शेर की सवारी मजेदार होती होगी, जब तक शेर नीचे रहता हो. अगर मामला आमने-सामने का हो यानी जब शेर और सवार दोनों हकीकत का सामना कर रहे हों, तो फिर मामला उतना रोमांटिक नहीं होगा. आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल को इस बात का शायद इस समय एहसास हो रहा होगा.
हालांकि सुप्रीमो कहा जाना केजरीवाल को पसंद नहीं होगा, लेकिन आप पार्टी के घोषणापत्र के पहले पन्ने पर जिस तरह उनकी और सिर्फ उनकी तस्वीर लगी है, उसके बाद यह कहने का कोई अर्थ नहीं रह जाता कि आप पार्टी व्यक्तिवादी नहीं है. कम से कम इस मामले में आप ने कोई अलग राजनीतिक संस्कृति की शुरुआत नहीं की है.
आप पार्टी निस्संदेह उम्मीदों की पार्टी है. लेकिन यह बेशुमार और लगभग असंभव नजर आ रहे वादों की पार्टी भी है. आप के चुनावी घोषणा–पत्र में वादों की ऐसी बारात सजाई गई है कि अब आप के नेता शायद उस कागज को देखना भी पसंद न करें. वे व्यापारियों को खुश भी करना चाहते हैं और महंगाई भी घटाना चाहते हैं. उनके कुछ वादों को देखें, तो अंदाजा लग जाएगा कि हर हाथ में बताशा रखने की कैसी कवायद केजरीवाल ने की है. उनके सैकड़ों वादों में से कुछ को देखें:
1. चार महीने में बिजली का रेट आधा किया जाएगा.
2. दिल्ली सरकार की नौकरियों में एससी, एसटी, ओबीसी रिजर्वेशन को सही तरह से लागू करना. सभी बैकलॉग भरे जाएंगे.
3. सफाई कर्मचारियों, ड्राइवरों, टीचर्स समेत तमाम कॉन्ट्रेक्ट कर्मचारियों की नौकरियां पर्मानेंट करना
4. दलित उद्यमियों को सस्ते और जीरो इंटरेस्ट पर लोन देना
5. पानी के सभी नाजायज बिल माफ करना (नाजायज क्या है यह नहीं बताया गया है).
6. 700 लीटर तक पानी खर्च करने वालों परिवारों का बिल माफ करना
7. दिल्ली में दो लाख पब्लिक टायलेट बनाना.
8. अस्पतालों में डॉक्टरों के सारे खाली पदों (40 प्रतिशत) पर भर्ती, नर्सिंग स्टाफ के खाली पोस्ट भी भरना
9. कम से कम 500 नए स्कूल खोलना
10. मुसलमानों के खिलाफ गलत तरीके से मुकदमा करने वालों को सजा देना
11. प्राइवेट स्कूलों में फीस पर नियंत्रण, डोनेशन पर रोक.
12. सरकारी स्कूलों का स्टैंडर्ड प्राइवेट स्कूलों के समान करना.
13. सीमा पर या आतंकवाद से लड़ते हुए शहीद होने वालों के परिवारों को 1 करोड़ रुपए देना
14. इतनी बड़ी संख्या में कोर्ट खोलना कि हर केस 6 माह में निपट जाए
15. सारी अनधिकृत कॉलोनियों को रेगुलराइज करना. नियमित कॉलोनियों को मिलने वाली सारी सुविधाएं दिलाना.
16. झुग्गीवासियों को पक्के मकान और प्लॉट देना और ऐसा होने तक उन्हें न उजाड़ना
अब केजरीवाल जब कांग्रेस और बीजेपी को समर्थन के लिए पत्र लिख रहे हैं, तो जाहिर है कि कई बड़े मुद्दे गायब हैं. स्वराज जैसे अमूर्त वादे का पूरा होना न तो नापा जा सकता है, न उसके पूरा न होने की शिकायत की जा सकती है. जबकि दिल्ली का एक अस्थाई सफाई कर्मचारी पूछ सकता है- आपके वादे का क्या हुआ महाराज? कब करोगे पर्मानेंट? और अब तो चार महीने हो गए. कब करोगे बिजली का रेट आधा?
केजरीवाल ने शायद अपने सभी मतदाताओं को ढंग से नहीं बताया है कि आरक्षित सीटों के जिस बैकलॉग को भरने की बात वे कर रहे हैं, उसे लागू किया गया तो कई साल तक हो सकता है कि दिल्ली सरकार में जनरल कटेगरी की कोई वेकेंसी ही न निकले.
यह समझ पाना भी मुश्किल है कि जो मतदाता केजरीवाल को सीएम और नरेंद्र मोदी को पीएम देखना चाहता है, क्या उसे इस बात का अंदाजा है कि केजरीवाल ने अपने घोषणापत्र में मुसलमानों को लेकर क्या वादे किए हैं. केजरीवाल एक फिसलन भरी जमीन पर खड़े हैं, जहां उनकी असली चुनौती दौड़ने या चलने की नहीं, सीधे खड़े होने की है.