जाने-माने लेखक और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में देश की तरक्की के मसले पर अपने विचार साझा किए. वह 'सरकार को व्यापार क्यों नहीं करना चाहिए' विषय पर बोल रहे थे. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे शौरी ने मनमोहन सिंह सरकार पर भी खूब प्रहार किए.
अरुण शौरी ने कहा कि व्यापार में राज्य की भूमिका कम करने में ही समाधान छिपा है. केंद्र सरकार की आर्थिक नीति पर तंज करते हुए उन्होंने कहा, 'मनमोहन सिंह कहते हैं कि वह 91 के सुधारों के जनक बने, लेकिन उसके बाद क्या हुआ. अब वह वर्ल्ड इकॉनमी को दोषी ठहरा रहे हैं. वह साहस नहीं दिखला रहे हैं.'
शौरी ने कहा कि 91 से पहले और बाद के दौर में एक 'सेक्युलर' फर्क है. उन्होंने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में 13 और अर्थव्यवस्था की 36 नियामक संस्थाएं देश में हैं. लेकिन उनका काम करने का तरीका और उन पर कब्जा जमाए बैठे लोग ठीक नहीं हैं. शौरी ने आरोप लगाया कि मेडिकल, नर्सिंग और एजुकेशन काउंसिल के चेयरमैन वगैरह जड़ों तक भ्रष्टाचार में लिप्त हैं. उन्होंने यह भी कहा 2जी और कोयला घोटाले पर सभी पार्टियों चुप रहीं और मीडिया ही एकमात्र संस्था थी जिसने इन घोटालों का खुलासा किया.
अरुण शौरी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पीवी नरसिम्हा राव की तारीफ की. उन्होंने कहा, 'यूपीए कभी भी देश के लिए 'सपनों की सरकार' नहीं थी लेकिन हालात ऐसे थे कि वे सत्ता में आ गए. सिर्फ कामयाबियों का श्रेय लेने और अपनी असफलता दूसरों पर थोपने में ही इसकी योग्यता नजर आती है.'
उन्होंने उम्मीद जताई कि हमारा देश जरूर कामयाब होगा और हम सफलता के अग्रदूत बनेंगे. उन्होंने कहा कि आज हम जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं, वे सामूहिक कम और व्यक्तिगत ज्यादा हैं. यह अपने आप में एक समस्या है. उन्होंने कहा कि जब तक हम समस्याओं का एक साथ नहीं महसूस करेंगे, तब तक उनका हल नहीं खोज सकेंगे. शौरी ने कहा कि हमारी सरकार के पास कोई ठोस योजना नहीं है, इसी वजह से हम पिछड़ रहे हैं.
शौरी के सेशन के बाद कॉन्क्लेव में मौजूद लोगों ने इस मुद्दे पर वोट किया. बहुमत इसी पक्ष में था कि सरकार को व्यापार में हाथ नहीं डालना चाहिए.
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