काले धन और भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के लिए प्रधानमंत्री मोदी का 500 और 1,000 रुपए के नोट बंद करने का फैसला कई दिन से सुर्खियों में है. हम और आप, सभी इससे प्रभावित हैं. अगर आप सोच रहे हैं कि इस फैसले के पीछे वित्तीय विशेषज्ञों की पूरी टीम है या फिर यह रातोंरात लिया गया फैसला है तो यह गलत है.
दरअसल इस फैसले के पीछे एक आम आदमी की सलाह है. जिस पर कई माह से चर्चा चल रही थी.
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मोदी के पास यह आइडिया लेकर आए थे औरंगाबाद के चार्टर्ड अकाउंटेंट अनिल बोकिल. जुलाई में बोकिल ने प्रधानमंत्री से मुलाकात कर उन्हें अपने इस आइडिया के बारे में बताया था. रिपोर्ट के अनुसार उन्हें अपनी बात रखने के लिए पहले केवल 8 मिनट का समय दिया गया था लेकिन जब वे मोदी के पास पहुंचे और उन्हें अपना आइडिया बताया तो यह चर्चा करीब 2 घंटे तक चली.
बोकिल ने मोदी को समझाया कि इस तरह बड़े नोटों को बंद करने से किस तरह काले धन की समस्या को सुलझाया जा सकता है. बोकिल 'अर्थक्रांति संस्थान' नामक ग्रुप से जुड़े हैं. बोकिल ने एक वीडियो जारी कर कहा है, 'बिना सूचना के छिपाए गए धन के कारण ही प्रॉपर्टी, जमीन, घरों, ज्वैलरी आदि की कीमतें बेतहाशा बढ़ी हैं. इस कदम से नकली नोटों का पता भी लगाया जा सकेगा.'
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बोकिल ने मोदी से मुलाकात में कुछ अन्य प्रपोजल भी दिए थे. उन्होंने कहा था कि वर्तमान में जो टैक्सेशन सिस्टम है उसमें कुछ बदलाव किए जाएं. साथ ही वित्तीय लेनदेन को 2,000 रुपये तक सीमित किया जाए.
बता दें कि अर्थक्रांति की ये टीम कई राजनीतिज्ञों और वित्तीय विशेषज्ञों से मिल चुकी है. मार्च 2007 में वे प्रतिभा पाटिल से उस समय मिले थे जब वे राजस्थान की गर्वनर थीं. इन्होंने लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चैटर्जी को भी पत्र लिखकर मांग की थी कि उनकी टीम को संसद में एक मॉडल पेश करने की अनुमति दी जाए. उसके बाद वे कई राजनीतिज्ञों से भी मिले. पर आखिरकार मोदी ने उनकी बात सुनी.