रैगिंग पर पूरी तरह से अंकुश लगाने के मकसद से दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) ने नए शैक्षणिक सत्र में बेहद कड़े कदम उठाते हुए फैसला लिया है कि कैंपस में रैगिंग के दोषी छात्रों का एडमिशन रद्द कर दिया जाएगा. रैगिंग शैक्षणिक संस्थानों में एक ऐसी बीमारी है जिसका लंबे समय से इलाज तो किया जा रहा है, लेकिन पूरी तरह से खत्म नहीं हो सकी है. आलम यह है कि पिछले 7 सालों में रैगिंग की 4761 शिकायतें सामने आईं और 54 छात्रों ने अपना जीवन ही खत्म कर लिया.
रैगिंग के खात्मे के लिए सुप्रीम कोर्ट के कड़े एक्शन के बाद भी यह जारी है और कहीं न कहीं से इससे जुड़ी खबरें आती रहती हैं. यूजीसी हर साल सभी विश्वविद्यालयों को एंटी रैगिंग गाइडलाइंस भेजती है. साथ में एंटी रैगिंग कमेटी बनाने के लिए सर्कुलर भी भेजा जाता है. 2017 से तो वेबसाइट के जरिए सीधे यूजीसी को भी शिकायत करने की सुविधा छात्रों को दी गई है, लेकिन रैगिंग के मामले कम होने का नाम नहीं ले रहे.
कॉलेजों में नया बैच आने वाला है और कई जगहों पर एडमिशन चल भी रहा है. ऐसे में स्कूल प्रशासन के सामने शुरुआती सबसे बड़ी चुनौती रैगिंग रोकने की है. दिल्ली विश्वविद्यालय ने इस बार रैगिंग के दोषी छात्रों का एडमिशन खत्म करने की बात कही है, लेकिन यह धरातल पर कितना असर डालेगा तो आगे पता चलेगा. फिलहाल 18 अप्रैल 2012 से लेकर 19 जुलाई 2019 के बीच रैगिंग के खिलाफ 4761 शिकायतें सामने आईं जिसमें 4697 मामले बंद हो चुके हैं. 48 शिकायतें अभी कॉल सेंटरों में दर्ज हैं तो 3 मामले मॉनिटरिंग एजेंसी के पास लंबित हैं. वहीं 13 केस यूजीसी के पास चल रहे हैं.
2015 में सबसे ज्यादा खुदकुशी
पिछले 7 सालों में रैगिंग की भयावहता पर नजर डालें तो 18 अप्रैल 2012 से लेकर 19 जुलाई 2019 के बीच रैगिंग से परेशान 54 लोगों ने खुदकुशी कर ली. इनमें से 47 मामले बंद हो चुके हैं.. खुदकुशी के लिहाज से 2015 का साल बेहद बुरा रहा क्योंकि इस साल 14 छात्रों ने खुदकुशी की. 2014 में भी खुदकुशी के 12 मामले सामने आए.
2012 में सबसे कम 1 खुदकुशी हुई जबकि इन 7 सालों में औसतन 6.75 खुदकुशी हुई. 2019 में अभी सातवां महीना चल रहा है लेकिन अब तक इस साल खुदकुशी के दो मामले आ चुके हैं. पिछले 6 सालों में 49 छात्रों ने रैगिंग से तंग आकर खुदकुशी की.
रैगिंग के खिलाफ बनाए गए एंटी रैगिंग कॉल सेंटर में दर्ज कराए गए केसों के आधार पर देखा जाए तो 11 सालों में कुल 6,187 केस दर्ज हुए. 2018 में सबसे ज्यादा केस (1,078) दर्ज हुए. 2019 में अभी नए बैच आने को है लेकिन अब तक 417 मामले दर्ज कराए जा चुके हैं.
दिल्ली में बढ़ रहीं घटनाएं
15 जून 2009 से लेकर 19 जुलाई 2019 तक दर्ज कराई गई शिकायतों के आधार पर 2009 में सबसे कम 345 शिकायतें आईं जबकि 2018 में शिकायतों की संख्या 4 अंकों यानी हजार को भी पार कर गई और कुल 1,016 शिकायतें सामने आईं. 2017 में यह संख्या 901 थी.
अगर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में रैगिंग की स्थिति पर नजर डालें तो गुजरे 10 सालों में रैगिंग के 119 मामले ही दर्ज हुए हैं जिसमें 2018 में सबसे ज्यादा 16 और 2019 में 15 मामले सामने आ चुके हैं. देशभर में रैगिंग को लेकर लगातार जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं, लेकिन 3 सालों में रैगिंग बढ़ी है. 2017 में 13, 2018 में 16 और 2019 में 15 मामले सामने आए हैं जबकि 2019 में अभी लगभग आधा साल शेष है.
उत्तर प्रदेश बेहद खराब राज्य
राज्यवार रैगिंग के स्तर को देखा जाए तो सबसे ज्यादा आबादी वाला उत्तर प्रदेश इस मामले में सबसे खराब राज्य साबित हुआ. पिछले 10 सालों में यूपी में कुल रैगिंग के 1,078 मामले दर्ज हुए. 2018 में सबसे ज्यादा 180 मामले सामने आए. पश्चिम बंगाल का नंबर इसके बाद आता है और यहां पर 10 सालों में 721 मामले दर्ज हुए, जिसमें 119 मामले 2018 में सामने आए थे.
2009-2019 के बीच सबसे ज्यादा रैगिंग के मामले
क्रम | राज्य | दर्ज मामला |
1. | उत्तर प्रदेश | 1078 |
2. | पश्चिम बंगाल | 721 |
3. | मध्य प्रदेश | 655 |
4. | ओडिशा | 473 |
5. | तमिलनाडु | 334 |
हिमाचल और जम्मू-कश्मीर सुरक्षित राज्य
केंद्र शासित और छोटे राज्यों (खासकर पूर्वोत्तर भारत) में रैगिंग के खिलाफ शिकायतों की संख्या नगण्य है, लेकिन बड़े राज्यों में हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में पिछले 10 सालों में 100 से भी कम शिकायतें रही. आतंक से त्रस्त जम्मू-कश्मीर में 10 सालों में महज 63 मामले सामने आए जबकि हिमाचल प्रदेश में 42 मामले ही दर्ज कराए गए. छत्तीसगढ़ में भी 80 मामले ही सामने आए.
जहां तक रैगिंग के मामले सामने आने के बाद उस पर एक्शन लिए जाने की बात है तो 18 अप्रैल 2012 से लेकर 19 जुलाई 2019 के बीच दर्ज कराए गए 4,761 मामलों में से 1,689 मामलों में सजा सुनाई जा चुकी है. इनमें से 686 मामले में निलंबन की सजा दी गई है तो 49 मामलों पर जुर्माना लगाया गया है.
इसके अलावा 927 केसों में सिर्फ वॉर्निंग देकर छोड़ दिया गया. 27 केसों में निष्कासन की सजा दी गई है जिसमें अकेले 2014 में सबसे ज्यादा 10 केसों में निष्कासन किया गया.
जैसे-जैसे रैगिंग को लेकर छात्रों में जागरूकता आ रही है, वैसे-वैसे इसके खिलाफ ऑनलाइन शिकायतों की संख्या बढ़ रही है. 2012 में 1.58 लाख छात्रों ने ऑनलाइन एफिडेविट फाइल की थी, जो 2017 में बढ़कर 19.02 लाख हो गया. 2017 के अंत तक 67.21 लाख शिकायतें हो चुकी थीं.
अमन मूवमेंट के तहत छात्रों और अभिभावकों में जागरूकता पैदा करने के लिए रोजाना औसतन 112961 ई-मेल छात्रों और परिजनों को भेजे जाते हैं. पिछले साल 24147575 ई-मेल भेजे गए. साथ ही अंदरुनी सर्वे में यह बात भी सामने आई कि 2013 में जहां 12 फीसदी छात्र मानते थे कि उनके कॉलेज में रैगिंग होती है उसमें 2017 में 4.45 फीसदी की कमी आई है.
अब देखना होगा कि दिल्ली विश्वविद्यालय का रैगिंग के दोषी छात्रों का एडमिशन रद्द करने का ऐलान करना कितना कारगर होता है. यह ऐसा चलन है जो भावी पीढ़ियों पर व्यापक असर छोड़ता है और उन्हें एक ऐसे मानसिक अवसाद में छोड़ देता है जहां से वापस आना संभव नहीं होता. ऐसे में रैगिंग के नुकसान की बात भी छात्रों को बतानी चाहिए.