42 साल तक कोमा में रहने के बाद 18 मई 2015 को अरुणा शानबाग ने मुंबई के केईएम हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली थी. उनकी मौत के साथ ही उनके साथ दुराचार करने वाले सोहन लाल वाल्मिकी की खबरें भी मीडिया में आईं. कुछ ने सोहन लाल को मरा बताया तो कुछ ने भगोड़ा और कुछ ने तो AIDS का मरीज तक बता डाला. हालांकि अब सच्चाई सामने आ गई है. सोहन लाल दिल्ली से सटे हापुड़ में अपने बीवी-बच्चों के साथ रहते हैं.
27 नवंबर 1973 को केईएम हॉस्पिटल में हुई घटना को सोहन लाल एक 'हादसा' मानते हैं . अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक अरुणा शानबाग मामले में सजा पाए सोहन लाल को उस घटना का पछतावा है. वह कहते हैं, 'मुझे बहुत पछतावा है. मैं 'अरुणा दीदीजी' और अपने भगवान से माफी मांगना चाहता हूं.'
सोहन लाल ने कहा, 'मैंने मांसाहार छोड़ दिया, बीड़ी और शराब को भी त्याग दिया. मेरे जेल जाने से पहले मेरी एक बेटी थी, मेरे जेल प्रवास के दौरान उसकी मौत हो गई. वह मर गई, क्योंकि मैंने गुनाह किया था. जेल से आने के कई वर्ष तक मैंने अपनी पत्नी को छूआ भी नहीं. 14 साल बाद मेरा बेटा पैदा हुआ.'
उन्होंने बताया, 'मैंने 'अरुणा दीदीजी' के साथ रेप नहीं किया. पुलिस मुझे मार-मार कर रेप के लिए कबूल करवा रही थी. उस रात हम दोनों में हाथापाई हुई थी. 'अरुणा दीदीजी' मुझसे किसी बात को लेकर हमेशा नाराज रहती थीं. मैं कुत्तों से डरता था, फिर भी वो मुझे हमेशा कुत्तों को खाना खिलाने को बोलती थी. 'हादसे' वाली रात छुट्टी को लेकर मेरी उनसे हाथापाई हुई थी.'
सोहन लाल के बेटे भी अपने पिता से नफरत करते हैं. छोटे बेटे रविंद्र को उनकी मां समझाती हैं कि अखबार की बातों का भरोसा मत करो. वो बढ़ा-चढ़ा कर लिखते हैं. फिर भी वह अपने पिता से नफरत करते हैं क्योंकि उन्हें पढ़ाया नहीं गया. कभी स्कूल नहीं भेजा गया. एक पिता का फर्ज नहीं निभाने के लिए वह सोहन लाल से नफरत करते हैं.
आपको बता दें कि 27 नवंबर 1973 को केईएम हॉस्पिटल के वार्ड ब्वॉय सोहन लाल वाल्मिकी ने वहीं की जूनियर नर्स अरुणा शानबाग के साथ दुराचार किया था. 42 साल तक कोमा में रहने के बाद इसी हॉस्पिटल में 18 मई 2015 को अरुणा शानबाग ने अंतिम सांस ली थी.