सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे एक बार फिर आंदोलन करने की तैयारियों में जुटे हैं. दरअसल, इस बार वो मोदी सरकार से नाखुश हैं. अन्ना हजारे के मुताबिक मोदी सरकार से भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम उठाने की जितनी उम्मीद की थी, उतना काम नहीं हो सका है. मोदी सरकार अपने तीन साल के कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार की घटनाओं को रोकने में नाकाम रही है.
अन्ना हजारे ने मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार रोकने में नाकाम रहने का आरोप लगाते हुए आज यानी मंगलवार को भ्रष्टाचार के खिलाफ एक नया अभियान शुरू करने की घोषणा कर दी है. अन्ना हजारे ने लोगों से अपील की है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ इस अभियान में वो भी उनका साथ दें और उनके साथ शामिल हों.
अन्ना हजारे ने आन्दोलन में लोगों से भाग लेने की अपील करने के साथ ही कहा कि साल 2011 में पहला आंदोलन शुरू किया था. इसके बाद तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार लोकपाल कानून पारित करने पर बाध्य हुई थी. लेकिन उसे इस सरकार ने कमजोर कर दिया है.
उम्मीद पर खरी नहीं उतरी मोदी सरकार
अन्ना ने कहा कि इसके बाद नई सरकार सत्ता में आई. इस सरकार से लोगों को बहुत सी उम्मीदें और आकांक्षाएं थीं. लेकिन 3 साल बीत जाने के बावजूद मोदी सरकार ने न तो लोकपाल-लोकायुक्त कानून को लागू किया और ना ही भ्रष्टाचार रोकने के लिए कोई ठोस कदम उठाए. उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार ने लोकपाल कानून की धारा 44 में बदलाव कर इसे और कमजोर कर दिया, इस स्थिति में एक आंदोलन की फिर से जरूरत है.
गौरतलब है कि हाल ही में गांधी जयंती पर अन्ना हजारे ने राजघाट पर एक दिन का सत्याग्रह किया था. यहां अन्ना हजारे ने कहा था कि 6 साल गुजर जाने के बाद भी जनलोकपाल नहीं आ सका है. मोदी सरकार भ्रष्टाचार को रोकने में फेल है और जनलोकपाल व लोकायुक्त को लेकर गंभीर नहीं है.
कौन हैं अन्ना हजारे...
अन्ना हजारे एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जिनका वास्तविक नाम किसन बाबूराव हजारे है. 15 जून 1938 को महाराष्ट्र के अहमद नगर के भिंगर कस्बे में जन्मे अन्ना हजारे का बचपन बहुत गरीबी में गुजरा. पिता मजदूर थे, दादा फौज में थे. दादा की पोस्टिंग भिंगनगर में थी. अन्ना के पुश्तैनी गांव अहमद नगर जिले में स्थित रालेगन सिद्धि में था. दादा की मौत के सात साल बाद अन्ना का परिवार रालेगन आ गया. अन्ना के 6 भाई हैं. परिवार में तंगी का आलम देखकर अन्ना की बुआ उन्हें मुम्बई ले गईं. वहां उन्होंने सातवीं तक पढ़ाई की. परिवार पर कष्टों का बोझ देखकर वह दादर स्टेशन के बाहर एक फूल बेचनेवाले की दुकान में 40 रुपये की पगार में काम करने लगे. इसके बाद उन्होंने फूलों की अपनी दुकान खोल ली और अपने दो भाइयों को भी रालेगन से बुला लिया.