देश के उत्तर पूर्वी हिस्से में आई बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित असम के हालात पर चर्चा करने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने आज दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. असम के बीजेपी सांसदों के साथ मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर राज्य में आए बाढ़ के हालात पर और उसकी वजह से लोगों को होने वाली परेशानी और प्रभाव पर लोगों की चर्चा की.
मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने प्रधानमंत्री मोदी से केंद्रीय मंत्रियों की एक हाई लेवल टीम बनाने की गुजारिश की जो असम में आई बाढ़ और भूमि कटाव की समस्या पर और उसके निवारण के लिए सुझाव पर अपनी रिपोर्ट दे. मुख्यमंत्री सोनोवाल ने प्रधानमंत्री को राज्य में आई बाढ़ के लिए केंद्र से हर संभव मदद दिए जाने को लेकर प्रधानमंत्री को भी धन्यवाद दिया.
मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल राज्य में आई आपदा के बाद से लगातार केंद्रीय मंत्रियों के साथ संपर्क में हैं. असम के लगभग 28 जिले बाढ़ की चपेट में है और जिसके चलते 15,00,000 से भी ज्यादा लोग प्रभावित हुए हैं. गौरतलब है कि बाढ़ के चलते मरने वालों का आंकड़ा 60 पार कर चुका है. हजारों लोग राहत शिविरों में हैं और कई जिलों में एनडीआरएफ द्वारा राहत सामग्री पहुंचाई जा रही है. हालांकि लखीमपुर जिले की स्थिति अभी भी काफी बदतर है. पिछले चार-पांच दिनों से बारिश थमने के चलते असम में आए सैलाब का स्तर धीरे-धीरे कम हो रहा है, लेकिन मानसून का अभी लंबा समय बाकी है ऐसे में आने वाला वक्त प्रदेश के लिए बेहद संकट मय हैं.
पढ़ें आज तक संवाददाता की माजुली से ग्राउंड रिपोर्ट...
नदियों के बीच बना दुनिया का सबसे बड़ा आइलैंड असम के माजुली में है और ये ऐतिहासिक धरोहर भी बाढ़ के कहर से तबाह है. गांव-घर, खेत-खलिहान के साथ-साथ सड़कें भी इस आपदा की शिकार हो हई हैं. माजुली में मुख्य सड़क का हिस्सा सैलाब की जकड़ में कुछ ऐसे आया कि कई गांव एक-दूसरे से कट कर अलग हो गए हैं. आज तक की टीम ने पाया कि माजुली जैसे संपन्न और चहचहाते गांव में भी सन्नाटा पसरा हुआ है. अरुणाचल से नदियां और बांध से छोड़े जाने वाले पानी के बहाव के चलते सालेक गांव के बीचो-बीच बनी सड़क का लगभग 150 मीटर हिस्सा रेत के टीले की तरह बह गया. लगभग 400 मीटर सड़कों का आधा हिस्सा बह गया और आधा गिरने के इंतजार में है. यह सड़क माजुली से 10 गांवों को जोड़ती थी और अब इन गांवों के 2500 से ज्यादा परिवारों की लाइफ लाइन कट गई है.
सालेक गांव के जितेंद्र आंखों देखी बयां करते हैं. वे कहते हैं बाढ़ सारे घरों के साथ ही सड़क भी बहा ले गई. वे राहत सामग्री को नाकाफी बताते हैं. गांव के एक छोर से दूसरे छोर के बीच अब एक विशाल जलाशय बन चुका है. वे कहते हैं कि पहले इस जगह पर पचास से अधिक घर थे और वहां बच्चे खेला करते थे. बाढ़ घरों और सड़कों को तिनके के पीछे बहा ले गए. लोगों के घरों का सामान अब इस टूटी सड़क और आपदा से जलमग्न हुए गांव के किनारों पर पड़ा है. वे कहते हैं कि अब ऐसा लगता है जैसे भयावह समंदर और रेत के बड़े-बड़े टीले बचे हों. जहां सरपट गाड़ियां दौड़ा करती थीं वहां जिंदगी अब नाव के सहारे हो गई है.
इस सड़क के कटने से सेलेक, एकनंग कमलपुर, दोनंगकमलपुर, सेसासुख, बरदोआ, लोहित सापोरी, नलद्वार, मलापिन्ढा, मोहरीसुख और नतुन महरीसुख जैसे 10 गांव माजुली से कट कर अलग हो गए हैं. 10 जुलाई को अरुणाचल के NHPC बांध का पानी और लोहित नदी के बढ़ते जलस्तर की की वजह से यहां जान-माल को खासा नुकसान हुआ.
माजुली के उपायुक्त पल्लव झा कहते हैं कि कि बाढ़ से लगभग 75 हजार लोग प्रभावित हुए हैं और सैकड़ों घर पानी में डूब गए हैं. इस आपदा ने एक 13 महीने की नन्ही जान को भी लील लिया. यहां माजुली गांव हर साल बाढ़ की भयावहता से जूझता है. लोग सड़क के दूसरे हिस्से पर आकर बस तो गए हैं लेकिन वहां बिजली तक नहीं है. लोग असहाय हैं.