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अब असम में नागरिकता का विवाद, 'बाहरी' बनाम लोकल का मुद्दा गरमाया

असम में एनआरसी का मुद्दा अभी नरम भी नहीं पड़ा कि नागरिकता विधेयक 2016 का विवाद सामने है. इसमें 1971 से पहले असम आने वालों को ही नागरिकता देने का प्रावधान है जिसका स्थानीय संगठन काफी विरोध कर रहे हैं. मंगलवार को 44 संगठनों ने राज्यव्यापी बंद बुलाया है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर (रॉयटर्स)
प्रतीकात्मक तस्वीर (रॉयटर्स)

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असम में बाहरी राज्यों से आए लोगों और वहां के स्थानीय निवासियों के बीच तल्खी बढ़ती जा रही है. इससे जुड़े नागरिकता विधेयक 2016 के खिलाफ मंगलवार को प्रदेश के 44 संगठनों ने राज्यव्यापी बंद का आह्वान किया है. नागरिकता कानून के अलावा उस समझौते के खिलाफ भी प्रदर्शन होगा जिसे बंगाली हिंदुओं ने आयोजित किया.

23 अक्टूबर को आयोजित इस बंद को प्रदेश के 44 स्थानीय संगठनों का समर्थन प्राप्त है. सभी संगठन कृषक संग्राम समिति (केएमएसएस) और असोम जातियताबादी युबा छात्र परिषद (एजेवाईसीपी) के बैनर तले मंगलवार को सड़कों पर उतरेंगे. केएमएसएस नेता अखिल गोगोई ने कहा कि ऐसा पहली बार हो रहा है जब राज्यव्यापी बंद के समर्थन में इतने संगठन प्रदर्शन करने जा रहे हैं. गोगोई ने कहा कि यह बंद इसलिए बुलाया गया है क्योंकि बीजेपी समर्थित केंद्र सरकार ने नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 पारित किया है जिससे असम के स्थानीय लोगों के पहचान का खतरा पैदा हो गया है.

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शिलौंग टाइम्स के मुताबिक, केएमएसएस नेता गोगोई ने मांग उठाई है कि प्रदेश सरकार को 17 नवंबर को आयोजित बंगाली हिंदुओं की नागरिकता कानून के समर्थन में रैली की इजाजत नहीं देनी चाहिए. साथ ही उन्होंने असम में 24 मार्च 1971 से पहले बसे बंगाली हिंदुओं से समर्थन मांग कर मंगलवार के बंद में शामिल होने की अपील की.

क्या है नागरिकता विधेयक 2016

नागरिकता कानून 2016 साल 1955 के नागरिकता कानून का संशोधित रूप है जिसके तहत वर्ष 1971 से पहले असम आने वालों को ही नागरिकता देने का प्रावधान है. नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 के अंतर्गत अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले हिंदुओं को भी नागरिकता देने का प्रावधान है. असम के स्थानीय संगठन और लोग इस विधेयक का जबरदस्त विरोध कर रहे हैं. अभी हाल में एनआरसी का मुद्दा उठने के बाद नागरिकता का विवाद असम में फिर बड़ा विवाद बनने जा रहा है.

प्रस्तावित नागरिकता संशोधन विधेयक के मुताबिक, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से बिना किसी वैध कागजात के भाग कर आने वाले गैर-मुसलमान आप्रवासियों को भारत की नागरिकता दे दी जाएगी. इसमें ऐसे लोग भी आएंगे जिनका पासपोर्ट या वीजा खत्म हो गया है. प्रस्तावित संशोधन के बाद अब उनको अवैध नागरिक या घुसपैठिया नहीं माना जाएगा.

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असम के संगठनों का आरोप है कि यह विधेयक पारित होने से असम की स्थानीय पहचान खत्म हो जाएगी और यहां के जो स्थानीय निवासी हैं, उनकी नागरिकता को लेकर भी खतरा पैदा होगा.

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