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क्या है 1985 का असम समझौता? क्यों नागरिकता बिल को उल्लंघन बता रहे हैं प्रदर्शनकारी

प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि नागरिकता संशोधन विधेयक-2019 साल 1985 में हुए असम अकॉर्ड (असम समझौता) का उल्लघंन है. इससे वहां के मूल निवासियों के हितों को नुकसान पहुंचा है. आइए जानते हैं कि असम अकॉर्ड आखिर क्या है?

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नागरिकता संशोधन बिल के विरोध में असम में प्रदर्शन. (फाइल फोटोः PTI)
नागरिकता संशोधन बिल के विरोध में असम में प्रदर्शन. (फाइल फोटोः PTI)

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  • असम में जनजीवन अस्तव्यस्त
  • कई ट्रेनें रद्द, सेना की गई तैनात
नागरिकता संशोधन विधेयक-2019 को लेकर असम में हिंसक प्रदर्शन चल रहे हैं. प्रदर्शनकारियों ने दिसपुर में सचिवालय को घेर रखा है. इन प्रदर्शनों के चलते कई ट्रेनों को रद्द करना पड़ा है. यहां तक कि अब राज्य में सेना तैनात कर दी गई है. प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि नागरिकता संशोधन विधेयक-2019 साल 1985 में हुए असम अकॉर्ड (असम समझौता) का उल्लघंन है. इससे वहां के मूल निवासियों की भावनाओं और हितों को नुकसान पहुंचा है. आइए जानते हैं कि असम अकॉर्ड आखिर क्या है? यह नागरिकता संशोधन विधेयक कितना अलग है?

आखिर क्या है 1985 में हुआ असम समझौता ?

1979 के लोकसभा उपचुनाव में मंगलदोई सीट पर वोटरों की संख्या में अत्यधिक इजाफा हुआ. जब पता किया गया तो जानकारी मिली कि ऐसा बांग्लादेशी अवैध शरणार्थियों की वजह से हुआ है. इसके बाद असम के मूल निवासियों ने अवैध शरणार्थियों के खिलाफ हिंसक धरना-प्रदर्शन शुरू किया. ये प्रदर्शन और विरोध 6 साल तक चले. इन प्रदर्शनों में 885 लोग मारे गए. मामला तब शांत हुआ जब उस समय के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1995 में असम समझौता किया.

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समझौते में कहा गया था कि 25 मार्च 1971 के बाद असम में आए विदेशियों की पहचान कर उन्हें देश ने बाहर निकाला जाए. दूसरे राज्यों के लिए यह समय सीमा 1951 थी. जबकि, नागरिकता संशोधन बिल-2019 में नई समय सीमा 2014 तय की गई है. इसी बात पर प्रदर्शनकारियों का कहना है कि नई समय सीमा से असम समझौते का उल्लघंन हो रहा है.

प्रदर्शनकारियों का कहना है कि नागरिकता बिल से असम समझौते के नियम-6 का भी उल्लघंन हो रहा है. इस नियम के तहत असम के मूल निवासियों की सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भाषाई पहचान और उनके धरोहरों के संरक्षण तथा संवर्धन के लिए संवैधानिक, कार्यकारी और प्रशासनिक व्यवस्था की गई है.

असम समझौते में कहा था कि NRC लागू करेंगे

असम समझौते में कहा गया था कि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंश (NRC) को लागू किया जाएगा. ताकि विदेशी नागरिकों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर निकाला जा सके. हालांकि, 35 सालों तक NRC पर कोई काम नहीं हुआ. जब 31 अगस्त 2019 को असम NRC पर काम शुरू हुआ तो उसकी सूची में से 19 लाख लोगों के नाम इससे बाहर हो गए. जो लोग बाहर हुए उसमें ज्यादातर हिंदू और मूल आदिवासी समुदाय के लोग थे. अब असम के प्रदर्शनकारियों का कहना है कि नागरिकता बिल आने से NRC का प्रभाव खत्म हो जाएगा. इससे अवैध शरणार्थियों को नागरिकता मिल जाएगी.

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असम की हिंसा के पीछे का कारण क्या है?

  • असम के मूल निवासियों को इस बात की आशंका है कि कानून बदलने से बांग्लादेश से आए हिंदुओं को नागरिकता मिल जाएगी.
  • ये बांग्लादेशी हिंदू असम के मूल निवासियों के अधिकारों को चुनौती देंगे.
  • असम के मूल निवासियों की संस्कृति, भाषा, परंपरा, रीति-रिवाजों पर असर पड़ेगा.
असम अब और शरणार्थियों का बोझ नहीं उठा सकता

नागरिकता संशोधन बिल-2019 के तहत नागरिकता के लिए भारत में निवास की समयसीमा 2014 तय है. वहीं, प्रदर्शनकारियों का कहना है कि असम में 1951 से 1971 तक लाखों शरणार्थी आए. अब वह और शरणार्थियों का बोझ नहीं उठा सकता. केंद्र सरकार ने नए कानून से 1985 के असम समझौते का उल्लघंन होगा.

इनर लाइन ऑफ परमिट पर क्या असर पड़ेगा?

1873 में बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन के तहत सीमा के इलाकों के लिए आईएलपी (इनर लाइन ऑफ परमिट) लागू किया गया था. यानी असम से बाहर के लोगों को चाहे वह भारत के ही क्यों न हों, उन्हें आईएलपी के जरिए ही राज्य के सीमाई इलाकों में आने की अनुमति मिलेगी. बाहरी लोग यहां बस नहीं सकेंगे. लेकिन नागरिकता बिल के प्रभाव से आईएलपी को दूर रखा गया है. साथ ही आदिवासियों के लिए नोटिफाइट इलाकों को भी नागरिकता बिल से बाहर रखा गया है. असम के 33 जिलों में सात जिलों में आईएलपी लागू है.

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