उत्तर पूर्वी राज्यों के लिए अहम नागरिकता संशोधन विधेयक को लोकसभा में मंजूरी मिल गई है. इसके बाद असम के वित्त मंत्री हेमंत बिस्व शर्मा ने दावा किया है कि यह विधेयक भारत सरकार के लिए बेहद जरूरी है क्योंकि इससे राज्य की 17 विधानसभा सीटों को ‘जिन्ना’ अथवा एआईयूडीएफ के चंगुल में जाने से बचा लिया गया है. इस मुद्दे पर इंडिया टुडे के संवाददाता कौशिक डेका ने हेमंत बिस्व शर्मा से बातचीत की.
इस विधेयक के जरिए असम में हिंदू जनसंख्या को बढ़ाने के सवाल पर हेमंत बिस्व ने कहा कि उनके बयान को गलत ढंग से पेश किया जा रहा है. हेमंत ने कहा कि उनका कहना था कि राज्य में ऐसे शरणार्थियों को नागरिकता दी जानी चाहिए जिन्हें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक आधार पर निष्कासित किया गया है.
इन शरणार्थियों में हिंदू के अलावा इसाई, जैन और बौद्ध धर्म के लोग शामिल हैं जो बीते कई दशकों से महज अपने धर्म के कारण इन तीन देशों से पलायन करने के लिए मजबूर किए गए हैं. वहीं लोकसभा में पास किए गए नागरिकता संशोधन विधेयक पर शर्मा ने कहा कि यह विधेयक पूरी तरह से भारत के सेकुलर आस्था का सम्मान करता है और इस विधेयक का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है. यह विधेयक महज पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों के अधिकार की बात करता है और यह पूरी तरह से कांग्रेस पार्टी द्वारा आजादी के समय दी गई सेकुलर की परिभाषा के दायरे में है.
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हेमंत बिस्व ने कहा कि मौजूदा समय में धर्म को आधार बनाते हुए इन देशों से भगाए गए लोगों को जहां भारतीय नागरिकता देने में 11 साल का समय लगता है वहीं इस विधेयक के जरिए इस समय को कम कर 6 साल किया जा रहा है. वहीं बिस्व ने दावा किया कि समय कम करने की दलील को अन्य संस्थाओं समेत कोर्ट से भी हरी झंडी मिल चुकी है लिहाजा देश में धर्म की आड़ में राजनीति करने वालों को एक बात साफ तौर पर समझ लेनी चाहिए कि यह कानून किसी हिंदू जनसंख्या की बात नहीं करता बल्कि ऐसे शर्णार्थियों के लिए है जिन्हें पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से उनके धर्म के कारण निकाल दिया गया है.
वहीं नागरिकता संशोधन विधेयक से असम अकॉर्ड (असम समझौता) के क्लॉज 5 के उल्लंघन के सवाल पर हेमंत ने कहा कि असम अकॉड किसी तरह का मैग्नाकार्टा नहीं है और इसे ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के दबाव में किया गया है. इस समझौते में महत्वपूर्ण संशोधन की जरूरत है. हेमंत ने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने दबाव में इस समझौते में 1971 तक असम में आए शर्णार्थियों को शामिल किया है जिससे राज्य की डेमोग्राफी में बदलाव हुआ है. लिहाजा देश के बाकी हिस्सों की तरह इस समझौते में भी शर्णार्थियों का आंकलन 1951 के आधार पर किए जाने की जरूरत है.
वहीं असम का जिन्ना के रास्ते पर जाने के सवाल पर हेमंत ने कहा कि यदि ऐसा संशोधन नहीं किया गया तो राज्य की लगभग 17 सीटों पर यूडीएफ जैसी पार्टी का प्रभाव कायम हो जाएगा और असम के मूल नागरिकों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा. हेमंत ने दावा किया कि आजादी के बाद मुस्लिम लीग ने असम की मांग की थी लेकिन यहां हिंदू जनसंख्या अधिक होने के कारण देश के नेताओं ने असम को जिन्ना के साथ जाने से रोक लिया था. जिसके बाद पाकिस्तान ने दावा किया था कि भविष्य में वह दिन आएगा जब राज्य में मुस्लिम जनसंख्या हिंदू से अधिक हो जाएगी और फिर असम खुद-ब-खुद पाकिस्तान में आ जाएगा. इस दलील के साथ हेमंत ने दावा किया कि हमें इस साजिश को समझने की जरूरत है क्योंकि मौजूदा समय में यूडीएफ के बदरुद्दीन अजमल के पास 35 सीटें है. यदि उन्हें 17 और सीटों पर जनसंख्या के आधार पर वर्चस्व मिलता है तो असम को पाकिस्तान बनने से कोई नहीं रोक सकेगा. हेमंत ने कहा कि राज्य में जल्द से जल्द स्थिति को काबू करने की जरूरत है क्योंकि देश की संप्रभुता को खतरा है.