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जारवा जनजाति की परंपरा के आगे मजबूर पुलिस, हत्या देखकर भी खामोश

जारवा जनजाति सबसे पुरानी जनजातियों में से है जो वर्तमान में भी अपने पुरातन तौर-तरीकों के आधार पर जीवनयापन कर रही है.

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साउथ अंडमान आइलैंड में पुलिस और स्थानीय प्रशासन ऐसी दुविधा की स्थिति में पहुंच गया है जहां उन्हें संविधान का पालन तो करना ही है लेकिन साथ ही जारवा जनजाति की पवित्रता और मान्यताओं को भी बनाए रखना है.

जारवा जनजाति सबसे पुरानी जनजातियों में से है जो वर्तमान में भी अपने पुरातन तौर-तरीकों के आधार पर चल रही है. स्थानीय पुलिस और अधिकारियों को साफ निर्देश मिले हैं कि वह इस समुदाय से जुड़े मामलों और परंपराओं में कम से कम दखल दें.

कुल आबादी है 400
एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस जनजाति के लोगों की संख्या करीब 400 है, जो लगभग 50 हजार साल पहले अफ्रीका से यहां आकर बस गए थे. इनकी स्किन बिल्कुल काली होती है और कद छोटा होता है. 1998 तक यह जनजाति बिल्कुल अलग जीवन जीती रही और बाहरी लोगों को देखते ही मार देती थी, हालांकि बाद में इनकी आदतें बदलीं.

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यह जनजाति अब बाहरी दुनिया के लोगों के संपर्क में आ रही है लेकिन अगर इनके किसी बच्चे का रंग इनसे मिलता-जुलता नहीं दिखता तो ये उसे मार डालते हैं. जनजाति की यह भी परंपरा है कि अगर कोई विधवा मां बनती है, या बच्चा किसी बाहरी शख्स का लगता है तो वे उसे मार देते हैं.

पुलिस को है दखल न देने का आदेश
ऐसे कई मामले लगातार सामने आते रहे हैं लेकिन पुलिस को इसमें दखल न देने का आदेश है. परंपरा के तौर पर हाल ही में एक बच्चे को मार डाला गया, जिसके बाद मामला फिर से चर्चा में आ गया. जनजाति पर लंबे समय से अध्ययन कर रहे डॉ. रतन चंद्राकर ने कहा कि वह ये सब वर्षों से देखते आ रहे हैं लेकिन उनकी परंपरा होने के नाते कभी दखल नहीं दिया.

हालिया घटना चर्चा में इसलिए आई क्योंकि इसे अपनी आंखों से देखने वाले शख्स ने पुलिस से शिकायत की. बताया जा रहा है कि बच्चा जन्म के करीब पांच महीने बाद अचानक गायब हो गया था और बाद में वह रेत में दफनाया हुआ मिला था.

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