सेना में डिसेबिलिटी पेंशन पाने वाले अधिकारियों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. पिछले दो साल में ब्रिगेडियर और मेजर जनरल समेत अन्य रैंक के दो हजार से ज्यादा सैन्य अधिकारियों को डिसेबिलिटी पेंशन बांटी गई. सैन्य अधिकारियों के बीच डिसेबिलिटी पेंशन का ट्रेंड उस समय बढ़ रहा है, जब सेना इसमें कमी करने की कोशिश कर रही है.
साल 2018 में 52 ब्रिगेडियर और इससे ऊंची रैंक के अधिकारियों के साथ कर्नल रैंक से नीचे के 977 अधिकारियों को डिसेबिलिटी पेंशन का लाभ मिला.
इससे पहले साल 2017 में 35 ब्रिगेडियर और इससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों के साथ 960 जूनियर अधिकारियों को डिसेबिलिटी पेंशन का लाभ मिला. आपको बता दें कि जिन अधिकारियों को डिसेबिलिटी पेंशन मिलती है, उनको अपने समकक्ष रिटायर अधिकारियों से ज्यादा मुआवजा मिलता है.
काउंटर इंसर्जेंसी फोर्स के सीनियर अधिकारी भी मामूली बीमारी होने पर डिसेबिलिटी पेंशन की मांग करते हैं और बढ़ी हुई पेंशन पाते हैं. फिलहाल सरकार डिसेबिलिटी पेंशन पर टैक्स नहीं लगाती है. हालांकि अब सरकार ने टैक्स लगाने का फैसला किया है, जिसका वरिष्ठ सैन्य अधिकारी कड़ा विरोध कर रहे हैं.
इस संबंध में मंगलवार को आर्मी हेडक्वार्टर्स ने कहा कि सैन्य अधिकारियों को जो डिसेबिलिटी पेंशन दी जा रहे है, उसको इनकम टैक्स के दायरे से बाहर रखा गया, जिसके चलते सैन्य अधिकारियों में डिसेबिलिटी पेंशन लेने का ट्रेंड तेजी से बढ़ा है. यहां तक कि सैन्य अधिकारी लाइफ स्टाइल की वजह से होने वाली बीमारियां पर भी डिसेबिलिटी पेंशन की मांग कर रहे हैं.
सेना कहा कि जब राष्ट्र की सुरक्षा की चुनौतियां बढ़ रही हैं, उस समय सैन्य अधिकारियों के बीच डिसेबिलिटी पेंशन की मांग तेजी से बढ़ना बेहद चिंताजनक है. सूत्रों के मुताबिक सैन्य ऑपरेशन के दौरान जख्मी होने वाले अपने अधिकारियों और जवान का सेना सम्मान करती है. ऐसे लोगों को जितना आर्थिक फायदा मिल रहा है, उससे भी ज्यादा उनको मिलना चाहिए.
सेना ने कहा कि अगर इस ट्रेंड को अभी रोका नहीं गया, तो यह चिंताजनक हो जाएगा. इसकी वजह यह है कि सेना में डिसेबल अधिकारियों और जवानों की संख्या इतनी नहीं है, जितने लोग डिसेबिलिटी पेंशन का दावा कर रहे हैं.