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'विदेशी पर्यटक' बनकर आ रहा प्लास्टिक, निकोबार द्वीप की सुंदरता को खतरा

दुनिया के साफ-सुथरे तटों में से एक अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के ग्रेट निकोबार द्वीप के तटों पर प्रदूषण फैल रहा है. ये प्रदूषण फैल रहा है समुद्र में विदेशों से बहकर आने वाले प्लास्टिक की वजह से. उसके पांच बड़े तटों पर प्लास्टिक कचरे की मात्रा बढ़ रही है.

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सैंड आर्टिस्ट सुदर्शन पटनायक ने पिछले साल समुद्री कचरे से होने वाले नुकसान पर बनाई थी कलाकृति.
सैंड आर्टिस्ट सुदर्शन पटनायक ने पिछले साल समुद्री कचरे से होने वाले नुकसान पर बनाई थी कलाकृति.

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  • मलेशिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड का कचरा निकोबार में
  • प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन पर नहीं चल रहा है काम

दुनिया के साफ-सुथरे तटों में से एक अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के ग्रेट निकोबार द्वीप के तटों पर प्रदूषण फैल रहा है. ये प्रदूषण फैल रहा है समुद्र में विदेशों से बहकर आने वाले प्लास्टिक की वजह से. निकोबार द्वीप के पांच तटों पर किए गए एक सर्वे में पता चला है कि उसके पांच बड़े तटों पर प्लास्टिक की मात्रा बढ़ रही है.

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करेंट साइंस के ताजा संस्करण में प्रकाशित इस सर्वे में पता चला कि है कि तटों को प्रदूषित करने वाले प्लास्टिक ज्यादातर पड़ोसी देशों से समुद्र के रास्ते बहकर आ रहे हैं. निकोबार द्वीप पर सबसे ज्यादा प्लास्टिक प्रदूषण फैला रहा है मलेशिया. निकोबार द्वीप पर मलेशिया से कुल 40.5 फीसदी, इंडोनेशिया से 23.9 फीसदी और थाईलैंड से 16.3 फीसदी प्लास्टिक कचरा बहकर आ रहा है. स्टडी करने वाले बीराजा कुमार साहू और बी. बास्कर ने बताया कि चीन, वियतनाम, म्यांमार, सिंगापोर, फिलीपींस, जापान और भारत भी प्लास्टिक प्रदूषण फैला रहे हैं लेकिन इनकी मात्रा कम है.

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भारत से तो सिर्फ 2.2 फीसदी प्लास्टिक प्रदूषण फैल रहा है. बीराजा कुमार साहू CSIR इंस्टीट्यूट ऑफ मिनरल्स एंड मैटेरियल टेक्नोलॉजी और बी. बास्कर अमेरिका के मिनियेसोटा स्थित मेयो क्लीनिक से जुड़े हैं. इनके अध्ययन में पता चला है कि निकोबार द्वीप पर 10 देशों से प्लास्टिक का कचरा बहकर आ रहा है.

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क्यों निकोबार द्वीप पर आ रहा है प्लास्टिक कचरा?

इंडोनेशिया, मलेशिया और थाईलैंड से निकोबार द्वीप नजदीक है. समुद्र में मलाका स्ट्रेट से होते हुए प्लास्टिक का कचरा बहकर निकोबार द्वीप चला आता है. इसका बड़ा कारण है लहरों के प्रवाह निकोबार द्वीप की तरफ होना. दूसरा कारण हैं इन देशों से चलने वाले जहाजों के पीछे छूटने वाली लहरें भी प्लास्टिक कचरे को निकोबार द्वीप की तरफ ढकेलती हैं. अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि निकोबार द्वीप के आसपास भारी मात्रा में समुद्री कचरा देखा गया है. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि सॉलिड वेस्ट का प्रबंधन, मछली पकड़ने से जुड़े व्यवसाय और जहाजों के ट्रैफिक का सही से नियंत्रण नहीं हो रहा है.

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पर्यटन के कारण भी निकोबार द्वीप पर बढ़ रहा है कचरा

भारतीय पर्यटकों की वजह से ही निकोबार द्वीप के तटों पर प्लास्टिक का कचरा फैल रहा है. यह धीरे-धीरे बढ़ रहा है. इसका बड़ा कारण है द्वीप पर प्लास्टिक प्रदूषण को लेकर गाइडलाइंस जारी नहीं है. साथ ही कचरा प्रबंधन, निगरानी और स्थानीय और घूमने आने वाले लोगों को जागरूक करने के लिए कर्मचारियों की कमी है.

क्यों जरूरी है निकोबार द्वीप समूह काे संरक्षित करना?

निकोबार द्वीप समूह 1044 वर्ग किमी में फैला है. 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की कुल आबादी 8,069 है. यहीं पर सबसे प्राचीन आदिवासी समुदायों में से एक शोम्पेंस भी यही रहते हैं. इसी द्वीप पर ग्रेट निकोबार बायोस्पेयर रिजर्व भी है. इसी के अंदर गलाथिया नेशनल पार्क और कैंपबेल बे नेशनल पार्क भी है. इन द्वीपों पर उष्णकटिबंधीय सदाबहार जंगल, पहाड़ और तट हैं. यहां रॉबर क्रैब, केकड़े खाने वाले मकाऊ बंदर, दुर्लभ मेगापोडे पक्षी और लेदर बैक कछुआ भी पाया जाता है.

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