जब सी. राजशेखरन प्रधानाचार्य कार्यालय से बाहर निकले तो उनके चेहरे पर मुस्कान थी. वे श्रीलंकाई शरणार्थी हैं और तीन माह पहले ही चेन्नै पहुंचे हैं, बिलकुल खाली हाथ. न तो उनके पास कोई कागजात ही हैं और न ही धन-संपत्ति ही. वे उन छात्रों में से हैं जिन्हें इस साल चेन्नै के प्रतिष्ठित लोयोला कॉलेज में दाखिला मिल गया है. 85 साल पुराने संस्थान के सौ एकड़ में फैले परिसर में जहां पेड़ों की कतारें हैं और माहौल बहुत ही शांत है, वहीं अपनी तमाम खासियतों के साथ यह संस्थान शिक्षा के क्षेत्र में एक विशेष स्थान रखता है क्योंकि लोयोला अपनी उपलब्धियों को सामान्य तरीके से लेता है.
लगातार तीसरी बार लोयोला कॉलेज शीर्ष पर
इंडिया-टुडे नीलसन आला कॉलेज सर्वेक्षण में कला में लगातार तीसरी बार लोयोला कॉलेज शीर्ष पर रहा है, शीर्ष पर रहने का क्रम न सिर्फ स्थानीय बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी है, और उसकी इसी बात ने शिक्षा के संसार में किए जाने वाले नीतिगत फैसलों के लिए अक्सर प्रेरणा का काम भी किया है. सूची में शीर्ष स्थानों पर कुछ हलचल जरूर दिखती है, दिल्ली का लेडी श्रीराम कॉलेज फॉर वुमन तरक्की करते हुए दूसरे स्थान पर आ गया है, तो दिल्ली का ही सेंट स्टीफेंस कॉलेज इस बार फिर तीसरे स्थान पर है. हालांकि 10 आला कॉलेजों की सूची में मामूली उलटफेर है, दिल्ली का मिरांडा हाउस कॉलेज जबरदस्त छलांग लगाते हुए 11वें स्थान पर आ गया है.
कला की पढ़ाई पूरी करने वाले एक तिहाई छात्र बनते हैं उद्यमी
मानविकी के विषयों को लेकर शीर्ष कॉलेज लोयोला का अंतरविषयक नजरिया ही उसके पाठ्यक्रम को विशिष्ट और प्रासंगिक बनाता है. लोयोला कॉलेज के प्रधानाचार्य रेव. डॉ. ए. अलबर्ट मुत्तुमलै कहते हैं, ''आजादी के महत्व पर हमारा काफी जोर रहता है. छात्रों को शैक्षिक नजरिए के साथ ही बांध कर नहीं रखा जा सकता. असंभव को संभव करने में उनकी मदद करने के लिए हमें उन्हें उन्मुक्त छोड़ना होगा.'' वे अनुमान लगाते हुए बताते हैं कि लोयोला से कला और मानविकी की पढ़ाई पूरी करने वाले एक तिहाई छात्र उद्यमी बनते हैं, जबकि एक तिहाई उच्च अध्ययन और शोध की राह चुनते हैं और बाकी अच्छा-खासा रोजगार पाने में सफल रहते हैं.
गरीबों और जरूरतमंदों पर ध्यान
हमेशा से अग्रणी रहे लोयोला ने पिछले दशक में शिक्षा को लेकर अपने नजरिए में बदलाव किया था. कभी उच्च वर्ग के छात्रों का कॉलेज माने जाने वाला लोयोला आज गरीबों और जरूरतमंदों पर ध्यान केंद्रित करके गर्व की अनुभूति से ओतप्रोत है. श्रीलंकाई और तिब्बती शरणार्थियों को दाखिले देने के अलावा, कॉलेज पहली पीढ़ी के छात्रों को भी मुख्यधारा में लाने के प्रयास कर रहा है. मुत्तुमलै कहते हैं, ''हमारे पास बेहतरीन फैकल्टी सदस्य हैं और हम उनका इस्तेमाल यह व्यवस्था करने के लिए करते हैं कि कॉलेज के पहले साल छात्रों में उनकी पिछली शिक्षा और उपलब्धियों को लेकर जो अंतराल है, उसे कम किया जा सके.''
प्लेसमेंट सेल काफी सक्रिय
कहा जा जाता है कि सफलता की कुंजी लगातार स्वयं की खोज में निहित है. मुत्तुमलै कहते हैं, ''हम अपने पाठ्यक्रम और संचालन संबंधी नीतियों, दोनों को पुनर्गठित करने के तीसरे चरण में हैं.'' भला हो इस पुनर्गठन का, क्योंकि लोयोला द्वारा शुरू किए गए चयन आधारित क्रेडिट सिस्टम को तमिलनाडु सरकार ने राज्य के सभी संस्थानों में लागू किया. दूसरा है शिफ्ट सिस्टम. अपनी पढ़ाई को पूरा करने के लिए पार्ट-टाइम काम करने वाला एक छात्र कहता है, ''मेरे कॉलेज जाने का समय सुबह साढ़े आठ से दोपहर डेढ़ बजे तक है. इससे मैं जो भी करना चाहता हूं उसके लिए पर्याप्त समय मिल जाता है.'' प्रधानाचार्य कहते हैं, ''ऐसे छात्रों की जरूरतों को लेकर हमारा प्लेसमेंट सेल काफी सक्रिय है; शिफ्ट सिस्टम से इस बात की व्यवस्था होती है कि वे शोध के साथ-साथ अन्य अतिरिक्त गतिविधियों के लिए भी समय निकाल सकें.''
दोस्ताना व्यवहार को बढ़ावा के लिए उत्सव
शैक्षिक सत्र की शुरुआत में कॉलेज के विभिन्न विभाग एक उत्सव का आयोजन करते हैं, जिसका उद्देश्य छात्रों के बीच दोस्ताना व्यवहार को बढ़ावा देना रहता है. सुरिया और विजय समेत तमिल सिनेमा के कई बड़े नाम लोयोला कॉलेज के पूर्व छात्र रह चुके हैं. लोयोला कॉलेज की हाल की उपलब्धि अंतर-विभागीय शोध आधारित प्रोजेक्ट है. पुलिकट मत्स्य झील पर पुल निर्माण की परियोजना को लेकर फैकल्टी और इतिहास, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र और प्राणी विज्ञान विभाग के छात्र मिल कर काम कर रहे हैं. परियोजना को नीदरलैंड की एजेंसी कॉर्डएड से आर्थिक सहायता मिल रही है.
शोध के क्षेत्र में सक्रियता
कला में मानव संसाधन प्रबंधन, मेडिकल और मनोरोग समाज सेवा और मानवाधिकार तथा अन्य विषय शामिल हैं. जरूरतमंदों तक पहुंच से संबंधित कार्यक्रम सभी के लिए है और पास ही की झोंपड़पट्टी में बच्चों को शिक्षित करने के काम को उतना ही महत्वपूर्ण माना जाता है जितना कि कॉलेज में अंग्रेजी में भारतीय लेखन के विकास पर सेमिनार आयोजित कराया जाना. यूजीसी और अन्य संगठनों से मिलने वाले अनुदानों से कला (जिसकी अक्सर शोध संस्थान अनदेखी करते हैं) के छात्रों को अपने विज्ञान के साथियों जितनी ही शोध के क्षेत्र में सक्रियता बनाने में मदद करती है.{mospagebreak}दूसरे स्थान पर रहा एलएसआर अपनी शिक्षण शैली में नित नया प्रयोग करने और जांच के लिए प्रतिबद्ध है. प्रधानाचार्य मीनाक्षी गोपीनाथ कहती हैं, ''हम सिलेबस का सहारा बहुत कम लेते हैं और छात्रों को पाठ्यपुस्तकों से इतर देखने के लिए प्रोत्साहित करते हैं-यह कुछ महत्वपूर्ण साहित्य को खंगालने या फिर मानविकी में ताजा बहस भी हो सकती है.'' कॉलेज का खास गुण शोध पर विशेष जोर देना है. इस साल से प्रत्येक छात्र को रिसर्च मेथोडोलॉजी पर एक मॉड्यूल देना होगा जोकि उन्हें संबंधित क्षेत्र में समकालीन संवाद या विमर्श से रू-ब-रू करा सकेगा. फैकल्टी का प्रयास ऐसे वैश्विक नागरिक तैयार करना रहता है जोकि भारतीय परंपरा के सकारात्मक पहलुओं को अंगीकार करने में गर्व महसूस करें.
नये कोर्स की शुरूआत
इसी पहलु को और अधिक बढ़ावा देने के लिए कॉलेज इंडियन हेरिटेज (भारतीय विरासत) और आर्कियोलॉजी (पुरातत्व) सरीखे विषयों में सर्टिफिकेट कोर्स शुरू करने जा रहा है. इस साल शुरू होने वाला एक अन्य कार्यक्रम कन्फ्लिक्ट ट्रांसफॉर्मेशन ऐंड पीस-मेकिंग में डिप्लोमा कोर्स है. कॉलेज का पूरा जोर समता और पहुंच पर है. कमजोर तबके से आने वाली छात्राओं को भी नेतृत्व के गुण विकसित करने के समान मौके दिए जाते हैं. गोपीनाथ बताती हैं, ''हमारे प्लेसमेंट सेल का इस साल का एजेंडा न सिर्फ टॉपर्स के लिए रोजगार मुहैया कराना था बल्कि बहुत अच्छा न कर पाने वाले छात्रों को भी अवसर दिलाने का था.'' गौर करने लायक बात है कि कई कॉलेजों में राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) काम नहीं करती है लेकिन यहां यह अब भी चल रही है और लगभग 800 छात्राओं को इसके तहत सुपरिभाषित प्रोजेक्ट करने को दिए जाते हैं.
जरूरतमंद छात्रों को रिकॉर्ड संख्या में वजीफा
तीसरे स्थान पर रहा सेंट स्टीफेंस कॉलेज भी ऐसे छात्र तैयार कर रहा है जो विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा के जौहर दिखा रहे हैं. ऐसे छात्रों की अच्छी-खासी संख्या है जिनका चयन प्रत्येक वर्ष प्रतिष्ठित विदेशी छात्रवृत्तियों के लिए होता है. कॉलेज की नई पहल कमजोर पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए स्तरीय शिक्षा सुनिश्चित कराना है. सेंट स्टीफेंस कॉलेज की डीन नंदिता नारायण कहती हैं, ''इस साल हमने जरूरतमंद छात्रों को रिकॉर्ड संख्या में वजीफा दिया है.'' यह शिक्षा को लेकर मजबूत सोच का ही नतीजा है जिसके चलते कॉलेज देश की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाएं तैयार कर रहे हैं. अन्य कॉलेज भी कला के शीर्ष कॉलेजों से सबक ले सकते हैं.
-साथ में दीक्षा मधोक