असम में आए सैलाब ने पूरे राज्य को बर्बाद कर दिया. 28 जिले प्राकृतिक आपदा की चपेट में आए. बाढ़ के चलते हजारों लाखों ने अपना आशियाना खो दिया. सैकड़ों गांव बाढ़ में बह गए. कुदरत के कहर ने 70 जिंदगियां छीन ली, लेकिन अब धीरे धीरे यहां लोगों की जिंदगी पटरी पर लौट रही है.
बाढ़ का पानी ज्यादातर इलाकों में सामान्य से भी निचले स्तर पर आ चुका है. लखीमपुर जैसे इक्का-दुक्का जिलों को छोड़ दें तो ज्यादातर जिलों में स्थिति सामान्य होने लगी है. हालांकि अभी भी हजारों लोग राहत शिविरों में और गांव के किनारे बसे ऊंचे तटबंधों पर राहत सामग्री के सहारे जीने पर मजबूर हैं.
सरकार की ओर से मुआवजा और राहत सामग्री लगातार पहुंचाई जा रही है. स्थिति सामान्य होने के बाद ऊपरी आसाम के ज्यादातर हिस्सों में किसान अपने खेतों की ओर लौट चलें हैं. बाढ़ के बाद पानी का स्तर कम हो गया है, इसलिए किसानों ने धान की बुवाई शुरू कर दी है.
असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल भी डिब्रुगढ़ के पास माहमोरान में किसानों के साथ धान की बुआई में शामिल हुए. इतना ही नहीं सोने वालों ने खुद अपने हाथों से भी धान की रोपाई की. मुख्यमंत्री ने आज तक से बातचीत में कहा कि सरकार बाढ़ प्रभावित इलाकों मैं हुए नुकसान का आकलन कर रही है, लेकिन प्रभावितों को जल्दी से जल्दी हर संभव मदद पहुंचाने की कोशिश करेंगे. उन्होंने साथ ही कहा कि बाढ़ के चलते किसानों का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है और किसानों का मनोबल बढ़ाने के लिए वह खुद उनके इस पर्व में शामिल होना चाहते हैं.
वहीं कई इलाकों में सरकारी मदद की कमी के सवाल पर सीएम सोनोवाल ने कहा कि तमाम अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि बाढ़ प्रभावित इलाकों में मदद लगातार पहुंचाई जाए.
असम में बाढ़ के चलते 15 लाख से भी ज्यादा जिंदगियां सीधे तौर पर प्रभावित हुई हैं. 28 जिलों में बाढ़ का प्रकोप दिखाई दिया, जिसमें अब तक 70 लोगों की जान जा चुकी है. हालांकि कुदरत का कहर झेलने के बाद असम में जिंदगी की जद्दोजहद एक बार फिर शुरू हो गई है.