उम्र उनको पकड़ नहीं पाई, जकड़ना तो दूर. मौत को भी पीछे से आना पड़ा, बिल्ली के पांव, तब जब वह काम में व्यस्त थे. क्योंकि ख़ुदा ने भी कभी इस नाखुदा के बेटे को सुस्ताते नहीं देखा होगा. सागर वाले छोर से आसमान की ओर हमेशा सफ़र में, अनवरत, बिन थके. अवुल पकीर जैनुलआबदीन अब्दुल कलाम जिस ओहदे पर बैठे उसे अनमोल करते चले गए. भारत ने मोल चुकाने की कोशिश की, अपने रत्न को सबसे बड़ा सम्मान देकर. पर मोल नहीं चुका, क्योंकि वह उधार चढ़ाते गए, उद्धार करते गए अनगिनत आंखों की नींदे उड़ा कर उनमें सपने बो कर.
सूरज निकलने से पहले योग, साधना, वीणावादन, पौधों को पुचकारना, शास्त्रीय संगीत सुनना, बच्चों को पढ़ाना, बड़े बच्चों को पढ़ाना, देश-दुनिया का भ्रमण करना, भाषण देना, बातें करना, बातें सुनना, और इन सब से समय निकालकर दर्जनों किताबें और शोध पत्र लिख डालना. चौबीस घंटे के दिन को ऐसे तिरना जैसे उनके चेहरे पर बालसुलभ मुस्कान तिरती रही. इस वैज्ञानिक ने बहुत मिसाइल बनाए पर सबसे शक्तिशाली वह मुस्कुराहट थी, जो शत्रुओं को पल में निरस्त्र कर देती. उनके शत्रु ही बहुत कम थे. बचे ही नहीं.
पूरे दस राष्ट्रपति हुए उनसे पहले. पहले तीन तो बहुत ज़हीन थे पर बाद के सात राजनीतिक प्राणी थे. कलाम राजनीतिकार नहीं जानते थे जब राष्ट्रपति भवन में चरण धरे थे. बसे तो रायसीना हिल का सीना चौड़ा हो गया. एक साधारण सा साइंटिस्ट मध्य मांग वाली जुल्फ के कुंडल खोल मुगल गार्डन में बैठ विज्ञान और संगीत से लेकर ब्रह्मांड और ब्रह्म पर चिंतन करता था. राजनीति के घट को जब मथना पड़ा तो न्याय की मथनी नहीं छोड़ी.
वो तो राजनीति का शुभ संयोग व सौभाग्य ही था कि कलाम का नाम इस पद के लिए उभरा. दीगर उम्मीदवारों के नाम उलझते गए फसानों में. कभी भाजपा, कभी वाजपेयी तो कभी विपक्ष के धड़ों में ना-नुकुर. जब कलाम का नाम बतौर कंसेंसस कैंडीडेट आया तो भी वामपंथी माने नहीं. कैप्टन लक्ष्मी सहगल जैसे धुरंधर नाम को आगे कर दिया. सारा विपक्ष उनके साथ नहीं गया और कलाम एक बड़े अंतर से जीत गए. प्रमोद महाजन ने उन्हें पूछा कि कौन से शुभ मुहूर्त में शपथ लेना चाहेंगे. डॉ कलाम ने कहा कि जब तक सौरमण्डल में पृथ्वी अपने कक्ष में विद्यमान है और सूरज के इर्द-गिर्द अपने पथ पर गतिमान है, हर घड़ी शुभ है. इससे पहले महाजन को वह आकाशगंगा की पवित्रता का माहात्म्य बतलाते, महाजन निकल पड़े. उनके लिए हर वक्त व्यस्त था.
डॉ कलाम के लिए ज्ञान का संचार उनकी प्रकृति का हिस्सा था. वह शिक्षक थे. उनमें सीखने-सिखाने की ललक थी. राष्ट्रपति बनने के बाद जब वह विदेश दौरे पर जाते तो विमान में साथ आए पत्रकारों से विदेशी मामलों पर बतियाते पर तभी अगर विमान डोलने लगे तो बात को टर्बुलेंस पर ले आते और फिर उसके वैज्ञानिक कारणों के बारे में समझाते. जो उन्होंने शोध और सघन लगन से सीखा था, वह बांटे बिना रह नहीं पाते.
वह वैज्ञानिक पहले थे, राष्ट्रपति या और सब बाद में. वैज्ञानिक प्रश्न पूछते हैं, जितना दिखता है उसके आगे देखना चाहते हैं. दूर उफ़क के पार क्या है, जानना चाहते हैं. पिता नाविक थे और परिवार बमुश्किल रोटियां जुटा पाता था. पर नन्हें कलाम के सपनों को आकार देने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई. भौतिकी से ग्रेजुएट होकर इंजीनिअरिंग की. फाइटर पायलट बनने का सपना हाथ अाते आते रह गया, पर नज़र आसमान पर गड़ाए रखा. इसरो के पीएसएलवी प्रोजेक्ट से आसमान से आगे निकल गए और भारत को स्पेस की दुनिया में नेतृत्व की जगह दिलवा दी. डीआरडीओ से जिंदगी भर जुड़े रहे तो देश को एक के बाद एक मिसाइलों की ऐसी शृंखला दी कि लोगों ने इनको मिसाइल मैन का नाम दे दिया. फिर परमाणु क्षेत्र में हाथ लगाया तो देश को बमों का ब्रह्मास्त्र दे दिया. हृदयरोग के डॉक्टर सोम राजू के साथ काम कर के एक बेहद उपयोगी और सस्ता कोरोनरी स्टेंट बनाया जिसे हम कलाम-राजू स्टेंट के नाम से जानते हैं.
राष्ट्रपति भवन छोड़ कर पूर्व राष्ट्रपति राष्ट्र के द्वारा दिए गए आरामगाह से गाहे ही निकलते हैं. कलाम ने तो कहा कहीं एक कमरे का सेट दे दो, क्योंकि आराम किसे करना है. वह तो कभी यहां, कभी वहां, पढ़ाते, बतियाते, सीखते, सिखाते एक यायावर की जिंदगी जी रहे थे. शिलांग का आईआईएम उन कई संस्थानों में एक था जहां वह नियमित पढ़ाते थे. इस सोमवार भी एक बच्चे सा उत्साह लिए आए. बच्चों के बीच. लेक्चर के बीच में ही हृदयाघात. एक अरब दिलों पर पक्षाघात. एक लासानी सफर का अंत. एक यात्रा का पूर्ण विराम जिसकी ऊंचाइयां विरले ही छूते हैं, जिसकी गहराइयों का अंदाज़ा सबको नहीं.