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दिल्ली में बीजेपी का वो कुशल मैनेजर, जिसकी आंखों से मोदी ने राजधानी को समझा

अरुण जेटली और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दोस्ती किसी से छिपी नहीं है. 1990 के दशक में बीजेपी अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी की राष्ट्रीय एकता यात्रा के दौरान दोनों संपर्क में आए थे.

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फाइल फोटो
फाइल फोटो

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  • 1998 में मोदी पार्टी महासचिव बने, अगले साल जेटली को प्रवक्ता बनाया गया
  • मोदी को 2014 में पीएम पद का उम्मीदवार बनाने में जेटली का बड़ा रोल था

पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली शनिवार को दुनिया को अलविदा कह गए. अरुण जेटली और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दोस्ती किसी से छिपी नहीं है. 1990 के दशक में बीजेपी अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी की निकाली गई राष्ट्रीय एकता यात्रा के दौरान दोनों संपर्क में आए थे. ये पॉलिटिकल कनेक्शन धीरे-धीरे गहरी दोस्ती में बदल गया. उस दौर में जेटली लुटियंस दिल्ली में अपनी पैठ मजबूत कर चुके थे. पार्टी के साथ-साथ मोदी के लिए जेटली दिल्ली में कुशल मैनेजर की भूमिका में थे और उन्हीं की बदौलत मोदी ने राजधानी को भी समझा.

आडवाणी को साधने में भी सफल रहे

1995 में जब गुजरात में बीजेपी सरकार सत्ता में आई तो मोदी को दिल्ली में काम करने के लिए भेजा गया था. ऐसा कहा जाता है कि तत्कालीन सीएम केशुभाई पटेल को डर था कि मोदी गुजरात में रहकर उनके लिए मुश्किल पैदा कर रहे हैं. उन्होंने केंद्रीय नेताओं से बात की और मोदी को गुजरात से दिल्ली भेज दिया गया. इस दौरान जेटली ने मोदी का पूरा ख्याल रखा, लेकिन और किसी पार्टी नेता ने मोदी को तरजीह नहीं दी. पार्टी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने मोदी और जेटली के कामों के सराहना जरूर की थी, लेकिन उनके चहेते प्रमोद महाजन ही रहे, जो कई नेताओं को पसंद नहीं थे. हालांकि प्रमोद महाजन की हत्या के बाद जेटली आडवाणी को भी साधने में सफल रहे. इसके बाद जेटली, मोदी और वैंकैया नायडू का खेमा उभरकर सामने आया, जिसमें बाद में अनंत कुमार भी शामिल हो गए थे. इस खेमे की कमान मोदी 2005 से संभाले हुए हैं. दुर्भाग्य से अनंत कुमार और जेटली इस दुनिया में नहीं रहे. वहीं वैंकैया नायडू उप राष्ट्रपति बन चुके हैं.   

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गुजरात-दिल्ली एक साथ किया मैनेज

1998 में नरेंद्र मोदी को पार्टी महासचिव और अगले साल जेटली को पार्टी को प्रवक्ता बनाया गया. इसी साल गुजरात से राज्यसभा सदस्य चुने जाने के बाद जेटली वाजपेयी सरकार में सूचना एंव प्रसारण मंत्री बन गए. दो साल बाद नरेंद्र मोदी गुजरात की सत्ता पर काबिज हुए. मोदी ने 2002 में हुए गुजरात दंगों के बाद आठ महीने पहले ही विधानसभा भंग करने का एलान किया और जेटली को वहां का प्रभारी बना दिया गया. इस जिम्मेदारी के साथ-साथ जेटली दिल्ली भी मैनेज कर रहे थे. इस दौरान मोदी पर विपक्ष के साथ-साथ पार्टी के कुछ नेता भी हमलावर थे, लेकिन इस संकट की घड़ी में जेटली ने मोदी का पूरा साथ दिया.

2004 में घटने लगा कद, प्रवक्ता का पद भी गया

वहीं, 2004 के आम चुनाव में हार के बाद पार्टी में अंदरूनी घमासान शुरू हो गया था तब जेटली का कद घटने लगा था. इस बीच संघ ने राजनाथ सिंह को बीजेपी अध्यक्ष पद के लिए सपोर्ट कर दिया. हालांकि राजनाथ सिंह के लिए ये दौर बहुत मुश्किल भरा रहा. हर तरफ पार्टी को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा रहा था. फरवरी 2007 में राजनाथ सिंह ने जेटली को पार्टी प्रवक्ता के पद से हटा दिया था, लेकिन 2008 में कर्नाटक में कमल खिलाकर जेटली ने फिर से सबको खुश कर दिया. हालांकि 2009 आम चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद जेटली फिर पार्टी के निशाने पर आ गए थे.

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2014 में जेटली ने कई बड़े दिग्ग्जों को एक किया

मोदी को 2014 में भाजपा के पीएम पद का उम्मीदवार बनाए जाने की औपचारिक घोषणा से पहले जेटली का बड़ा रोल था. जेटली ने राजनाथ सिंह, शिवराज सिंह चौहान और नितिन गडकरी को साथ लाने अहम भूमिका निभाई थी. वहीं, मोदी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अरुण शौरी और सुब्रमण्यम स्वामी के आगे जेटली को तरजीह देते हुए वित्त मंत्रालय का जिम्मा सौंपा था. स्वास्थ्य कारणों से जेटली 2019 में सक्रिय राजनीति से किनारे हो गए थे, लेकिन मोदी सरकार के बचाव में वह सोशल मीडिया के जरिए अपनी बात रखते रहे.

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