दिल्ली की एक अदालत ने 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों के मामले में दो आरोपपत्रों पर संज्ञान लेते हुए सोमवार को पूर्व कांग्रेस सांसद सज्जन कुमार और अन्य के खिलाफ सम्मन जारी किया. अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट लोकेश कुमार शर्मा ने 62 वर्षीय इस नेता और अन्य को 17 फरवरी को अदालत में उपस्थित होने का आदेश दिया है.
मजिस्ट्रेट ने कहा कि आरोपपत्रों और गवाहों के बयानों का अध्ययन करने पर प्राथमिक दृष्टया आरोपियों के खिलाफ हत्या, दंगे और अन्य अपराधों का आरोप बनता है. हालांकि उन्होंने अपराधों की गंभीरता को देखते हुए सीबीआई और पीड़ितों के वकील की वह अपील ठुकरा दी, जिसमें आरोपी के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी करने का आग्रह किया गया था. अदालत ने कहा ‘‘सभी तथ्यों और परिस्थितियों की रोशनी में पता चलता है कि सभी आरोपी इसी इलाके के थे. किसी भी गवाह ने आपराधिक धमकी की शिकायत नहीं की.’’
अदालत ने कहा ‘‘सीबीआई की प्राथमिक चिंता आरोपी की उपस्थिति सुनिश्चित करना है. मुझे आरोपी की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए किसी प्रतिरोधी तरीके के उपयोग का कोई कारण नहीं नजर आया. इसलिए गैर जमानती वारंट का आग्रह नहीं माना गया.’’ सीबीआई ने 13 जनवरी को पूर्व कांग्रेस सांसद और अन्य के खिलाफ दो आरोपपत्र दाखिल किए थे. दो अलग-अलग मामलों में कथित तौर पर उन पर भड़काऊ भाषण देने का आरोप था जिसके चलते भीड़ ने कुल 12 लोगों की हत्या कर दी थी.
वर्ष 2005 में नानावटी आयोग की अनुशंसा पर कई मामले दर्ज किए गए थे. इसके बाद जांच एजेंसी ने इन मामलों की जांच की, फिर अदालत में यह आरोपपत्र दाखिल किए गए. जिन मामलों में आरोपपत्र दाखिल किए गए, वे सुल्तानपुरी और दिल्ली कैंट पुलिस थाने में दर्ज हुए थे, जिनके क्षेत्रों के अंतर्गत क्रमश: सात और पांच लोगों की हत्या हुई थी. सुनवाई के दौरान पीड़ित निरप्रीत कौर के वकील एचएस फुल्का ने कहा कि आरोपी के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए गए हैं और इसलिए अदालत को गैर जमानती वारंट जारी करना चाहिए.
उन्होंने कहा कि जब इस बात की आशंका है कि आरोपी सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकते हैं या गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश कर सकते हैं, तो अदालत के पास गैर जमानती वारंट जारी करने का अधिकार है. फुल्का ने अपने इस वक्तव्य को पुष्ट करने के लिए उच्च न्यायालय के दो फैसलों का भी संदर्भ दिया. फुल्का के इस दावे का सीबीआई के वकील ने भी समर्थन किया. सीबीआई के वकील ने कहा कि गैर जमानती वारंट जारी किया जाना चाहिए क्योंकि आरोप गंभीर हैं.
हालांकि सीबीआई की इस याचिका का अदालत ने यह कह कर प्रतिवाद किया कि सीबीआई जांच के दौरान आरोपियों में से किसी को गिरफ्तार क्यों नहीं कर सकी? अदालत ने कहा ‘‘अगर आरोप गंभीर हैं, तो आप किसी भी आरोपी को गिरफ्तार क्यों नहीं कर सके. आपकी चिंता सिर्फ आरोपियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने की है.’’ अदालत ने दो आरोपियों, महेंद्र यादव और ब्रह्मानंद गुप्ता को छोड़ कर सभी के खिलाफ सम्मन जारी किए क्योंकि उनके वकील उनकी ओर से नोटिस लेने के लिए मौजूद थे.