ी में जीपीएस नहीं लगवाया था. इससे अपराधी ड्राइवर और उसकी गाड़ी का पता लगाना नामुमकिन सा हो गया था. इतनी बड़ी कंपनी जिसका देश-विदेश में नाम है, यहां इतनी बड़ी लापरवाही कैसे कर सकती है? उसकी इस लापरवाही से कितने बड़े अपराध को बढ़ावा मिला? इसमें उसका बड़ा दोष है और वह उससे पल्ला नहीं झाड़ सकती है.

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यहां एक और सवाल खड़ा होता है और वह यह कि आखिर दिल्ली में इस तरह के अपराध रुक क्यों नहीं रहे? महिलाओं के प्रति दरिंदगी क्यों बढ़ती जा रही है? ऐसा लगता है कि सामाजिक वर्जनाएं टूट गई हैं. महिलाओं के प्रति सम्मान का भाव कम होता दिख रहा है. समाज में ऐसा बुरा बदलाव क्यों आ रहा है, इस बारे में सोचने का वक्त आ गया है. यह घटना महानगर को शर्मसार तो कर ही रही है आने वाले समय के लिए खतरे की घंटी भी बजा रही है. हमारे समाज की सोच में बदलाव आ रहा है. लोग खासकर, छोटे शहरों या कस्बों से आए हुए लोगों की सोच में ज्यादा विकृति दिख रही है और इसका कारण साफ है कि वे अपने समाज से दूर आकर सामाजिक बंधन से दूर हो गए हैं.

दिल्ली में महिलाओं के प्रति अपराधों में ऐसे लोगों की तादाद ज्यादा है जो समाज से दूर हैं या कटे हुए हैं. इस कांड के अभियुक्त की गिरफ्तारी से कुछ खास बदलने वाला नहीं है. अदालत तो उसे कड़ी सजा देगी ही लेकिन हमें फिर सोचना होगा कि ऐसी घटना की पुनरावृत्त‍ि न हो, ऐसा कैसे हो सकता है. जब कानून का भय खत्म हो जाए तो ऐसा घटनाएं होती हैं. जाहिर है यह सोचना होगा कि वह भय फिर से कैसे लोगों में लौटे.

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