प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह आज जब लाल किले की प्राचीर पर भाषण देने पहुंचे तो उनसे एक विशेष उम्मीद थी. गुजरात के मुख्यमंत्री और बीजेपी के अघोषित पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने उनकी कमजोरी जानते हुए उन्हें भाषण के मामले में ललकारा था. उम्मीद थी कि इस बार प्रधानमंत्री कुछ नई बातों और तेवर के साथ भाषण देंगे. लेकिन उन्होंने सभी उम्मीदों को धराशायी कर देश को निराश ही किया.
अपने पूरे भाषण में प्रधानमंत्री यूपीए और देश की उपलब्धियां ही गिनाते रहे. उनका भाषण तथ्यों से पटा हुआ था और उसमें जरूरी विचार बहुत कम था. सुस्त आर्थिक प्रगति, बढ़ती कीमतों, भ्रष्टाचार, सरहद पर तनाव और नेतृत्व के मुद्दे पर कोई आशा की किरण उनके भाषण में नहीं दिखी.
उन्होंने यह जरूर कहा कि देश को अभी बहुत फासला तय करना है, पर वह क्या है और कैसे होगा, इसकी विस्तृत चर्चा उन्होंने नहीं की. उन्होंने नहीं बताया कि विकसित और ताकतवार देश बनने की दिशा में हमारी भविष्य की नीति क्या होगी.
प्रधानमंत्री के भाषण पर बोझिल सरकारी भाषा हावी रही. हमेशा की तरह उन्होंने लिखा हुआ भाषण पढ़ा और हिंदी के सामान्य शब्दों पर उनकी जुबान लड़खड़ाती रही. आजादी के बाद से शुरू कर वह देश की उपलब्धियां गिनाते रहे. देश में कितनी सड़कें और फ्लाईओवर बने, वह यह बताने में व्यस्त रहे और जिन मुद्दों पर लोग उन्हें सुनना चाहते थे, उन पर कुछ नहीं कहा.
पाकिस्तान के हमले पर भी उन्होंने रटे रटाए वाक्य कहे. रुपये की कीमत में गिरावट पर भी उन्होंने कोई व्यावहारिक बात नहीं की.
भाषण के अंत में उपसंहार के तौर पर बिना उन्होंने यह दावा जरूर कर दिया कि वह वक्त दूर नहीं जब भारत को गरीबी, भूख, बीमारी और अशिक्षा से पूरी तरह मुक्ति मिल जाएगी और देश खुशहाल हो जाएगा.
पीएम के भाषण पर क्या कहते हैं एक्सपर्ट
नलिनी सिंह, वरिष्ठ पत्रकार: प्रधानमंत्री के इस कार्यकाल का यह लाल किले से आखिरी भाषण है. प्रधानमंत्री के पास अच्छा मौका था. वह यहां से एक राजनीतिक संदेश भी दे सकते थे, पर नाकाम रहे.
ओम थानवी, वरिष्ठ पत्रकार: मैंने इससे खराब भाषण नहीं सुना. प्रधानमंत्री ने सिर्फ लिखी हुई बातें पढ़ दी हैं. उनके उच्चारण और फ्लो से भी यही लगा कि भाषण में उनका योगदान बहुत कम रहा है. सरकार की उपलब्धियां गिनाने के मंच और मौके और भी हैं और ये काम दूसरे लोग कर सकते हैं. 15 अगस्त के दिन लाल किले से इन बातों को दोहराने का क्या मतलब है.