बाढ़ और बारिश से जबरदस्त तबाही झेलने वाले केदारनाथ मंदिर को अब घी से बड़ा खतरा है. यह घी हजारों भक्तों की ओर से यहां चढ़ाया और दीवारों पर मला जाता है.
एएसआई के वैज्ञानिकों की एक टीम ने यह पता लगाया है कि मंदिर की दीवारों पर घी की एक-डेढ़ इंच मोटी परत चढ़ गई है. इससे वहां कीड़े लग गए हैं. घी की इस परत से पत्थर अपने प्राकृतिक तरीके से सांस नहीं ले पाते. पत्थरों में नमी आ जाती है जिससे समय से पहले ही उनका क्षरण होने लगा है. एएसआई की इसी टीम को केदारनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार का काम सौंपा गया है.
इस चार सदस्यीय टीम ने 12 अक्टूबर को केदारनाथ मंदिर की सफाई का काम शुरू किया लेकिन वे सिर्फ दो हफ्ते ही काम कर पाए और मंदिर के कपाट सर्दियों की वजह से बंद हो गए.
घी की परत से चूरे में बदल रहा है पत्थर
केदारनाथ मंदिर समुद्र तल से 3,500 मीटर ऊंचाई पर गढ़वाल की मंदाकिनी घाटी में स्थित है. शिवलिंग का दर्शन करने वाले श्रद्धालु अपने साथ घी लेकर आते हैं और अपने हाथों से उस पर मलते हैं. उसके बाद वे हाथ साफ करने के लिए उसे वहां की दीवारों पर भी हाथ रगड़ते हैं. सैकड़ों वर्षों से यह प्रथा चली आ रही है. एएसआई की वैज्ञानिक टीम ने पाया कि घी की इस परत से मंदिर की दीवारों पर बनी कई कलाकृतियां नष्ट हो गई हैं. घी की रासायनिक प्रतिक्रिया से पत्थर का ऊपरी हिस्सा चूरे में बदलता जा रहा है.
गर्म करके हटाना पड़ा घी
एएसआई के डायरेक्टर के एस राणा ने बताया कि अब तक हमें ऐसी किसी समस्या से पाला नहीं पड़ा था, जैसा केदारनाथ में पड़ा. ठंड के कारण घी वहां जम जाता है जिसे हमें ब्लोअर से गर्म करके हटाना पड़ा. इसके बाद हमने वहां रासायनिक ट्रीटमेंट किया और फिर मुल्तानी मिट्टी रगड़कर दीवारों से नमी हटानी पड़ी.
15 मई के बाद शुरू होगा जीर्णोद्धार का अगला चरण
एएसआई मंदिर की दीवारों से 13 से 15 प्रतिशत तक घी ही हटा पाया है. सिर्फ अखंड ज्योत क्षेत्र से ही दो बाल्टी घी निकला. अभी वहां बहुत काम बाकी है और अब अगले चरण का काम 15 मई के बाद ही हो सकेगा जब मंदिर के कपाट खुलेंगे. टीम को उम्मीद है कि उन दिनों अधिक तापमान के कारण घी हटाने के काम में तेजी आएगी. एएसआई इसके अलावा जली हुई अगरबत्तियों और उनकी राख को भी हटाने का काम करेगा.
केदारनाथ मंदिर की देखभाल का काम राज्य सरकार की बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति करती है. समिति के पब्लिक रिलेशंस ऑफिसर एन पी जमोकी ने कहा कि दीवारों पर घी रगड़ने की प्रथा का कोई धार्मिक औचित्य नहीं है.